अनावश्यक इच्छाएं त्यागो, खुशी आपके द्वार
ज़िन्दगी की तलाश में हम मौत के कितने पास आ गए' ये पंक्तियां एक गीत की हैं, परंतु एक हकीकत को दर्शाती हैं. इस छोटी सी पंक्ति में शायर ने बहुत बड़ी बात कह दी थी, इंसान की फिदरत है कि वो खुशी पाने की तलाश में निकल पड़ता है और बदलें में गम मिलते हैं, जैसे पहले धार्मिक प्रवृत्ति के लोग प्रभु पाने के लिए जंगल की तरफ निकल जाते थे परंतु भगवान कहां मिलता है. जब खुशी ढूंढने की तलाश में इंसान निकलता है तो वह उसके विपरीत जाता है, जैसे आप सोचते हैं कि आपको वो चीज मिल जाए तो खुशी मिल जाएगी परंतु ऐसा कद्यापि नहीं होता क्यों कि जैसे जैसे इंसान चीजों को पाता जाता है वैसे वैसे उसकी लालसा बड़ती जाती है और एक दिन उसकी इच्छाएं और लालसाएं इतनी बढ़ जाती हैं कि वह दुखी रहने लगता है. अगर खुश रहना है तो इच्छाओं का त्याग करो, अब यहां पर सवाल आ खड़ा हो जाता है कि अगर इंसान इच्छाओं का त्याग कर देगा तो जिन्दा कैसे रहेगा क्योंकि इच्छाओं के चलते ही तो इंसान जीता है, जैसे मनुष्य की शादी होती है तो उसकी अगली इच्छा है कि उसके घर कोई संतान हो, जैसे ही संतान का जन्म होता है तो उसकी जिम्मेवारी बढ़ जाती है और उसके जीवन