....वो खुशी खुशी लौट आए

आज बुधवार का दिन है, और चिंता की चादर ने मुझे इस कदर ढक लिया है, जैसे सर्दी के दिनों में धूप को कोहरा, क्योंकि आते शनिवार को मेरी पत्नी शादी के बाद पहली बार मायके जा रही है, और वादा है अगले बुधवार को लौटने का. तब तक मेरा इस चिंता की चादर से बाहर आना मुश्किल है. मुझे याद है, जब वो आज से एक साल पहले शादी करने के बाद अपने मायके गई थी, लेकिन आज और उस दिन में एक अंतर है, वो ये कि तब हमने अपनी शादी से पर्दा नहीं उठाया था, और घरवालों की नजर में वो विवाहित नहीं थी. हां, मगर उसके घरवाले ये अच्छी तरह जानते थे कि इंदौर में उसका मेरे साथ लव चल रहा है. वो इंदौर से खुशी खुशी अपनी सहेली की शादी देखने के लिए दिल में लाखों अरमान लेकर निकली, लेकिन जैसे ही वहां पहुंची तो अरमानों पर गटर का गंदा पानी फिर गया. वो एक रात की यात्रा करने के बाद थकी हुई थी और थकावट उतारने के लिए उसने स्नान किया. अभी वो पूरी तरह यात्रा की थकावट से मुक्त नहीं हुई थी कि अचानक उसके सामने एक अजनबी नौजवान खड़ा आकर खड़ा हो गया, जो उसके मम्मी पापा ने उसको देखने के लिए बुलाया था. और जैसे ही उसको पता चला कि वो नौजवान उसको देखने के लिए आया है. वो लाल पीली हो गई, शायद उसी तरह जो उसका रूप मैं भी कभी कभी देखता हूं, उसने उस नौजवान को कहा कि मुझे तुम्हारे बारे में नहीं बताया गया.इस घटनाक्रम के बाद युवक तो वहां से चला गया, लेकिन घर में गुस्सा नफरत और आंसू आ गए. घर का पूरा माहौल ही बदल गया, वो अपने ही घर में कैदी हो गई, अजनबी हो गई और अकेली हो गई. उसके इस तरह के स्पष्ट जवाब से परिवारों को इस कदर कष्ट पहुंचा है कि उसके मम्मी पापा ने उसने बात बंद कर दी. इतना ही नहीं उसको घर से बाहर जाने की भी आज्ञा नहीं थी, जैसे हिन्दी फिल्मों में आम होता है. वो अपनी उस सहेली की शादी में भी नहीं जा पाती, जिसकी शादी में जाने लिए वो इंदौर से निकली थी. कुछ दिन उसने वहां रो-धोकर गुजारे, लेकिन पिता का दिल तो पिता का होता है, बेटी को तिल तिलकर मरते वो कैसे देखते. जिससे उन्होंने नाजों से पला था. उन्होंने बिटिया की जिद्द के आगे घुटने टेकते हुए उसको इंदौर आने के लिए आज्ञा दे दी और वादा किया कि वो उस लड़के से मिलने आएंगे, जिसको पसंद करती है यानी मुझे. जैसे ही वो जहां पहुंची तो मुझे पता लगा कि उसने पिता को सच नहीं बताया. फिर मैंने एक दिन साहस करते हुए मोबाइल किया और बोल दिया कि मैंने आपकी बेटी से शादी कर ली है. बेशक मेरा इस तरह उनको बताना किसी सदमे से कम न होगा. लेकिन मेरा बताना लाजमी था क्योंकि वो मुझसे मिलने के लिए आने वाले थे, ऐसे में लाजमी था कि वो सच्चाई से अवगत हों. उसके कुछ दिनों बाद वो इंदौर आए, हमारे बीच दो दिन तक तर्क वितर्क होते रहे, उन्होंने उसको को अपने साथ लेकर जाने का हरसंभव प्रयास किया, लेकिन वो अटल रही अपनी बात पर, अगर आप इसको अपनाते हो तो मैं चलती हूं, नहीं तो नहीं. वो रिश्ता तोड़कर चले गए, आखिर खून के रिश्ते कभी कहने से टूटे हैं जो टूटेंगे. आज एक साल बाद उन्होंने उसको को सामने से आने के लिए कहा है, उनकी बोलचाल में बदलाव है, लेकिन ऐसे में मन का डरना लाजमी है क्योंकि माता पिता को बेशक इस शादी से एतराज न हो, लेकिन समाज की नफरत का जहर कहीं हंसते बसते घर को बर्बाद न कर दे. फिलहाल दुआ करता हूं कि पिछली बार की तरह इस बार भी वो खुशी खुशी मेरे पास लौट आए, और हिन्दी फिल्मों की तरह इस प्रेम कहानी की भी हैप्पी एंडिंग हो..उसको इस लिए भेज रहा हूं, मुझे अपने ससुर पर भरोसा है, और खुद के प्यार पर, इसके अलावा मेरा मानना है कि डर से जितना जल्दी आमना सामना हो जाएं उतना अच्छा है.

टिप्पणियाँ

  1. बेनामी2/18/2009 12:46 pm

    हेप्पीजी आप चिंता मत करिए..आपके ससुरजी जरूर मान जाएंगे..अगर वह नहीं माने तो मै खुद वहा पर जाकर उन्हे मनाकर लाउंगा... आखिर आपका दोस्तो जो हूँ.. वैसे भी मनाना-मिलाना मुझे अच्छी तरह आता है...

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  2. बेनामी2/25/2009 9:36 am

    अब तो वो वापस आ चुकी है.बहुत-बहुत बधाई...पार्टी कब दे रहे हो:-)))))))))))))))))

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