संदेश

सावधान। एमएलएम बिजनस से

बढ़ती महंगाई और मिलावट से बचने के लिए एमएलएम, मतलब मल्‍टी लेवल मार्कटिंग बिजनस अच्‍छा है, मगर कोई अच्‍छी चीज गलत लोगों के हाथों में बुरे परिणाम देती है, जैसे कि पागल के हाथ में तलवार, आतंकवादियों के हाथ में गोला बारूद। बारूद तलवार बुरी चीजें नहीं, मगर गलत लोगों के हाथों में पड़ते ही गलत परिणाम देने लगती हैं। वैसे ही हिन्‍दुस्‍तान में एमएलएम बिजनस को लेकर हो रहा है। एमएलएम बिजनस के नाम पर करोड़ों रुपए की ठगी मारी जा रही है, इसलिए सावधान रहने के लिए कह रहा हूं। आज के युग में एमएलएम एक बेहतरीन बिजनस है, अगर करना है तो एक अच्‍छी एमएलएम कंपनी चुनिए। मैं आपको किसी कंपनी विशेष के लिए सिफारिश नहीं करूंगा, लेकिन एक अच्‍छी कंपनी चुनने के लिए सुझाव दे सकता हूं। सबसे पहले कंपनी के पास विजन होना चाहिए, एक बेहतर कल का। उसका प्रोडेक्‍ट बेस होना चाहिए। मार्किट भाव पर सामान उपलब्‍ध करवाए, क्‍योंकि एमएलएम को एडवाटाइजमेंट पर पैसा नहीं खर्च होता, वह ग्राहक के द्वारा भी प्रचार करवाती है। एमएलएम के लिए हिन्‍दुस्‍तान में अभी कोई लगाम कसने वाला कोई विभाग नहीं, इसलिए व्‍यक्‍ितयों खुद ही सावधान रहना होगा।  नह

"हारने के लिए पैदा हुआ हूं"

नॉर्मन विन्‍सेंट पील अपनी पुस्‍तक "पॉवर आफ द प्‍लस फेक्‍टर" में एक कहानी बताते हैं, "हांगकांग में काउलून की घुमावदार छोटी सड़कों पर चलते समय एक बार मुझे एक टैटू स्‍टूडियो दिखा। टैटुओं के कुछ सैंपल खिड़की में भी रखे हुए थे। आप अपनी बांह या सीने पर एंकर या झंडा या जलपरी या ऐसी ही बहुत सी चीजों के टैटू लगा सकते थे, परंतु मुझे सबसे ज्‍यादा अजीब बात यह लगी कि वहां पर एक टैटू था, जिस पर छह शब्‍द लिखे हुए थे, "हारने के लिए पैदा हुआ हूं"। अपने शरीर पर टैटू करवाने के लिए यह भयानक शब्‍द थे। हैरानी की स्‍िथति में मैं दुकान में घुसा और इन शब्‍दों की तरफ इशारा करके मैंने टैटू बनाने वाले चीनी डिजाइनर से पूछा क्‍या कोई सचमुच इस भयानक वाक्‍य हारने के लिए पैदा हुआ हूं वाले टैटू को अपने शरीर पर लगाता है? उसने जवाब दिया, हां कई बार मैंने कहा, परंतु मुझे यकीन नहीं होता कि जिसका दिमाग सही होगा वह ऐसा करेगा। चीनी व्‍यक्‍ित ने अपने माथे को थपथपाया और टूटी फूटी इंग्‍लिश में कहा, शरीर पर टैटू से पहले दिमाग में टैटू होता है। लेखक इस कहानी के मार्फत कहना चाहता है, जो हम को मिलता है

माहौल बदलो, जीवन बदलेगा

मेरा बेटा, गोल्‍ड मेडलिस्‍ट है, देखना उसको कहीं न कहीं बहुत अच्‍छी नौकरी मिल जाएगी। शाम ढले बेटा घर लौटता है और कहता है कि पापा आपका ओवर कोंफीडेंस मत खा गया, मतलब जॉब नहीं मिली। इंटरव्‍यूर, उसका शानदार रिज्‍यूम देखकर कहता है, कुनाल चोपड़ा, तुम्‍हारा रिज्‍यूम इतना शानदार है कि इससे पहले मैंने कभी ऐसा रिज्‍यूम नहीं देखा, लेकिन अफसोस की बात है कि तुमने पिछले कई सालों से कोई केस नहीं लड़ा। यह अंश क्‍लर्स टीवी पर आने वाले एक सीरियल परिचय के हैं, जो मुझे बेहद पसंद है, खासकर सीरियल के नायक कुनाल चोपड़ा के बिंदास रेवैया के कारण। कितनी हैरानी की बात है कि एक पिता अपने इतने काबिल बेटे को दूसरों के लिए कुछ पैसों खातिर कार्य करते हुए देखना चाहता है। इसमें दोष उसके पिता का नहीं बल्‍कि उस समाज, माहौल का है, जिस माहौल समाज में वह रहते हैं, कुणाल चोपड़ा गोल्‍ड मैडलिस्‍ट ही नहीं बल्‍कि एक बेहतरीन वकील है, मगर उसका परिवार तब बेहद खुद होता है, जब उसकी प्रतिभा को वही फार्म कुछ पैसों में खरीद लेती है, जिसके इंटरव्‍यूर ने कुणाल चोपड़ा को रिजेक्‍ट कर दिया था। ऐसी कई कंपनियां हैं, जहां पर एक से एक प्रतिभावान

