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बाल कलाकारों की सफलता खटकी क्या ?

होटल पर बर्तन मांझते हुए, सड़कों पर बज़री कूटते हुए एवं घरों में झाड़ू आदि निकालते हुए बाल मजदूर तो दिखाई नहीं पड़े, लेकिन कितनी अजीब बात है कि सफलता की शिखर को छूते हुए नन्हे कलाकार महाराष्ट्र की नज़र से नहीं बच पाए। महाराष्ट्र सरकार ने कल पांच सीरियल निर्माताओं को नोटिस जारी कर दिया, क्योंकि उनके सीरियलों में नन्हें कलाकार नजर आते हैं। ऐसा कुछ भी नहीं कि इन सीरियलों के सिवाए अन्य सीरियलों में नन्हे कलाकार नहीं हैं, लेकिन उन सीरियलों के किरदारों को इतनी लोकप्रियता हासिल नहीं हुई, जितनी कि उतरन, बालिका वधू, चक्क दे बच्चे, जय श्रीकृष्णा आदि को हुई है। शायद इन नन्हे कलाकारों की सफलता ही महाराष्ट्र को खटक गई। नहीं तो अन्य सीरियलों को भी नोटिस निकाले जाते, जैसे कि जंग नन्हे हंस गुल्लों की, करिश्मा का करिश्मा, तारक मेहता का उल्टा चश्मा एवं अन्य रिलायटी शो, जिन्हें बच्चे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हैं। फिल्म जगत के जानकार बताते हैं कि नन्हे कलाकारों से पांच घंटे ही काम लिया जाता है। मगर इसकी तुलना में होटलों पर काम करने वाले बच्चों से तो आठ नौ घंटों तक निरंतर काम करवाया जाता है। उनकी तरफ सरकार क

किस्सा 'किस' का

आजकल विशाल भारद्वाज की शाहिद कपूर प्रियंका चोपड़ा अभिनीत 'कमीने' और राकेश रोशन की रितिक रोशन बार्बरा मोरी अभिनीत फिल्म 'काइट्स' चर्चा में है, दोनों फिल्मों शायद बॉक्स ऑफिस पर आमने सामने भी हो सकती हैं। इन दोनों फिल्मों में एक और समानता भी है, वो है 'लिपलॉक'। जी हां, शाहिद कपूर और प्रियंका चोपड़ा ने कमीने के लिए एक किस सीन दिया है, जिसको सबसे पहले रिलीज किया गया है, इसके अलावा अनुराग बासु निर्देशित फिल्म 'काइट्स' में रितिक रोशन एवं बार्बरा ने किस सीन दिया है, जबकि इस फिल्म में कंगना भी है। सुनने में आया है कि इस सीन को स्पेशल राकेश रोशन के कहने पर फिल्माया गया है, शायद राकेश रोशन जानते हैं कि महंगे बजट की इस फिल्म से लागत निकालने के लिए कोई तो हथकंडा पड़ेगा, नहीं तो फिल्म अपना बजट भी पूरा नहीं कर पाएगी। किस सीन सबसे पहले हिन्दी फिल्मों में शायद हिमांशु राय और देविका ने फिल्म कर्मा (1933) में दिया था, जिसको विदेशी निर्देशक ने निर्देशित किया था। उसके बाद बॉलीवुड की दर्जनों फिल्मों में किस सीन फिल्माए गए, लेकिन कुछ विवादित रहे तो कुछ फिल्म को हिट करवाने में साब

क्या लौटेगी बॉलीवुड की रंगत !

फिल्म निर्माता और मल्टीप्लेक्स वालों के बीच समझौता होने की संभावनाएं बन चुकी है, लगता है जल्द ही बॉलीवुड के लिए खुल जाएंगे मल्टीप्लेक्सों के दरवाजे, और दर्शक पहले की तरह दस्तक देंगे, इस साल के छ: महीने गुजर चुके हैं, और अभी छ: बाकी हैं। पहले छ: महीनों में बॉलीवुड कोई करिश्मा नहीं दिखा सका, बॉक्स ऑफिस पर अक्षय कुमार दो एवं शाहरुख खान एक फ्लॉप दे चुके हैं, अगर इस हफ्ते के दौरान मल्टीप्लेक्सों के कपाट खुलते हैं तो बॉलीवुड से दस्तक देने वालों की लम्बी कतार है, जिनमें सबसे पहले अक्षय कुमार, रितिक रोशन, शाहिद कपूर, जॉन इब्राहिम दस्तक देंगे। अक्षय कुमार ने साल की शुरूआत जनवरी में फिल्म 'चांदनी चौक टू चाइना' से की, लेकिन सफर बिल्कुल उबाऊ था, अक्षय कुमार और दीपिका पादुकोण को चांदनी चौक से चाइना तक सफर करवाने वाली फिल्म निर्माता कंपनी को मोटा नुक्सान झेलना पड़ा, जबकि शाहरुख खान की होम प्रोडक्शन कंपनी रेड चिलीज़ को भी बिल्लू ने तगड़ा झट्टका दिया है। अगर कोई कमाऊ फिल्म निकली तो वो थी अनुराग बासु की कम बजट में जर्बदस्त था फिल्म, जिसने बॉक्स ऑफिस पर मोटी कमाई की और अभय दिओल के डूबते कैरियर तो स

कविता-सड़क

टहल रहा था, एक पुरानी सड़क पर सुबह का वक्त था सूर्य उग रहा था, पंछी घोंसलों को छोड़ निकल रहे थे दूर किसी की ओर इस दौरां एक आवाज सुनी मेरे कानों ने सड़क कुछ कह रही थी ये बोल थे उसके कोई पूछता नहीं मेरे हाल को कोई समझता नहीं मेरे हाल को आते हैं, जाते हैं हर रोज नए नए राहगीर ओवरलोड़ ट्रकों ने, बसों ने दिया जिस्म मेरा चीर सिस्कती हूं, चिल्लाती हूं, बहाती हूं, अत्यंत नीर फिर भी नहीं समझता कोई मेरी पीर

नहीं चखी चार दिन से सब्जी

मैं बठिंडा के लिए निकला और नागदा से मुझे फिरोजपुर जनता पकड़नी थी, लेकिन वो गाड़ी रात को दस बजे के करीब आती है, मैंने सात बजे नागदा पहुँच गया, सोचा क्यों न, नागदा की सैर कर ली जाये, मैं बाज़ार घूमते घूमते बाज़ार के बीचों बीच पहुँच गया, यहाँ कुछ महिलाऐं एवं पुरुष धरने पर बैठे हुए, वहां पर लगे बोर्ड पढने के बाद पता चला के वो सब्जी भाजी वाले हैं, जिनकी जगह छीन ली गयी है, कहो तो उनकी रोजीरोटी छीन ली, वो अपनी मांग को लेकर पिछले सोमवार से बैठे हुए हैं, दिलचस्प बात तो ये है के पिछले सोमवार से जयादातर नागदा वासिओं ने सब्जी का स्वाद चखकर नहीं देखा, क्योंकि वो सब्जी नहीं ला रहे, पता नहीं ये कब तक चलेगी, पर मैं तो इस पोस्ट के साथ बठिंडा के लिए रवाना हो जऊंगा, बस दुआ करता हूँ, नागदा वासिओं को सब्जी मिले और सब्जी वालों को उनकी जगह, तब तक के लिए इजाजत चाहूँगा, मैं गूगल की गूगल इंडिक ट्रांस्लितेरेशन लब्स का अति आभारी हूँ, जो हिंदी लिखने में हर जगह सही हो रही है.