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अमेरिका ने क्‍यूं कहा, ''आओ नरेंद्र मोदी''

नरेंद्र मोदी के लिए बेहद गर्व की बात है कि अमेरिका ने उनको वीजा आवेदन पत्र दाखिल करने की अनुमति दे दी है, जो कि 2002 गुजरात दंगों के बाद से प्रतिबंधित थी। अमेरिका का नरेंद्र मोदी के प्रति नरम होना, नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के लिए सुखद है, वहीं कांग्रेस के लिए बेहद दुखद। इसको भाजपा सत्‍य की जीत कहेगी। अमेरिका ने ऐसे ही नरेंद्र मोदी के लिए अमेरिका के प्रवेश द्वार नहीं खोले, अमेरिका में चुनावी माहौल है, वहां पर बहुत सारे हिन्‍दुस्‍तानी बसते हैं, जो सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी की वाह वाही से प्रभावित हैं, और उसके दीवाने हैं। क्‍यूं का दूसरा अहम कारण, नरेंद्र मोदी का निरंतर बढ़ता राजनैतिक कद। अमेरिका को आज से दस साल पूर्व यह आभास न था कि नरेंद्र मोदी एक दिन इतना बड़ा ब्रांड बन जाएगा, जो उसके फैसलों को बदलने की क्षमता रखता हो। आज नरेंद्र मोदी भारत में सबसे ज्‍यादा चर्चा का विषय। देश में इस बात की चर्चा नहीं कि भाजपा केंद्र में आए, चर्चा तो इस बात की चल रही है कि नरेंद्र मोदी होंगे अगले प्रधान मंत्री। एक नेता जब पार्टी से ऊपर अपनी पहचान बना ले, तो किसी को भी रुक का सोचना पड़ सकता है, अमेरिका

जसपाल भट्टी वन मैन आर्मी अगेंस्ट करप्शन

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जसपाल भट्टी को कॉमेडी किंग भी कहा जाता रहा है और वे भारतीय टेलीविजन और सिने जगत का एक जाना-पहचाना नाम रहे हैं। भट्टी को आम-आदमी को दिन-प्रतिदिन होने वाली परेशानियों को हल्के-फुल्के अंदाज में पेश करने के लिए जाना जाता रहेगा। उनका जन्म 3 मार्च 1955 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनकी पत्नी, सविता भट्टी हमेशा उनके कार्यों में उनका सहयोग करती थी। दूरदर्शन पर प्रसारित उनके सबसे लोकप्रिय शो – फ्लॉप शो में उनकी पत्नी सविता भट्टी ने अभिनय करने के साथ ही उसका प्रोडक्शन भी किया। भट्टी ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री ली लेकिन उनका मन इंजीनियिंग में नहीं रमा और वे धीरे-धीरे हास्य-व्यंग्य और कार्टून की दुनिया में रमने लगे। कॉलेज के दिनों में ही वे अपने नुक्कड़ नाटकों से लोगों में काफी लोकप्रिय हो गए थे। फिल्मों एवं टेलीविजन की दुनिया में आने से पहले वे ट्रिब्यून में कार्टून बनाते थे। कार्टूनों के माध्यम से वे व्यवस्था में मौजूद खामियों को बखूबी उजागर करते थे, जनता उनके कार्टूनों को बहुत पसंद करती थी और चटकारे लेकर पढ़ती थी। भट्टी की मौजूदगी से फिल्मों एव