आपकी सफलता, आपकी क्षमता पर निर्भर है

उस कड़क की दोपहर में, गेहूं की कटाई के वक्‍त मेरे पिता ने मेरे एक सवाल पर, एक बात कही थी, जो मुझे आज बहुत ज्‍यादा प्रेरित करती है, और जिस बिजनस में मैं हूं उसको आगे बढ़ाने के लिए अहम योगदान अदा करती है। मैंने गेंहूं काटते हुए ऐसे पूछ लिया था, यह कितने समय में कट जाएगी, तो उन्‍होंने एक कहानी सुनाई। एक किसान था, कड़कती दोपहर में सड़क किनारे खेतों में काम कर रहा था, एक राह चलते राहगीर ने उससे पूछा कि फलां गांव कितनी दूर है, तो उसने जवाब दिया 25 मील। जवाब मिलते ही राहगीर ने दूसरा जवाब दाग दिया, मुझे पैदल चलते हुए वहां पहुंचने में कितना वक्‍त लगेगा ? राहगीर के इस सवाल पर किसान ने कोई उत्‍तर न दिया, और अपने काम में पूर्ण रूप से मस्‍त हो गया। राहीगर ने तीन दफा किसान से वही सवाल पूछा, मगर किसान ने कोई जवाब नहीं दिया। गुस्‍से में आगबगुला होकर राहगीर चल दिया, राहगीर कुछ दूर ही गया था, कि पीछे से आवाज आई कि बस इतना समय लगेगा। राहगीर मुड़कर बोला, पहले नहीं बोल सकते थे, तो किसान ने उत्‍तर दिया मुझे तुम्‍हारी रफतार का पता नहीं था। सच में जब तक आप अपनी प्रतिभा उजागर नहीं करोगे, तब तक कोई भला कैसे बता

एक एक लम्‍हे से खूबसूरत जिन्‍दगी बनती है, संग्रह करो खूबसूरत लम्‍हों का

जिन्‍दगी के बारे में अक्‍सर कहा जाता है, जिन्‍दगी सफर है, मगर जब मै किसी भी भारतीय को देखता हूं तो मुझे यह दौड़ और उबाऊ पदचाल से ज्‍यादा कुछ नजर नहीं आती। प्रत्‍येक खूबसूरत लम्‍हा, एक दूसरे लम्‍हे से मिलकर एक खूबसूरत जिन्‍दगी का निर्माण करता है, लेकिन अफसोस है कि मानव को लम्‍हे की कीमत का अंदाजा नहीं, यह वैसे ही जैसे विश्‍व, दो प्राणी मिलते हैं, तो एक रिश्‍ता, और रिश्‍ता परिवार, एक समूह, समूह एक समाज, और समाज मिलकर एक विशाल विश्‍व का निर्माण करता है, वैसे ही हर एक खूबसूरत लम्‍हा जिन्‍दगी को खुशनुमा बना देता है। हमारे यहां बच्‍चों को सिखाया जाता है, देखो बेटा बूंद बूंद से तालाब भरता है, अगर तुम एक एक पैसा बचाओगे तो तुम्‍हारे पास धीरे धीरे बहुत सारे पैसे हो जाएंगे, मगर यह बात पैसों के संदर्भ में कही जाती है, कोई जिन्‍दगी के संदर्भ में नहीं कहता, कि अगर आप जिन्‍दगी के खूबसूरत लम्‍हों का संग्रह करोगे तो एक खुशहाल जिन्‍दगी जी पाओगे। मानव की इस शिक्षा ने मानव जीवन को सफर से दौड़ बनाकर रख दिया, जब आदमी भाग भागकर थक जाता है, तो कहता है जिन्‍दगी साली बेकार है, मगर वह भूल जाता है कि उसकी दौड़