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लंडन ड्रीम्स- द बेस्ट मूवीज

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विपुल अमृतलाल शाह मेरी उम्मीदों पर खरा उतरा, बाकी का तो पता नहीं, बेशक हाल में तालियों की गूंज सुनाई दे रही थी और ठहाकों की भी। आँखें, वक्त, नमस्ते लंडन, सिंह इज किंग के बाद विपुल शाह की लंडन ड्रीम्स को भी शानदार फिल्मों की सूची में शुमार होने से कोई नहीं रोक सकता, खासकर मेरी मनपसंद शानदार फिल्मों की सूची से। सिंह इज किंग भले ही अनीस बज्मी ने निर्देशित की हो, लेकिन विपुल शाह का योगदान भी उसमें कम नहीं था, क्योंकि एक अच्छा निर्माता एक निर्देशक को अपने ढंग से काम करने के लिए अवसर देता है। लंडन ड्रीम्स शुरू होती है अजय देवगन (अर्जुन) से, जो संघर्ष कर सफलता की शिखर पर है, लेकिन वो अपने सपनों के लिए अपनों को खोने से भी भय नहीं खाता। वो बचपन से माईकल जैक्सन बनना चाहता है, लेकिन उसके पिता को गीत संगीत से नफरत है। वो भगवान से दुआ करता है कि उसके रास्ते की सब रुकावटें दूर हो जाएं। अचानक उसके पिता की मौत हो जाती है और उसका चाचा ओमपुरी उसको लंडन ले जाता है, जो उसका ख्वाब है। वो एयरपोर्ट से ही अपने चाचा का साथ छोड़कर सपनों को पूरा करने के लिए निकल पड़ता है। संघर्ष करते करते वो अपने सपने की तरफ अग्रस

गुरदास मान वो दीया है जो तूफानों में....

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दूसरा माइकल जैक्सन, दूसरा अमिताभ बच्चन, दूसरा सचिन तेंदुलकर जैसे मिलना मुश्किल है, वैसे ही पंजाबी संगीतप्रेमियों को दूसरा गुरदास मान मिलना मुश्किल है। मुश्किल ही नहीं मुझे तो नामुमकिन लगता है। आने वाली 4 जनवरी 2010 को गुरदास मान 53 वर्ष के हो जाएंगे, लेकिन उनकी स्टेज पर्फामेंस (लाईव शो) आज भी युवा गुरदास मान जैसी है। वर्ष 1980 को पंजाबी संगीत जगत में कदम रखने वाले गुरदास मान ने पिछले तीन दशकों में पंजाबी संगीत को इतना कुछ दिया है, जिसकी कल्पना कर पाना भी मुश्किल है। गीतों में खुद को 'मरजाना मान' कहने वाले गुरदास मान ने अपनी आवाज और अपने लिखे हुए गीतों की बदौलत पंजाबी संगीत में वो रुतबा हासिल कर लिया है जो यमले जट्ट ने हासिल किया था। जट्ट यमला की तूंबी की तरह गुरदास की डफली भी संगीत में अपनी अनूठी छाप छोड़ चुकी है। उसके गाए हुए गीत लोकगीत बनते जा रहे हैं, यमले जट्ट के गाए गीतों की तरह। इन तीन दशकों में पता ही नहीं कितने गायक आएं और चले गए, मगर गुरदास मान समय के साथ साथ सफलता की शिखर की तरफ बढ़ता चला गया। इन दशकों में ड्यूट का आंधी आई, पॉप की आंधी आई, फिर ड्यूट की आंधी, लेकिन गुर