नक्सलवाद की जड़ों को गंभीरता से टटोलता है `चक्रव्यूह`

देश के आज जो हालात हैं, उनके अनुसार प्रकाश झा की चक्रव्‍यूह बिल्‍कुल सत्‍य साबित होती है। प्रकाश झा ने सही समय पर एक सही फिल्‍म का निर्माण किया है। देश के प्रधान मंत्री भी नक्‍सलवाद को बहुत जटिल समस्‍या मानते हैं, लेकिन सरकार इस को लेकर कितना गम्‍भीर है, इसको दिखाने की कोशिश प्रकाश झा करते हुए नजर आए। इस फिल्‍म का अंत दुखद है, लेकिन सोचनीय है। ठोस कहानी, शानदार अभिनय और सुलगता मुद्दा प्रकाश झा के सिनेमा की खासियत है और यही बातें ‘चक्रव्यूह’ में भी देखने को मिलती है। दामुल से लेकर मृत्युदण्ड तक के सिनेमा में बतौर निर्देशक प्रकाश झा का अलग अंदाज देखने को मिलता है। इन फिल्मों में आम आदमी के लिए कुछ नहीं था। गंगाजल से प्रकाश झा ने कहानी कहने का अपना अंदाज बदला। बड़े स्टार लिए, फिल्म में मनोरंजन को अहमियत दी ताकि उनकी बात ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंच सके। इससे प्रकाश झा की फिल्‍म को लेकर आम सिने प्रेमी के दिल में उत्‍सुकता बढ़ी, जो बेहद जरूरी है। चक्रव्यूह में पुलिस, राजनेता, पूंजीवादी और माओवादी सभी के पक्ष को रखने की कोशिश प्रकाश झा ने की है। फिल्म किसी निर्णय तक नहीं पहुंचती है, ले

यश चोपड़ा का देहांत, ''जब तक है जान'' आखिरी फिल्‍म

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प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा का 80 साल की उम्र में मुंबई में देहांत हो गया है। उन्हें डेंगू से पीड़ित होने के बाद लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था। प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा नहीं रहे। लीलावती अस्पताल में रविवार को उनका निधन हो गया है। वो पिछले 9 दिनों से लीलावती अस्पताल में भर्ती थे। यश चोपड़ा डेंगू से पीड़ित थे। उम्मीद की जा रही थी कि वो जिल्दी जल्दी ठीक होकर घर लौट जाएंगे लेकिन अब यश चोपड़ा नहीं रहे। यश चोपड़ा ने बॉलीवुड का प्रतिष्ठित बैनर यशराज फ़िल्म की नींव रखी थी। यश चोपड़ा ने कई मल्टी स्टारर फ़िल्में बनाईं। यश चोपड़ा के परिवार में पत्नी पामेला चोपड़ा एवं दो लड़के आदित्य एवं उदय हैं। यश चोपड़ा 'जब तक है जान' की शूटिंग में व्यस्त थे। स्वास्थ्य खराब होने के कारण फिल्म की शूटिंग के कुछ हिस्सों की शूटिंग को रोक दिया गया था। उन्होंने इस फिल्म के साथ ही फिल्म निर्माण से संन्यास की घोषणा कर दी थी। को उनकी फिल्म 'दाग', 'दीवार', 'चांदनी', 'वक्त', 'सिलसिला' और 'दिल तो पागल है' जैसी फिल्मों के लिए जाना

खुर्शीद और कांग्रेसी ता ता थैय्या

वाकई, अब तो यकीन हो गया है कि कांग्रेस महासचिव दि‍ग्विजय सिंह की दिमागी हालत ठीक नहीं है. उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट दिए जाने की दरकार है. वे कहते हैं कि सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी ने शालीनता से  सारे सवालों का जवाब दे दिया है ऐसे में खुर्शीद के खिलाफ कुछ करने को बचता ही नहीं है. गलत केजरीवाल हैं खुर्शीद नहीं. (लाल रंग के शब्दों पर ख़ास ध्यान दें.) इसी को कहते हैं, पहले चोरी फिर सीना ज़ोरी. चोरों को यह ध्यान में रखने की ज़रूरत है कि अब माना बदल गया है. अब 'सीसीटीवी कैमरा' है, जो चोर को पकड़वाने में बड़ा मददगार है. पर... चोर हैं कि पुराने ढर्रे पर चोरी किए चले जा रहे हैं. सिनेमा भी नहीं देखते. धूम और धूम 2 देखी होती तो चोरी का कोई नया तरीका इज़ाद करते. खैर.. हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है. इसमें कहा गया है कि डॉ. ज़ाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट ने ऐसे गांवों में भी कैंप लगा दिए जो वास्तव में हैं ही नहीं. वाह क्या बात है. यहां दो संभावनाएं नज़र आती हैं - एक संभावना यह है कि वे गांव हैं और भारत सरकार अभी तक उन तक पहुंच नहीं पाई है, उन्हें पहचान नहीं पाई है. हो सकता है कि सल

