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धोनी ब्रिगेड ने निभाया अतिथि देवो भव: धर्म : #उलटी चप्‍पल

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#उलटी चप्‍पल कल बैंगलोर में खेले गए पहले टी 20 मैच में मेहमान टीम ने जीत दर्ज करते हुए दो मैचों की सीरिज में मेजबान टीम को एक जीरो से पछाड़ दिया। मेहमान टीम भारतीय क्रिकेटरों की मेहमान निवाजी से बेहद खुश है। आए हुए मेहमानों में एक भारतीय दामाद भी हैं, सानिया के शौहर। कल का सारा मैच उनके नाम ही रहा, क्‍यूंकि वो अंत तक नाबाद रहने में सफल रहे। उधर, भारतीय टीम ने मैच हराने के बाद कहा कि उन्‍होंने मेहमानों को खुश करने के लिए शत प्रतिशत सहयोग किया। हमें नहीं लगता कि हमने मेहमान को खुश करने में कोई कसर बाकी छोड़ी है। इससे पहले भी हमने 28 सालों से जीत का सपना देख रहे इंग्‍लैंड निवासियों को यहां से खुश करके भेजा। इस सीरिज के दूसरे मैच के लिए हम पूरी तरह तैयार हैं, हम नहीं चाहते कि मेहमान कोई किसी भी प्रकार की निराशा का सामना करना पड़े। उधर, बीसीसीआई पाकिस्‍तानी क्रिकेट बोर्ड से निरंतर संपर्क कर रही है एवं निवेदन कर रही है कि पाकिस्‍तानी खिलाड़ियों को आईपीएल में खेलने की अनुमति दें। अगर खुफिया सूत्रों की माने तो धोनी ब्रिगेड के अतिथि देवो भव: धर्म निभाने से बीसीसीआई की साख़ निरंतर गिरती जा

घोष्ट राइंटिंग - हमें सोचना होगा

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'पाखी' पत्रिका ने महुआ माजी के द्वारा लिखे गए उपन्यास की चोरी का विवाद खड़ा किया उससे बहुत सारे प्रश्न उठते हैं। अंग्रेजी में भी ऐसी घटनाओं के कारण बहसें हुई हैं और लेखन की मौलिकता संदेह के घेरे में आयी और उन्हें रचनाकार की सम्मानित सूची से हटा दिया गया। लेकिन हिंदी में यह ताजा प्रकरण इसलिए महत्वपूर्ण है कि पिछले दिनों लेखन में महत्वाकांक्षियों की एक पूरी फौज आ गयी है और वे साहित्य के इतिहास में 'महान्' हो जाना चाहते हैं। इसमें फिर चाहे तन, मन के अलावा धन ही क्यों न लगाना पड़ें। इसमें पत्रिका के सम्पादकों के साथ एक गठजोड़ की भूमिका भी देखी जानी चाहिए। कई बार प्रकाशकों के साथ इस गठजोड़ की भूमिका की जांच भी की जा सकती है। पश्चिम में तो अब आलोचक की हैसियत रही नहीं कि उसके 'कहे बोले' गए से कोई लेखक महान हो जाए या उसकी महानता की चौतरफा स्वीकृति हो जाए। वहां प्रकाशनगृह ही लेखक पैदा करते हैं वे ही उन्हें महान भी बनाते हैं। अब माना जा रहा है कि यह सिलसिला यहां हिंदी में भी चल पड़ा है। आलोचक का प्रभाव धुंधला गया है और प्रकाशक ही अब लेखक को 'आइकनिक' बना सकता

प्रधान मंत्री के नाम खुला पत्र

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प्रिय मनमोहन सिंह। मैं देश का आम नागरिक हूं। मुझे ऐसा लगने लगा है कि अब देश पर चल रही साढ़े साती खत्‍म होने का वक्‍त आ गया है। आपको अब नैतिक तौर पर अपने पद से अस्‍तीफा दे देना चाहिए। बहुत मजाक हो चुका। अब और मत गिराओ प्रधान मंत्री पद की गरिमा को। तुम राष्‍ट्र संदेश के अंत में पूछते हो ठीक है, जबकि देश में कुछ भी ठीक नहीं। हर तरफ थू थू हो रही है। उस समय 'ठीक' शब्‍द बहुत ख़राब लगता है, जब देश के नागरिक ठीक करवाने के लिए सड़कों पर उतर कर दमन का सामना कर रहे हों। प्रिय मनमोहन सिंह मैं जानता हूं, चाय में चायपत्‍ती की मात्र चीनी, पानी एवं दूध से कम होती है। मगर पूरा दोष चायपत्‍ती को दिया जाता है, अगर चाय अच्‍छी न हो। मैं जानता हूं, आपकी दशा उस चायपत्‍ती से ज्‍यादा नहीं, लेकिन अब बहुत हुआ, अब तो आपको सोनिया गांधी पद छोड़ने के लिए कहे चाहे न कहे, आपको अपना पद स्‍वयं जिम्‍मेदारी लेते हुए छोड़ा देना चाहिए, ये ही बेहतर होगा। वरना पूरा देश उस समय सदमे में पहुंच जाएगा। जब सचिन की तरह आपके भी संयास की ख़बर एक दम से मीडिया में आएगी। सचिन के नाम तो बहुत सी अच्‍छी उपलब्‍िधयां हैं, लेकिन

