पेंटी, बरा और सोच

कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर रात को मंदिर घूमने का मन हुआ, सब घर से मंदिर के लिए निकले। यह मंदिर इंदौर शहर के बीचोबीच राजवाड़ा में स्थित है। जिस गली में मंदिर है, उस गली में लेडीज अंडरगार्मेंट से लैस बहुत सारी लारियां गली की एक साइड खड़ी होती हैं। पेंटी बरा एवं अन्य सामान लारी वालों ने टंग रखा होता है, ये स्थिति तो आपको कहीं भी दिखाई पड़ सकती है। जब हम वहां से गुजर रहे थे, मेरे साथ सबसे अगले चल रहे मेरे दोस्त ने इनको देखते हुए नजरें नीची कर ली और हंसने लगा। मैंने पूछा क्या हुआ? वो बोला देखो, सालों ने कैसे कपड़े लटकाए हुए हैं। मैंने कहा कि महिलाओं के भीतर पहने वाले कपड़े ही तो हैं, तुम जो अंडर गारमेंट पहनते हो, क्या वो अलग कपड़े से बने होते हैं। वो कहने लगा, मुझे याद आ गया जब मैं और वो यहां से गुजरते थे तो बहुत जल्दी से मैं उसके साथ इधर उधर नजर दौड़ाए बिना यहां से निकल जाता था, था इस लिए लिख रहा हूं अब वो किसी और की होने जा रही है। मैंने उसको कहा कि आज तुम 25 साल के हो गए, लेकिन आज भी तेरी सोच पच्चीस पहले वाले लोगों जैसी है।


वो कुछ नहीं बोला, मन ही मन में हंसता हुआ मेरे साथ आगे बढ़ गया। मैंने सोचा शायद, इसने भी अपनी प्रेमिका को पहली बार अन्य भारतीय युवाओं की तरह सबसे पहले पेंटी बरा ही गिफ्ट में दी हो गई। मैंने ज्यादातर युवक देखें हैं, जो सबसे पहले अपनी प्रेमिका को ये वाला गिफ्ट देते हैं। याद रहे मैं सब नहीं कह रहा। इसके भी कई कारण हो सकते हैं, शायद युवाओं का बजट कम होता है, या फिर प्रेमिका को वो गिफ्ट दिया जाए जो उसके घरवालों को भी पता न लगे, या फिर वो अपनी प्रेमिका को इन कपड़ों में देखना चाहते हैं। मैंने आज तक किसी को ऐसा गिफ्ट तो क्या कोई भी गिफ्ट नहीं दिया, जबकि मैंने भी लव मैरिज की है।

मुझे याद आ रहा है, एक दिन टीवी पर विज्ञापन चल रहा था, जिसमें हम साथ साथ हैं वाली अदाकारा आती है, जो फिल्म में सलमान की मां का रोल अदा करती है। वो पेंटी का विज्ञापन कर रही थी, इस विज्ञापन को देख कर मेरे बगल मैं बैठे एक पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करके आए युवक ने जोर जोर से हंसना शुरू कर दिया। बोला साले ये भी क्या दिखाते रहते हैं, मैंने सोचा, बचपन से चड्ढी की मशहूरी देखता आया है तब तो ऐसे कभी नहीं बोला होगा। अगर आज महिलाओं के लिए बने अंडरगार्मेंट की टीवी पर एड आ गई तो ये बोल रहा क्या दिखा रहे हैं। आखिर इसमें बुराई है क्या है, कपड़े ही तो हैं, लेकिन आदमी की सोच का क्या करें। जो आज भी कई साल पहले वाले व्यक्तियों की तरह सोच रखता है। कितनी इत्तफाक की बात है जब मल्लिका शेरावत, करीना कपूर, मनिषा लांबा बिकनी पहनकर समुद्र से निकलती हैं तो सबसे ज्यादा तालियां सिनेमा हाल में युवा ही बजाते हैं, तब इनकी निगाहें इस गली से निकलते वक्त की तरह क्यों नहीं झुकती? तब इनके भीतर की शर्म कहां मर जाती है? महिलाओं के कपड़ों में नहीं दोष तो इनकी आंखों और सोच में है।


टिप्पणियाँ

  1. भई यही तो है बाज़ार वाद जिसमे अब सब कुछ बिकाऊ है ।

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  2. भय्या अब क्या दोषा रोपण करें.....
    इसी पर एक घटना याद आई मेरे एक मित्र ने अपने फोटोग्राफी का पूर्ण कौशल दिखाते हुए ऐसे ही एक विज्ञापन के बोर्ड के नीचे खड़े मेरी इस प्रकार फोटो ली की लगता था की कंपनी की तरफ से विज्ञापन के लिए भेजा गया हूँ...... फिर क्या उसे दिखा-दिखा कर सब ने खूब आइसक्रीम खाई मुझसे.....

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