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कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें

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अपना ये संवाद न टूटे हाथ से हाथ न छूटे ये सिलसिले यूँ ही चलते रहें कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें इसे भी पढ़ें : प्रेम की परिभाषा न हो तेरी बात खत्म न हो ये रात खत्म ये सिलसिले यूँ ही चलते रहें कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें इसे भी पढ़ें : खंडर का दर्द मिलने दे आँखों को आँखों से दे गर्म हवा मुझको साँसों से ये सिलसिले यूँ ही चलते रहें कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें इसे भी पढ़ें : एक देश के अन्दर, कई देश हैं! हाथ खेलना चाहें तेरे बालों से लाली होंठ माँगते तेरे गालों से ये सिलसिले यूँ ही चलते रहें कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें

अब जिन्दगी से प्यार होने लगा

गाने का शौक तो बचपन से है, लेकिन कभी सार्वजनिक प्लेटफार्म पर नहीं गा पाया, तीन बार को छोड़ कर। कल रात गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' जी ने मेरे भीतर के तारों को फिर छेड़ दिया, उनकी पास से  एक यंत्र मिल गया, जिसमें मैं अपनी आवाज रिकॉर्ड करके आप तक पहुंचाने में सक्षम हुआ। ............यहाँ सुने मेरी आवाज में................. नफरत थी जिन ख्यालों से नफरत थी जिन ख्यालों से दिल उन्हीं ख्यालों में खोने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा काट दिया था, जिन उम्मीद के पौधों को काट दिया था, जिन उम्मीद के पौधों को मन वो ही बीज बोने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा तुम सपनों में क्या आने लगे तुम सपनों में क्या आने लगे दिल सुकून की नींदर सोने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा