संदेश

मैं था अज्ञानी

1- मेरे काफिले में बहुत समझदार थे, बहुत विद्वान थे, सब चल दिए भगवान की तलाश में जंगल की ओर, और मैं था अज्ञानी बस माँ को ही ताँकता रहा। 2- कहूँ तो क्या कहूँ, चुप रहूँ तो कैसे रहूँ, शब्द आते होठों पर नि:शब्द हो जाते हैं। ढूँढने निकल पड़ता हूँ जो खो जाते हैं। फिर मिलता है एक शब्द अद्बुत वो कमतर सा लगता है तुम ही बतला देना सूर्य को क्या दिखाऊं। 1. समीर लाल समीर के काव्य संग्रह बिखरे मोती से कुछ पंक्तियाँ पढ़ने के बाद जो दिल में आया लिख डाला, 2. खुशदीप सहगल की एक पोस्ट पढ़ने के बाद लिखा था। आ भार कुलवंत हैप्पी

चीन का एक और काला अध्याय

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बाघों की सुरक्षा को लेकर भारत में चिंतन किया जा है। मोबाइल संदेशों के मार्फत उनको बचाने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं, कुछ दिनों बाद 7 अप्रैल टाईगर प्रोजेक्ट स्थापना दिवस है, बाघ बचाओ परियोजना की स्थापना 7 अप्रैल 1973 हुई। इस स्थापना भी कोई खास रंग नहीं ला सकती, यही कारण है कि भारत में बाघों की संख्या 1411 रह गई है। जहाँ भारत में बाघ बचाओ के लिए एसएमएस किए जा रहे हैं, वहीं भारत से आबादी और ताकत के मुकाबले में आगे निकल चुका चीन उन बाघों को अपने स्वार्थ के लिए खत्म किए जा रहा है। ऐसा ही कुछ खुलासा डेली मेल नामक वेबसाईट में प्रकाशित एक खबर में किया गया है। डेली मेल में प्रकाशित ख़बर के अनुसार चीन के गुइलिन शहर में एक ऐसा फार्म है जहां अनुमानों के मुताबिक करीब 1500 बाघ बाजार में उपयोग के लिए पाले जा रहे हैं। इन बाघों की हड्डियों से शराब तैयार की जा रही है, पहले तो चीन केवल दवाईयाँ तैयार करता था इनकी हड्डियों से। गौरतलब है कि यह संख्या दुनिया में आज बचे कुल बाघों की संख्या की आधी है। एक ही पिंजरे में कई-कई बाघों को रखा जा रहा है और मौत ही इनकी नियति है। जबकि इस काले अध्याय के सामने आने स

हैप्पी अभिनंदन में ललित शर्मा

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हैप्पी अभिनंदन में आज आपको जिस ब्लॉगर हस्ती से रूबरू करवाने जा रहा हूँ, वैसे तो आप उन्हें अच्छी तरह वाकिफ होंगे, लेकिन किसी शख्स के बारे में जितना जाना जाए, उतना कम ही पड़ता है। वो हर रोज किसी न किसी ब्लॉगर का चर्चा मंच , चर्चा हिन्दी चिट्ठों की !!! जैसे अन्य ब्लॉगों के जरिए प्रचार प्रसार करते हैं। कई क्षेत्रीय भाषाओं का ज्ञान भी रखते हैं, ताऊ और फौजी उनको बेहद प्यारे हैं, सच में उनकी मुछें जहाँ ताऊ की याद दिलाती हैं, वहीं उनके ब्लॉगों पर लगे स्वयं के फौजी वाले कार्टून उनके देश भक्ति के जज्बे को उजागर करते हैं, वैसे हरियाणा के घर घर में एक फौजी पैदा होता है, ऐसी बात भी प्रचलन में है। अगर देखा जाए तो अभनपुर छत्तीसगढ़ की शान ब्लॉगर ललित शर्मा जी भी फौजी से कम नहीं, वो बात अलहदा है कि उनकी हाथ में बंदूक की जगह कलम है, वैसे एक महान एवं महरूम पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा है कि जब तोप न चले तो अखबार निकालो, मतलब कलम उठाओ, क्रांति लाओ। आओ चर्चा पान की दुकान पर करने वाले एक कलम के फौजी से जानते हैं उनके दिल की बातें। कुलवंत हैप्पी : पंजाबी बापू के खुंडे 'लठ' की तरह हरियाणा का ताऊ ब

हे माँ तेरी शान में

स्कूल से आते जब देरी हो जाती थी। चिंता में आंखें नम तेरी हो जाती थी। मेरी देरी पर घर में सबसे अधिक माँ तू ही तो कुरलाती थी। गलती पर जब भी डाँटते पिताश्री तुम ही तो माँ बचाती थी। खेलते खेलते जब भी चोट लगती देख चोट मेरी माँ तू सहम जाती थी। मैं पगला अक्सर ऐसे ही रूठ जाता, मां तुम बड़े दुलार से मनाती थी। नहीं भूला, याद है माँ, एक दफा मारा था जब तुमने मुझे। मुझसे ज्यादा हुआ था दर्द माँ तुझे। तूने हमेशा मेरे लिए दुआएं की। मेरी सब अपने सिर बलाएं ली। आज शोहरत भी है, दौलत भी है। खूब सारी पास मेरे मौहलत भी है। मगर गम है। सोच आँख नम है। क्योंकि उसको देखने के लिए माँ तुम नहीं इस जहान में। अगर होता मेरे बस में, माँ रख लेता, कर गड़बड़ी रब्ब के विधान में। जितने भी शब्द लिखूं कम ही है हे माँ तेरी शान में। आ भार कुलवंत हैप्पी

गुरू

मैं ने इस कविता को बहुत पहले अपने एक पाठक की गुजारिश पर लिखा था, लेकिन युवा सोच युवा खयालात पर पहली बार प्रकाशित कर रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ कि मेरे जैसे अकवि की कलम और जेहन से निकले भाव आपको पसंद आएंगे। अकवि इसलिए क्योंकि काव्य की बहुत समझ नहीं, या फिर कभी समझने की कोशिश नहीं की। गु रू एक मार्ग है, मंजिल तक जाने का, गुरू एक साधन है, भगवान को पाने का गुरू एक प्रकाशयंत्र है, अज्ञानता को मिटाने का, पहले गुरू हैं माता पिता, जिसने बोलना सिखाया, दूसरे गुरू शिक्षक हैं, जिन्होंने जीना बतलाया, तीसरा वक्त है, जो पांव पांव पर सिखाता है परिस्थितियों से निपटना है वो हर शख्स गुरू, सिखाता जो जीने का सलीका, इस मतलबी दुनिया में 'हैप्पी' रहने का तरीका,   आ भार कुलवंत हैप्पी