मैं था अज्ञानी
1- मेरे काफिले में बहुत समझदार थे, बहुत विद्वान थे, सब चल दिए भगवान की तलाश में जंगल की ओर, और मैं था अज्ञानी बस माँ को ही ताँकता रहा। 2- कहूँ तो क्या कहूँ, चुप रहूँ तो कैसे रहूँ, शब्द आते होठों पर नि:शब्द हो जाते हैं। ढूँढने निकल पड़ता हूँ जो खो जाते हैं। फिर मिलता है एक शब्द अद्बुत वो कमतर सा लगता है तुम ही बतला देना सूर्य को क्या दिखाऊं। 1. समीर लाल समीर के काव्य संग्रह बिखरे मोती से कुछ पंक्तियाँ पढ़ने के बाद जो दिल में आया लिख डाला, 2. खुशदीप सहगल की एक पोस्ट पढ़ने के बाद लिखा था। आ भार कुलवंत हैप्पी