प्यार के लिए चीर पहाड़


प्यार के लिए साला कुछ भी करेगा, यह बात तो आम ही है. आशिक को अपनी महबूबा के पांव में लगे कांटे की चुम्बन भी सूली से ज्यादा लगती है. कुछ ऐसे ही प्यार की मिसाल है गांव गहलौर का स्वर्गीय दशरथ मांझी. यह व्यक्ति अपनी पत्नी को आई चोट से इतना प्रभावित हो गया कि उसने गुस्से में आकर पहाड़ का सीना ही चीर डाला. चलो आओ तुम को एक कहानी सुनाता हूं, मुझे नहीं पता कितने लोग इसको बुरा कहेंगे और कितने अच्छा. पर मेरा मकसद एक गुमनाम आशिक को लोगों तक पहुंचाना है.

बिहार के गया जिले के एक अति पिछड़े गांव गहलौर में रहने वाले दशरथ मांझी अपनी पत्नी फगुनी देवी को अत्यंत प्यार करता था. फगुनी भी और महिलाओं की तरह पानी लेने के लिए रोज गहलौर पहाड़ पार जाती थी. मगर एक सुबह फगुनी पानी के लिए घर से निकलीं. जब वो घर वापिस आई तो उसके सिर पर हर रोज की तरह पानी का भरा हुआ घड़ा नहीं था. ये देखकर मांझी ने पूछा कि घड़ा कहाँ है? पूछने पर फगुनी ने बताया कि पहाड़ पार करते समय पैर फिसल गया. चोट तो आई ही, पानी भरा मटका भी गिर कर टूट गया. शायद पहाड़ को भी इसी दिन का इंतजार था कि कोई उसको चीरकर एक रास्ता बनाए. पत्नी का दर्द मांझी से देखा न गया और उसने ठान लिया कि वो अब पहाड़ का सीना चीरकर एक रास्ता बनाएगा.

फिर क्या था दशरथ अकेले ही पहाड़ काटकर रास्ता बनाने में जुट गए. हाथ में छेनी-हथौड़ी लिए वे दो दशकों तक पहाड़ काटता रहा. रात-दिन, आंधी पानी की चिंन्ता किए बिना मांझी नामुमकिन को मुमकिन करने में जुटा रहा. आखिर आशिक की जिद्दी आगे पहाड़ भी चकनाचूर हो गया. मांझी ने अपने गांव से अमेठी तक 27 फुट ऊंचाई में पहाड़ काटकर 365 फीट लंबा एवं 30 फीट चौडा़ रास्ता बना दिया. पहाड़ काटकर रास्ता बनाए जाने से करीब 80 किलोमीटर लंबा रास्ता लगभग 3 किलोमीटर में सिमट गया.

मांझी की हिम्मत एवं जजबे को देखते हुए लोगों ने उन्हें 'माउन्टेन कटर' का नाम दे दिया. पहाड़ का सीना चीरकर मांझी ने रास्ता तो बना दिया, मगर जिसके लिए उसने पहाड़ से माथा लगाया था वो तो काम खत्म होने से पहले ही चल बसी. इस दीवाने के बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भरी लोक अदालत में अपनी कुर्सी छोड़कर बैठने के लिए कहा और उन्होंने इस मौके पर मांझी को जीवंत शाहजहां का नाम देकर भी पुकारा था.

देखो इस दीवाने की दीवानगी कि अगर यह पहाड़ तोड़कर सरकार को रास्ता बना होता तो शायद बीस तीस लाख रुपए खर्च होते, मगर इस आशिक ने सिर्फ अपनी प्यारी पत्नी की छोटी सी चोट के बदले उस पहाड़ का सीना ही चीरकर रास्ता बना दिया. यह आशिक शनिवार 18 अगस्त 2007 को इस दुनिया को सदा के लिए अलविदा कहकर अपनी फगुनी के पास पहुंच गया, जो उसका सालों से स्वर्ग में इंतजार कर रही थी.

टिप्पणियाँ

  1. गजब है भाई.

    आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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  2. गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ ...


    अनिल कान्त
    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं

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