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सवारी अपने सामान की खुद जिम्मेदार

"सवारी अपने सामान की खुद जिम्मेदार" भारतीय बसों एवं रेलगाड़ियों में लिखा तो सबने पढ़ा ही होगा क्योंकि भारत में 99.9 फीसदी बसों रेलगाड़ियों पर ऐसा लिखा तो आम मिल जाता है। बसों व रेल गाड़ियों में लिखी ये पंक्ति आपको सफर करते वक्त चौकस रहने के लिए प्रेरित करती है और कहती है कि अगर आपका सामान गुम होता है तो उसकी जिम्मेदारी आपके सिर होगी। इस पंक्ति के चलते शायद हम सब चौकस हो जाते हैं, और अपने सामान को बहुत ध्यान के साथ रखते हैं। पिछले दिनों सादगी के चक्कर में राहुल गांधी एवं अन्य सियासतदानों ने रेलगाड़ी में यात्रा की, शायद उन्होंने भी इस पंक्ति को पढ़ लिया है। यकीन नहीं होता तो याद करो गृह मंत्री पी.चिदंबरम के बयां को, याद करो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयां को और कल आए सेना प्रमुख दीपक कपूर के बयां को। इन सभी के बयां एक ही बात कह रहे हैं कि भारत पर फिर से मुम्बई आतंकवादी हमले जैसे हमले हो सकते हैं। बसों एवं रेलगाड़ियों में लिखी पंक्ति भी यही कहती है, लेकिन कहने का ढंग कुछ अलग होता है। वहां पर अगर ऐसा लिख दिया जाए कि आपका सामान चोरी हो सकता है, आपकी जेब कट सकती है, मगर वहां ऐसा नहीं

मां और पत्नी के बीच अंतर

मां बन बिगाड़ती है औरत। पत्नी बन संवारती है औरत॥ सत्य है या कोरा झूठ। मुझे नहीं पता, लेकिन पिछले सालों में जो मैंने देखा और महसूस किया। उसको समझने के बाद मुझे कुछ ऐसा ही लगा। मां भी एक औरत है और पत्नी भी, इन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है, फर्क है। बतियाने से कुछ नहीं होने वाला, चलो फर्क ढूंढने निकलते हैं। एक बच्चे का बाप बोल रहा "ये क्या कर रहे हो, हैप्पी! बस्ता सही जगह रखो" अब मां और एक पत्नी बोली "बच्चा है, कोई बात नहीं जाने दो"। हैप्पी अब जवान हो गया, किसी का पति हो गया। अब फिर एक पत्नी बोली "तुमने ये ऑफिस बैग कहां रखा है, तुमको बिल्कुल समझ नहीं"। याद रहे कि अब वो अकेली पत्नी है। अब हैप्पी सोचता है कि मां तुमने पहले बिगाड़ क्यों था, क्या पत्नी की डाँट खाने के लिए। समीर तुमको कितने बार कहा है कि जूते सही जगह रखा करो और जहां वहां मत फेंका करो। एक पत्नी बोल रही है। अब उसको भी मां की याद आ रही है, जो कहती थी, कोई बात नहीं जब समीर एक जूते को इस कोने में तो दूसरे जूते को किसी ओर कोने में फेंक देता था और सुबह होते ही दोनों जूते एक जगह मिलते थे। क्या ऑफिस ज

लंडन ड्रीम्स- द बेस्ट मूवीज

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विपुल अमृतलाल शाह मेरी उम्मीदों पर खरा उतरा, बाकी का तो पता नहीं, बेशक हाल में तालियों की गूंज सुनाई दे रही थी और ठहाकों की भी। आँखें, वक्त, नमस्ते लंडन, सिंह इज किंग के बाद विपुल शाह की लंडन ड्रीम्स को भी शानदार फिल्मों की सूची में शुमार होने से कोई नहीं रोक सकता, खासकर मेरी मनपसंद शानदार फिल्मों की सूची से। सिंह इज किंग भले ही अनीस बज्मी ने निर्देशित की हो, लेकिन विपुल शाह का योगदान भी उसमें कम नहीं था, क्योंकि एक अच्छा निर्माता एक निर्देशक को अपने ढंग से काम करने के लिए अवसर देता है। लंडन ड्रीम्स शुरू होती है अजय देवगन (अर्जुन) से, जो संघर्ष कर सफलता की शिखर पर है, लेकिन वो अपने सपनों के लिए अपनों को खोने से भी भय नहीं खाता। वो बचपन से माईकल जैक्सन बनना चाहता है, लेकिन उसके पिता को गीत संगीत से नफरत है। वो भगवान से दुआ करता है कि उसके रास्ते की सब रुकावटें दूर हो जाएं। अचानक उसके पिता की मौत हो जाती है और उसका चाचा ओमपुरी उसको लंडन ले जाता है, जो उसका ख्वाब है। वो एयरपोर्ट से ही अपने चाचा का साथ छोड़कर सपनों को पूरा करने के लिए निकल पड़ता है। संघर्ष करते करते वो अपने सपने की तरफ अग्रस