बे-लिबास बेबो, बुरे वक्त की निशानी

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"पैसा मारो मुंह पर, कुछ भी करूंगा" यह संवाद अरुण बख्सी छोटे पर्दे पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक 'जुगनी चली जलंधर' में बोलते हैं, ये वो ही अरुण बख्सी हैं जो कभी 'अजनबी' नाम के एक हिन्दी धारावाहिक में "बोल मिट्टी दे बावेया" गुनगुनाते हुए नजर आते थे। उस संवाद में भी एक खरा सत्य था और इस नए संवाद में भी बहुत सत्य है। किसी दूसरे पर यह संवाद फिट बैठे न बैठे, लेकिन कपूर खानदान की बेटी करीना कपूर पर तो बिल्कुल सही बैठता है। यकीनन न आता हो तो पिछले कुछ सालों पर निगाह मारो। शाहरुख के साथ डॉन में फिल्माया गया गीत हो, या अजनबी में अक्षय कुमार के साथ फिल्माए कुछ दृश्य। यशराज बैनर्स की सुपर फ्लॉप फिल्म टश्न में बिकनी पहनकर सबको हैरत में डाल देने वाली करीना ने इस पर आलोचना होते देख कहा था कि अब को बिकनी नहीं पहनेगी। देखो वादे की कितनी पक्की हैं, बिल्कुल सही, उन्होंने बिकनी पहनना भी छोड़ दिया। अब तो वो टॉपलेस हो गई हैं। कमबख्त इश्क में अक्षय के साथ कई किस सीनों से जब मन नहीं भरा तो कुर्बान में सैफ अली खान के साथ सब से लम्बा किस और फिल्म की चर्चा के लिए टॉपलेस

क्या है राहुल गांधी का उपनाम?

सुबह उठा तो सिर भारी भारी था, जैसे किसी ने सिर पर पत्थर रख दिया हो। सोचते सोचते रात को सो जाना भी कोई सिर पर रखे पत्थर से कम नहीं होता। रात ये सोचते सोचते सो गया क्यों न राहुल गांधी को खत लिखा जाए कि मैं कांग्रेस में शामिल होना चाहता हूं, मैं राजनीति में नहीं जननीति में आना चाहता हूं और मैं राजनेता नहीं जननेता बनना चाहता हूं। आती 27 तिथि को मैं 26 का हो जाऊंगा, इतने सालों में मैंने क्या किया कुछ नहीं, अब आने वाले सालों में कुछ करना चाहता हूं। ये सोचते सोचते सो गया या जागता रहा कुछ पता नहीं। सुबह उठा तो सिर भारी भारी था जैसे कि शुरूआत में बता चुका हूं। मैंने कम्प्यूटर के टेबल से पानी वाली मोटर की चाबी उठाई और मोटर छोड़ने के लिए नीचे चल गया, वहां पहुंचा तो दैनिक भास्कर पड़ा हुआ था, मेरा नवभारतटाईम्स के बाद दूसरा प्रिय अखबार। मोटर छोड़ने से पहले अखबार उठाया। मुझे खबरें पढ़ने का बिल्कुल शौक नहीं, इसलिए सीधा अखबार के उस पन्ने पर पहुंच जाता हूं, जहां बड़े बड़े लेखक अपनी कलम घसीटते हैं। आज जैसे ही वहां पहुंचा तो देखा कि रात को जो मन में सवाल उठ रहा था, उसका उत्तर तो यहां वेद प्रताप वैदिक ने लिख डाल

आखिर ये देश है किसका

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1. दूर है मंजिल, और नाजुक हालात हैं हम भी चल रहें ऐसे ही दिन रात हैं फिर आने का वायदा कर सब चले गए न भगत सिंह आया, न श्रीकृष्ण बस इंतजार में हम रेत बन ढले गए जहर का प्याला लबों तक आने दो और मुझे फिर से सुकरात होने दो झूठ का अंधेरा अगर डाल डाल तो रोशनी बन मुझे पात पात होने दो 2. कैसे हो..घर परिवार कैसा है तुम्हारा यार वो प्यार कैसा है भाई बहन की पढ़ाई कैसी है मां बाप की चिंता तन्हाई कैसी है तुम्हारा ऑफिस में काम कैसा चल रहा है ये जीवन तुम्हारा किस सांचे में ढल रहा है 3. महाभारत में पांडवों की अगुवाई करने वाले कृष्णा का या यौवन में हँस हँसकर फांसी चढ़ने वाले भगत का या फिर लाठी ले निकलने वाले महात्मा गांधी का आखिर ये देश है किसका श्री कृष्णा का लगता नहीं ये देश क्योंकि दुश्मन पर वार करने से कतराता है जैसे देख बिल्ली कबूतर आंखें बंद कर जाता है भगत सिंह का भी ये देश नहीं वो क्रांति का सूर्य था, यहां तो अक्रांति की लम्बी रात है ये देश गांधी का भी नहीं बाबरी हो, या 1984 लाशें ही लाशें बिखरी जमीं पर आती हैं नजर आखिर ये देश है किसका