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अपनों के खून से सनते हाथ

अपनों के खून से सनते हाथ, आदम से इंसान तक का सफर अभी अधूरा है को दर्शाते हैं। झूठे सम्मान की खातिर अपनों को ही मौत के घाट उतार देता है आज का आदमी। पैसे एवं झूठे सम्मान की दौड़ में उलझे व्यक्तियों ने दिल में पनपने वाले भावनाओं एवं जज्बातों के अमृत को जहर बनाकर रख दिया है, और वो जहर कई जिन्दगियों को एक साथ खत्म कर देता है। पाकिस्तान की तरह हिन्दुस्तान में भी ऑनर किलिंग के मामले निरंतर सामने आ रहे हैं, ऐसा नहीं कि भारत में ऑनर किलिंग का रुझान आज के दौर का है, ऑनर किलिंग हो तो सालों से रही है, लेकिन सुर्खियों में अब आने लगी है, शायद अब पाकिस्तान की तरह हिन्दुस्तानी हुक्मरानों को भी चाहिए कि वो भी मर्दों के लिए ऐसे कानून बनाए, जो उनको ऐसे शर्मनाक कृत्य करने की आजादी मुहैया करवाए। पाकिस्तानी मर्दों की तरह हिन्दुस्तानी मर्द भी औरतों को बड़ी आसानी से मौत की नींद सुला सके, वो अपना पुरुष एकाधिकार कायम कर सकें। वोट का चारा खाने में मशगूल सरकारें मूक हैं और खाप पंचायतें अपनी दादागिरी कर रही हैं। इन्हीं पंचायतों के दबाव में आकर माँ बाप अपने बच्चों को मौत की नींद सुला देते हैं, जिनको जन्म देने ए

क्या देखते हैं वो फिल्में...

मंगलवार को एक काम से चंडीगढ़ जाना हुआ, बठिंडा से चंडीगढ़ तक का सफर बेहद सुखद रहा, क्योंकि बठिंडा से चंडीगढ़ तक एसी कोच बसों की शुरूआत जो हो चुकी है, बसें भी ऐसी जो रेलवे विभाग के चेयर कार अपार्टमेंट को मात देती हैं। इन बसों में सुखद सीटों के अलावा फिल्म देखने की भी अद्भुत व्यवस्था है। इसी व्यवस्था के चलते सफर के दौरान कुछ समय पहले रिलीज हुई पंजाबी फिल्म मिट्टी देखने का मौका मिल गया, जिसके कारण तीन चार घंटे का लम्बा सफर बिल्कुल पकाऊ नहीं लगा। पिछले कुछ सालों से पुन:जीवित हुए पंजाबी फिल्म जगत प्रतिभाओं की कमी नहीं, इस फिल्म को देखकर लगा। फिल्म सरकार द्वारा किसानों की जमीनों को अपने हितों के लिए सस्ते दामों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले करने जैसी करतूतों से रूबरू करवाते हुए किसानों की टूटती चुप्पी के बाद होने वाले साईड अफेक्टों से अवगत करवाती है। फिल्म की कहानी चार बिगड़े हुए दोस्तों से शुरू होती है, जो नेताओं के लिए गुंदागर्दी करते हैं, और एक दिन उनको अहसास होता है कि वो सही अर्थों में गुंडे नहीं, बल्कि सरदार के कुत्ते हैं, जो उसके इशारे पर दुम हिलाते हैं। वो इस जिन्दगी से निजा

किसान एवं टुकड़े दो रचनाएं

किसान फटे पुराने मटमैले से कपड़े टूटे जूते मटमैले से जख्मी पैर कंधे पर रखा परना ढही सी पगड़ी अकेले ही खुद से बातें करता जा रहा है शायद मेरे देश का कोई किसान होगा। परना- डेढ़ मीटर लम्बा कपड़ा टुकड़े बचपन में जब एक रोटी थी, तो माँ ने दो टुकड़े कर दिए, एक मेरा, और एक भाई का लेकिन जब हम जवान हुए, तो हमने घर के दो टुकड़े कर दिए एक पिता का, और एक माई का। नोट :- उत्सव परिकल्पना 2010 में पूर्व प्रकाशित रचनाएं।

कितने और हैं पैसे और शहीदी ताज?

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कुलवंत हैप्पी कितने शहीदी ताज और मुआवजा देने के लिए पैसे हैं, शायद सरकार के लेखाकार और नीतिकार सोच रहे होंगे? साथ में यह भी सोच रहे होंगे कि बड़ी मुश्किल से हवाई हादसे की ख़बर के कारण जनता का ध्यान बस्तर से हटा था, नक्सलवाद से हटा था। चलो अफजल गुरू को फाँसी भले ही अब तक नहीं दे सके, लेकिन कसाब को फाँसी की सजा सुनाकर जनता की आँख में धूल तो झोंक ही दी, जो आँखें बंद कर जीवन जीने में व्यस्त है। आजकल तो हमारे पास कोई नेता भी नहीं बचा, जो मीडिया में गलत सलत बयानबाजी कर निरंतर हो रहे नक्सली हमलों से मीडिया का और जनता का ध्यान दूर खींच सके। देखो न कितना कुछ है सोचने के लिए सरकार के सलाहकारों के पास। आप सोच रहे होंगे क्या सलाहकार सलाहकार लगा रखी है, बार बार क्यों लिख रहा हूँ सलाहकार। लेकिन क्या करूं, देश के उच्च पदों पर बैठे हुए नेतागण भी फैसला लेने से पहले अपने सलाहकारों से बात करते हैं, सलाहकार भी नेताओं से चालू हैं, वो भी वहाँ बैठे बैठे ही टेबल स्टोरी जर्नलिस्ट की तरह बैठे बैठे लम्बी चौड़ी स्टोरियों सी सलाहें नेताओं के दे डालते हैं, जो वास्तविकता से कोसों दूर होती हैं। जनता की आँख में धूल

बुजुर्ग की खुशी का रहस्य

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मैं कभी नहीं भूल सकता, एक बड़ा सा घर, और वो बुजुर्ग, जो सुबह सुबह मुझे गैलरी में खड़ा मिलता है। मैं उसको देखता हूँ, वो मुझे देखता है। हल्की सी मुस्कान का आदान प्रदान होता है दोनों में, और फिर मैं आगे बढ़ जाता हूँ, बिना कुछ बोले। इस तरह की वार्तालाप कई दिनों तक चलती है हम दोनों में, लेकिन एक दिन होठों की मुस्कान छोटे से बोलते संवाद में बदलती है, और मैं पूछ बैठता हूँ, आपकी खुशी का राज क्या है? मैं जानना चाहता हूँ, दुनिया में मुझे हर शख्स दुखी मिलता है, लेकिन आपका चेहरा देखते ही दुनिया भर के दुखी लोग मेरी आँख से ओझल हो जाते हैं, क्यों?। जवाब में वो बुजुर्ग उंगली का इशारा सामने की ओर करता है, यहाँ पर सरकारी जमीं पर एक झुग्गी बनी हुई है, जिसमें कम से कम पाँच लोग रहते हैं मुर्गे मुर्गियों (कॉक एंड हैनकॉक) के साथ।