गुरदास मान वो दीया है जो तूफानों में....

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दूसरा माइकल जैक्सन, दूसरा अमिताभ बच्चन, दूसरा सचिन तेंदुलकर जैसे मिलना मुश्किल है, वैसे ही पंजाबी संगीतप्रेमियों को दूसरा गुरदास मान मिलना मुश्किल है। मुश्किल ही नहीं मुझे तो नामुमकिन लगता है। आने वाली 4 जनवरी 2010 को गुरदास मान 53 वर्ष के हो जाएंगे, लेकिन उनकी स्टेज पर्फामेंस (लाईव शो) आज भी युवा गुरदास मान जैसी है। वर्ष 1980 को पंजाबी संगीत जगत में कदम रखने वाले गुरदास मान ने पिछले तीन दशकों में पंजाबी संगीत को इतना कुछ दिया है, जिसकी कल्पना कर पाना भी मुश्किल है। गीतों में खुद को 'मरजाना मान' कहने वाले गुरदास मान ने अपनी आवाज और अपने लिखे हुए गीतों की बदौलत पंजाबी संगीत में वो रुतबा हासिल कर लिया है जो यमले जट्ट ने हासिल किया था। जट्ट यमला की तूंबी की तरह गुरदास की डफली भी संगीत में अपनी अनूठी छाप छोड़ चुकी है। उसके गाए हुए गीत लोकगीत बनते जा रहे हैं, यमले जट्ट के गाए गीतों की तरह। इन तीन दशकों में पता ही नहीं कितने गायक आएं और चले गए, मगर गुरदास मान समय के साथ साथ सफलता की शिखर की तरफ बढ़ता चला गया। इन दशकों में ड्यूट का आंधी आई, पॉप की आंधी आई, फिर ड्यूट की आंधी, लेकिन गुर

बे-लिबास बेबो, बुरे वक्त की निशानी

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"पैसा मारो मुंह पर, कुछ भी करूंगा" यह संवाद अरुण बख्सी छोटे पर्दे पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक 'जुगनी चली जलंधर' में बोलते हैं, ये वो ही अरुण बख्सी हैं जो कभी 'अजनबी' नाम के एक हिन्दी धारावाहिक में "बोल मिट्टी दे बावेया" गुनगुनाते हुए नजर आते थे। उस संवाद में भी एक खरा सत्य था और इस नए संवाद में भी बहुत सत्य है। किसी दूसरे पर यह संवाद फिट बैठे न बैठे, लेकिन कपूर खानदान की बेटी करीना कपूर पर तो बिल्कुल सही बैठता है। यकीनन न आता हो तो पिछले कुछ सालों पर निगाह मारो। शाहरुख के साथ डॉन में फिल्माया गया गीत हो, या अजनबी में अक्षय कुमार के साथ फिल्माए कुछ दृश्य। यशराज बैनर्स की सुपर फ्लॉप फिल्म टश्न में बिकनी पहनकर सबको हैरत में डाल देने वाली करीना ने इस पर आलोचना होते देख कहा था कि अब को बिकनी नहीं पहनेगी। देखो वादे की कितनी पक्की हैं, बिल्कुल सही, उन्होंने बिकनी पहनना भी छोड़ दिया। अब तो वो टॉपलेस हो गई हैं। कमबख्त इश्क में अक्षय के साथ कई किस सीनों से जब मन नहीं भरा तो कुर्बान में सैफ अली खान के साथ सब से लम्बा किस और फिल्म की चर्चा के लिए टॉपलेस