प्रियंका की चुप्पी पर अटका कांग्रेस का अधिग्रहण
16वीं लोक सभा के चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता
पार्टी को मिले जोरदार जनादेश के बाद राजनीति पार्टियों में उठ पटक का दौर
जारी है। इस बार के चुनावों ने राजनीतिक परिदृश्य को बदलकर रख दिया, लेकिन
ताजुब की बात है कि आज भी राजनीतिक पार्टियां उस जद हैं, जिसके कारण हारी
थी। इस जनादेश में अगर सबसे बड़ा झटका किसी पार्टी को लगा है, वो है
कांग्रेस। देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को विपक्ष में बैठने के लिए भी
गठनबंधन की जरूरत होगी।
जब देश की सबसे बड़ी एवं लम्बे समय तक शासन करने वाली पार्टी की यह दुर्दशा हो जाए तो पार्टी के भीतर से विरोधी सुर उठने तो लाजमी हैं। जो नेता चुनावों से पहले दबी जुबान में बोलते थे, आज वो सार्वजनिक रूप से अपना दर्द प्रकट कर रहे हैं। और दिलचस्प बात तो यह है कि विरोधी सुर उनके खिलाफ हैं, जिनके इस्तीफे को पार्टी हाईकमान ने स्वीकार करने मना कर दिया।
कल जिसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जा रहा था, आज उसके खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। बड़ी की शर्मनाक हार के बाद ऐसा होना था। लेकिन इन्हीं आवाजों में एक आवाज परिवार सदस्य प्रियंका गांधी के पक्ष में उठ रही है। यह आवाज कह रही है कि प्रियंका गांधी में संभावनाएं हैं। वो पार्टी में जान फूंक सकती हैं। हालांकि, पार्टी नेता अच्छी तरह जानते हैं कि इन चुनावों को नरेंद्र मोदी ने दो चीजों के आधार पर लड़ा।
एक पाकिस्तान और दूसरा जी। जी से मतलब है कि जीजाजी। राहुल गांधी के जीजाजी, प्रियंका के पति देव। नरेंद्र मोदी की पूरी मुहिम जीजा जी के आस पास थी। जीजा जी काफी चर्चा में रहे, हालांकि जीजा जी को कोई सरकारी जमीन अलाट नहीं की गई। जीजा जी के खिलाफ अभी जांच शुरू हुई है। ऐसे में कांग्रेस में प्रियंका वाड्रा को लेकर आना, आखिर कांग्रेस के लिए कहां तक ठीक होगा।
क्या इतनी बड़ी हार के बाद भी कांग्रेस वंशवाद से बाहर निकलने को तैयार नहीं ? क्या आज भी कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं, जो नरेंद्र मोदी की तरह खात्मे की कगार पर खड़ी कांग्रेस को जीवन दान दे सके ? इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी राजनीति में रस नहीं लेते। इस बात को बड़े बड़े कांग्रेसी नेता मानते हैं।
अगर राहुल गांधी को राजनीति में रस नहीं, अगर उनके भीतर क्षमता नहीं नेतृत्व की, तो क्यूं कांग्रेस गांधी परिवार से अलग नहीं होना चाहिए ? जिस तरह अब राहुल गांधी से निराश हुए कांग्रेसी नेता प्रियंका गांधी से अपनी उम्मीद बांध रहे हैं, उसको देखकर लगता है कि बहुत जल्द वाड्रा परिवार कांग्रेस का अधिग्रहण कर लेगा।
अधिग्रहण शब्द का इस्तेमाल इसलिए, क्यूंकि प्रियंका गांधी व रॉबर्ट वाड्रा राजनीतिज्ञ नहीं हैं, उन्होंने कांग्रेस में जमीन स्तर से काम शुरू नहीं किया। उन्होंने कारोबार किया। पैसे कमाए। कई निदेशक पहचान नंबरों के लिए निवेदन किया। कारोबार में किसी चीज को अपने कब्जे में लेना अधिग्रहण कहलाता है।