समाचार पत्रों में 'दिल्‍ली जनाक्रोश'

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पूरा दिन हिन्‍दी इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया ने दिल्‍ली जनाक्रोश को कवरेज दी। इस जनाक्रोश को घरों तक पहुंचाया। वहीं अगले दिन सोमवार को कुछेक हिन्‍दी समाचार पत्रों ने दिल्‍ली जनाक्रोश को सामान्‍य तरीके से लिया, जबकि कुछेक ने जनाक्रोश को पूरी तरह उभारा। भारतीय मीडिया के अलावा दिल्‍ली जनाक्रोश पर हुए पुलिस एक्‍शन को विदेश मीडिया ने भी कवरेज दिया। इंग्‍लेंड के गॉर्डियन ने अपने अंतर्राष्‍ट्रीय पृष्‍ठ पर 'वी वांट जस्‍टिस' एवं 'किल देम' जैसे शब्‍द लिखित तख्‍तियां पकड़ रोष प्रकट कर रही लड़कियों की फोटो के साथ, किस तरह पुलिस ने उनको खदेड़ने के लिए आंसू गैस एवं पानी की बौछारों का इस्‍तेमाल किया, समाचार प्रकाशित कर इंग्‍लेंड की जनता को भारतीय पुलिस रवैया से अवगत करवाया। वहीं, न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स ने अपने डिजीटल संस्‍कार में दिल्‍ली जनाक्रोश की ख़बर को 'रोष प्रदर्शन हिंसा में बदला' के शीर्षक तले प्रकाशित किया। इस रिपोर्ट अंदर रविवार को हुए पूरे घटनाक्रम का बड़ी बारीकी से लिखा गया है। ख़बर में बताया गया कि किस तरह लोग दिल्‍ली में एकत्र हुए। किस तरह इस जनाक्रोश में राजनीतिक पार

तो मोदी का सिर मांग लेता मीडिया

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सुषमा स्‍वराज  टि्वट के जरिए लोगों को संबोधित करते हुए कहती हैं, 'मैं आपकी भावनाओं को समझती हूं, आपके गुस्‍से का सत्‍कार करती हूं, हमें कुछ वक्‍त दें, हम बातचीत कर रहे हैं, जल्‍द ही किसी नतीजे पर पहुंचेंगे'। उधर, तस्‍लीमा नस्‍रीन  लिखती हैं, 'यह औरतों की सुरक्षा का सवाल नहीं, केवल औरतों के लिए नहीं, बल्‍कि मानव अधिकारों का सवाल है, हर किसी को इस मार्च में शामिल होना चाहिए'। वहीं आजसमाज  ने टि्वट पर लिखा है कि अगर यह मसला गुजरात के अंदर बना होता तो मीडिया अब तक नरेंद्र मोदी का सिर मांग चुका होता, लेकिन अभी तक मीडिया एवं अन्‍य पार्टियों ने शीला दीक्षित से नैतिकता के तौर पर अस्‍तीफा देने जैसे सवाल नहीं उठाए। वहीं कुछ मित्रों ने फेसबुक पर लिखा है कि लोगों का जनाक्रोश अब किसी दूसरी तरफ मोड़ खाता नजर आ रहा है, ऐसे में किसी अनहोनी के होने से पहले लोगों को सतर्क होते हुए वापिस जाना चाहिए। वहीं, मीडिया के रुख पर गुस्‍साए अभिनेता परेश रावल अपने टि्वट पर लिखते हैं, ''ख़बर कमरे में बैठकर लोगों के गुस्‍से को गलत बताने वाले पत्रकारों को घटनास्‍थल पर जाकर आंसू गोलो