'मिस्त्र में जनाक्रोश जिम्मेदार कौन' विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित


जिम्मेदार : अमेरिकी रणनीति व अन्य अरब देशों में फैला जनाक्रोश
बठिंडा। बठिंडा विकास मंच द्वारा 'मिस्त्र में जनाक्रोश जिम्मेदार कौन' विषय पर विचार गोष्ठी शिव मंदिर स्ट्रीट में लेखक व समाज शास्त्री राजिंदर चावला की अध्यक्षता में आयोजित की गई, जिसमें प्रोफेसर एन के गोसाई मुख्य प्रवक्‍ता के तौर पर उपस्थित हुए। विचार चर्चा शुरू करते हुए बठिंडा विकास मंच के अध्यक्ष राकेश नरूला ने कहा कि वर्तमान राष्ट्रपति के दिन अब गिने चुने रह गए लगते हैं, पिछले तीन दशकों से उन्होंने फौलादी मुट्ठी व फौजी बूट का इस्तेमाल कर विपक्ष को दबाया है, वहां आज स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि आम आदमी जी जान पर खेलकर सड़कों पर उतर आया है। प्रिंसिपल एनके गोसाई ने कहा कि एक जमाने में मिस्त्र की साख अंतर्राष्ट्रीय मंच पर थी, मिस्त्र के राष्ट्रपति नासिर ने न सिर्फ स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण किया बल्कि उसके बाद हुए हमलों में साम्राज्‍यवादियों के दांत खट्टे किए, जबकि मिस्त्र ने आसवान बांध का निर्माण किया तो अरबों का सिर गर्व से उंच्चा हो गया। हजारों साल पहले बने पिरामिड इस बात के गवाह हैं कि मिस्त्र की संस्कृति प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है, उपनिवेशिक काल में मिस्त्र पर फ्रांसीसी व ब्रिटिश प्रभाव पड़ा, इसलिए वह पश्चिमी तौर तरीकों वाला बना, इस कारण उसे अमरीकी दलाल कहा जाने लगा, अब वहां आपातकाल जैसी स्थिति बन गई है एवं उद्योग पूरी तरह अस्त व्यस्त हो गया, जिसका बुरा प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पड़ा है। सबसे बड़े कपास उत्पादक देश में अब यह आलम है कि जनता राष्ट्रपति हुस्‍नी मुबारक के खून की प्यासी हो गई है, इसके पीछे कट्टर पंथी इस्लामिक बिरादरी का हाथ भी हो सकता है, क्‍योंकि लेबनान में हिजबुला की सक्रियता मिस्त्र को आशंकित करती रही है, मिस्त्र में ही नहीं अन्य अरब देशों में जैसे अलजीरिया, मौरक्को, जार्डन आदि में भी जनता जागरूक होकर तानाशाही विरूद्ध आजादी का बिगुल बजा चुकी है, इस सभी का प्रभाव मिस्त्र पर पड़ा, जिसके कारण मिस्त्र में जनाक्रोश हुआ। राजिंदर चावला ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि मौजूदा हालात के लिए कुटिल अमेरिकी रणनीति भी जिम्मेदार है, अमरीका अब समझ चुका है कि भ्रष्ट व कुनबाप्रस्त हुस्नी मुबारक अब अधिक दिन सत्‍ता में रहने वाले नहीं, इसलिए अब उन्हें अमेरिकी सहयोग नहीं मिल रहा है, यह तो तय है कि अमेरिकी हकूमत हुस्नी मुबारक के जाने के पक्ष में है, वह यह भी प्रयास करेंगे कि नया राष्ट्रपति आए वह उनके कहने में हो व उनके इशारों पर चले। अमेरिका के करीबी माने जाने वाले मिस्त्र के वैज्ञानिक नॉबेल पुरस्कार विजेता अल वरदोई मिस्त्र में सक्रिय हो गए हैं, वे कह रहे हैं कि यदि मिस्त्र की जनता उन्हें राष्ट्रपति की जिम्मेदारी सौंपेगी तो वे इसे स्वीकार करेंगे। सेवा राम सिंगला ने कहा कि मिस्त्र की बरबादी के लिए अमेरिकी नीतियां भी जिम्मेदार हैं। मध्यपूर्व के तेल भंडार पर कब्‍जा बनाए रखने की अमेरिकी रणनीति से मिस्त्र में इस तरह के हालात पैदा हुए हैं। इस समय बहुत सारे अरब देशों में जनाक्रोश फैला हुआ है, जिसका फायदा सीधे तौर पर अमेरिका को होगा।

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