अब देखना है कि वाड्रा परिवार इस अधिग्रहण के लिए तैयार होगा कि नहीं, कांग्रेसी नेता तो अपनी तरफ से हाथ बढ़ा चुके हैं। बस डील डन होने में प्रियंका की हां बाकी है। यह सौदा भी लाभ से जुड़ा है। अगर प्रियंका अधिग्रहण करती हैं तो कांग्रेस को मुनाफा होने की संभावना है और लोक सभा चुनावों में हुए नुकसान की भरपाई हो सकती है।
जब देश की सबसे बड़ी एवं लम्बे समय तक शासन करने वाली पार्टी की यह दुर्दशा हो जाए तो पार्टी के भीतर से विरोधी सुर उठने तो लाजमी हैं। जो नेता चुनावों से पहले दबी जुबान में बोलते थे, आज वो सार्वजनिक रूप से अपना दर्द प्रकट कर रहे हैं। और दिलचस्प बात तो यह है कि विरोधी सुर उनके खिलाफ हैं, जिनके इस्तीफे को पार्टी हाईकमान ने स्वीकार करने मना कर दिया।
कल जिसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जा रहा था, आज उसके खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। बड़ी की शर्मनाक हार के बाद ऐसा होना था। लेकिन इन्हीं आवाजों में एक आवाज परिवार सदस्य प्रियंका गांधी के पक्ष में उठ रही है। यह आवाज कह रही है कि प्रियंका गांधी में संभावनाएं हैं। वो पार्टी में जान फूंक सकती हैं। हालांकि, पार्टी नेता अच्छी तरह जानते हैं कि इन चुनावों को नरेंद्र मोदी ने दो चीजों के आधार पर लड़ा।
एक पाकिस्तान और दूसरा जी। जी से मतलब है कि जीजाजी। राहुल गांधी के जीजाजी, प्रियंका के पति देव। नरेंद्र मोदी की पूरी मुहिम जीजा जी के आस पास थी। जीजा जी काफी चर्चा में रहे, हालांकि जीजा जी को कोई सरकारी जमीन अलाट नहीं की गई। जीजा जी के खिलाफ अभी जांच शुरू हुई है। ऐसे में कांग्रेस में प्रियंका वाड्रा को लेकर आना, आखिर कांग्रेस के लिए कहां तक ठीक होगा।
क्या इतनी बड़ी हार के बाद भी कांग्रेस वंशवाद से बाहर निकलने को तैयार नहीं ? क्या आज भी कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं, जो नरेंद्र मोदी की तरह खात्मे की कगार पर खड़ी कांग्रेस को जीवन दान दे सके ? इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी राजनीति में रस नहीं लेते। इस बात को बड़े बड़े कांग्रेसी नेता मानते हैं।
अगर राहुल गांधी को राजनीति में रस नहीं, अगर उनके भीतर क्षमता नहीं नेतृत्व की, तो क्यूं कांग्रेस गांधी परिवार से अलग नहीं होना चाहिए ? जिस तरह अब राहुल गांधी से निराश हुए कांग्रेसी नेता प्रियंका गांधी से अपनी उम्मीद बांध रहे हैं, उसको देखकर लगता है कि बहुत जल्द वाड्रा परिवार कांग्रेस का अधिग्रहण कर लेगा।
अधिग्रहण शब्द का इस्तेमाल इसलिए, क्यूंकि प्रियंका गांधी व रॉबर्ट वाड्रा राजनीतिज्ञ नहीं हैं, उन्होंने कांग्रेस में जमीन स्तर से काम शुरू नहीं किया। उन्होंने कारोबार किया। पैसे कमाए। कई निदेशक पहचान नंबरों के लिए निवेदन किया। कारोबार में किसी चीज को अपने कब्जे में लेना अधिग्रहण कहलाता है।
अब देखना है कि वाड्रा परिवार इस अधिग्रहण के लिए तैयार होगा कि नहीं, कांग्रेसी नेता तो अपनी तरफ से हाथ बढ़ा चुके हैं। बस डील डन होने में प्रियंका की हां बाकी है। यह सौदा भी लाभ से जुड़ा है। अगर प्रियंका अधिग्रहण करती हैं तो कांग्रेस को मुनाफा होने की संभावना है और लोक सभा चुनावों में हुए नुकसान की भरपाई हो सकती है।
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