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fact n fiction : जय हो का पोस्टर यूं बना

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जय हो का पोस्टर रिलीज हो गया। पहले तो इसका नाम मेंटल था। लेकिन कुछ घटनाक्रम ऐसे हुए कि इसका नाम बदलकर जय हो रखना पड़ा। हमारे फिक्शन जर्नालिस्ट की रिपोर्ट ने उठाया पूरे मामले से पर्दा। जानिए कैसे ? हुआ कुछ यूं। सलमान खान बहुत खुश थे। दस बजे में कुछ मिनट बाकी थे। पोस्टर रिलीज होने वाला था। पोस्टर को लेकर सलमान अपने प्रशंसकों में उत्सुकता जगा रहे थे। शुक्रवार को जैसे ही दस बजे। वैसे ही पोस्टर रिलीज हुआ। सर्वर क्रैश होने की बात सामने आई। लेकिन बात कुछ और थी। सलमान खान पोस्टर को लेकर नाराज हुए। पोस्टर देखा तो सलमान खान चौक उठे, यह कालिख क्यूं ? मेरे चेहरे पर पोती है। मैं इस ​​फिल्म में कोयला मजदूर थोड़ी हूं। राइट ब्रदर। तुम सही कह रहे हो, सोहेल खान ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा। जब लोग इस पोस्टर को देखेंगे तो उनको कोयले की याद आएगी। कोयले घोटाले की याद आएगी। वैसे भी अगले साल चुनाव हैं। जनता कांग्रेस के चेहरे पर कालिख पोतेगी। तुम्हारी फिल्म नहीं चलेगी सोहेल, सलमान बोले। कोई बात नहीं भैया, मैंने सौ करोड़ का इंतजाम कर लिया। सोहेल बड़े आत्मविश्वास के साथ बोले।  सलमान खान चौकते हुए बोल

भाव कृति : उलझन, उम्मीद व खयालात

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उम्मीद शाम ढले परिंदों की वापसी से तेरे आने की उम्मीद जगाती हूं सोच कर मैं फिर एकदम से डर सी, सहम सी जाती हूं कहीं बरसों की तरह, उम्मीद इक उम्मीद बनकर न रह जाए तुम्हारी, बस तुम्हारी उलझन उनकी तो ख़बर नहीं, मैं हर रोज नया महबूब चुनता हूं अजब इश्क की गुफ्तगू वो आंखें कहते हैं, मैं दिल से सुनता हूं हैप्पी मैं भी बड़ा अजीब हूं, पुरानी सुलझती नहीं, और हर रोज एक नई उलझन बुनता हूं ख्यालात लोग मेरे खयाल पूछते हैं, लेकिन क्या कहूं, पल पल तो ख्यालात बदलते हैं सच में मौसम की तरह, न जाने दिन में कितनी बार मेरे हालात बदलते हैं लोग सोचते हैं रिहा हुए मुझे लगता है, हैप्पी लोग सिर्फ हवालात बदलते हैं

ख़त तरुण तेजपाल, मीडिया व समाज के नाम

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तरुण तेजपाल, दोष तुम्‍हारा है या तुम्‍हारी बड़ी शोहरत या फिर समाज की उस सोच का, जो हमेशा ऐसे मामलों में पुरुषों को दोष करार दे देती है, बिना उसकी सफाई सुने, मौके व हालातों के समझे। इस बारे में, मैं तो कुछ नहीं कह सकता है, लेकिन तुम्‍हारे में बारे में मच रही तहलका ने मुझे अपने विचार रखने के लिए मजबूर कर दिया, शायद मैं तमाशे को मूक दर्शक की तरह नहीं देख सकता था। मीडिया कार्यालयों, वैसे तो बड़ी बड़ी कंपनियों में भी शारीरिक शोषण होता, नहीं, नहीं, करवाया भी जाता है, रातों रात चर्चित हस्‍ती बनने के लिए। लूज कपड़े, बोस को लुभावने वाला का मैकअप, कातिलाना मुस्‍कान के साथ बॉस के कमरे में दस्‍तक देना आदि बातें ऑफिस में बैठे अन्‍य कर्मचारियों की आंखों में खटकती भी हैं। मगर इस शारीरिक शोषण या महत्‍वाकांक्षायों की पूर्ति में अगर किसी का शोषण होता है तो उस महिला या पुरुष कर्मचारी का, जो कंपनी को ऊपर ले जाने के लिए मन से काम करता है। जब तक डील नो ऑब्‍जेक्‍शन है, तब तक मजे होते हैं, जिस दिन डील में एरर आने शुरू होते हैं, उस दिन विवाद होना तय होता है, जैसे आपके साथ हुआ। विवाद दब भी जाता, लेकिन