नवरात्री : मां दुर्गा के साथ बरसेगी हनुमानजी की कृपा!

34 वर्ष बाद नवरात्रि पर अद्भुत संयोग बन रहा है। इसके बाद ये अद्भुत संयोग 27 वर्ष बाद ही बनेगा। इसलिए इस शारदीय नवरात्री में खुशियां ही खुशियां होंगी। इस बार नवरात्री मंगलवार से शुरू होकर मंगलवार को ही पूरे होंगे। यह संयोग 34 वर्ष पूर्व 1978 में बना था। भविष्य में 27 वर्ष बाद 2039 में यह संयोग बनेगा। हालांकि इस बार 9 दिन की बजाए 8 दिन ही मां भगवती की आराधना होगी। मंगलवार को नवरात्र के मंगल कलश की स्थापना होगी और 23 अक्टूबर मंगलवार के दिन ही नवरात्र पूर्ण हो जाएंगे। इस बार भी मंगल अपनी ही राशि वृश्चिक राशि में रहेगा इसलिए मंगल को बल मिलेगा। मंगल प्रबल होने से मंगल ही मंगल होगा। इस योग में मातारानी की विशेष कृपा तो होगी ही साथ ही हनुमानजी की भी कृपादृष्टि होगी। हिन्‍दी डॉट इन डॉट कॉम के साभार से

“Engलिश ग्रंथि से ग्रसित हिन्‍दी फिल्‍म”

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फिल्‍म “इंग्‍लिश-विंग्‍लिश” का नाम सुनते ही ऐसा लगता है, मानों फिल्‍म की कहानी समाज में छाए अंग्रेजी के जादुई छद्म प्रभाव को कुछ हद तक कम करने वाली और इंग्‍लिश नहीं जानने वालों की हीनग्रंथि में आत्‍मविश्‍वास का रस घोलने वाली होगी, लेकिन इस फिल्‍म को देखने के बाद पता चलता है कि यह फिल्‍म इंग्‍लिश नहीं जानने वालों को बडी ही कुशल संवेदना के साथ उनकी औकात दिखा देती है, वहीं चालाकी के साथ अंग्रेजी सीखने के लिए मन में हवा भी भर देती है. व“इंग्‍लिश-विंग्‍लिश” देखने में बडी ही बढिया, शानदार और मनोरंजन प्रधान पारवारिक फिल्‍म है. इसका स्‍वस्‍थ परिवेश किसी भी दर्शक को बडी कुशलता के साथ अंग्रेजी सीखने के लिए ललचा सकता है, इस बात को ध्‍यान में रखते हुए कि अंग्रेजी नहीं सीखने पर इस बाजारवादी समाज में उसकी हालत, घबराई, डरी, सहमी और सबसे छिपती-फिरती “शशि” की तरह ही हो सकती है. दरअसल, यह फिल्म पूंजीवादी मानसिकता से ग्रसित एक ऐसी फिल्‍म है, जिसमें अंग्रेजी को हमारे परिवेश में रिश्‍तों की अहमियत, आपसी स्‍नेह, सम्‍मान और आत्‍मीयता का नया मानक बनाकर उभारा गया है. फिल्‍म में “शशि” उर्फ श्रीदेवी जब अपनी ब