नहीं चाहिये अंग्रेज, हमारे पास चोर नेतायों की पलटन है

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हर उदय का, अंत होना पतन है। देखो दुनिया , अंत प्यारा अपना वतन है। हर सफलता के पीछे बेजोड़ मेहनत व यत्न है। शादी से पहले प्रियतम , बाद में संतान उत्तम रत्न है। धर्म का अंत , आध्यात्मिक गुरूआें का तोतारटन है। नहीं चाहिये अंग्रेज , हमारे पास चोर नेतायों की पलटन है। पंजा , कमल , किसी के पास साइकिल तो किसी के पास लालटन है। तुम्हारा अनुभव तो पता नहीं , लेकिन हैप्पी का तो यह कथन है। शेअर कोयी नहीं करेगा , कहेगा हरकोयी बात में तो वजन है। कुलवंत हैप्‍पी, संचालक Yuvarocks Dot Com , संपादक Prabhat Abha हिन्‍दी साप्‍ताहिक समाचार पत्र, सामग्री लेखक Ganeshaspeaks । पिछले दस साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय, प्रिंट से वेब मीडिया तक, और वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की छाया में। Yuva Rocks Dot Com से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें Facebook  पर ज्वॉइन करें, Twitter पर फॉलो करे।

Ad Review : क्‍या देखा गूगल का यह विज्ञापन ?

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आज ऑफिस से लौटकर जैसे ही टेलीविजन का स्‍विच ऑन किया तो टाटा स्‍कायी की ओर से एक विज्ञापन चलाया जा रहा था। इस विज्ञापन से आगे मेरा टेलीविजन नहीं बढ़ा। विज्ञापन इतना प्‍यार था कि दिल को छू गया। मुझे लगा कि शायद जो बात ढ़ाई से साढ़े तीन घंटे की फिल्‍म नहीं कह सकती है, वे बात इस तीन मिनट कुछ सेकेंड के विज्ञापन ने कह दी। यह विज्ञापन था विश्‍व प्रसिद्ध सर्च इंजन गूगल का। सबसे दिलचस्‍प बात तो यह है कि इस विज्ञापन को गूगल की ओर से यूट्यूब पर भी आज ही प्रकाशित किया गया है। इस विज्ञापन से जो बात आपको जोड़ती है, वे है इसका भावनात्‍मक पहलु। भले ही देश का एक खेमा पाकिस्‍तान को पी पी कर कोसता था, लेकिन एक खेमा ऐसा भी है, जो आज भी पाकिस्‍तान की आबोहवा में सांस लेने के लिये तरसता था। इस विज्ञापन के किरदारों भारत व पाकिस्‍तान में आज भी मौजूद होंगे। जो आज भी अपने पुराने घरों को याद करते होंगे। जो आज भी अपने दोस्‍तों से मिलने के लिये तरसते होंगे। आने वाले समय में जब हमारी पुरानी पीढ़ियां चली जायेंगी, तो हो सकता है पाकिस्‍तान के प्रति हमारा प्‍यार रखने वाला एक खेमा मर जाये। और बच जाये,