बचो! बचो! 'स्लमडॉग..' से

बड़े दिनों से दिल कर रहा था कि 'गंदी गली का करोड़पति कुत्ता' फिल्म देखूं बोले तो 'स्लमडॉग मिलीयनेयर', जिसने विदेशों में खूब पुरस्कार बटोरे और हिन्दुस्तान में एक बहस को जन्म दे दिया. जहां एक तबका इस फिल्म की बुराई कर रहा था, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा तबका भी जो बाहर के जोगी को सिद्ध कहकर उसकी तारीफों के पुल बांध रहा था. ऐसे में इस फिल्म को देखने के उत्सुकता तो बढ़ जाती है और उस उत्सुकता को मारने के लिए फिल्म देखना तो जरूरी था, वैसे ही मैंने किया. एक दो बार तो मैं सीडी वाले की दुकान से इस लिए खाली लौट आया कि फिल्म का हिन्दी वर्जन नहीं आया था, लेकिन तीसरी दफा मैंने फिल्म का इंग्लिश वर्जन लेना बेहतर समझा, बेरंग लौटने से. फिल्म के कुछ सीन तो बहुत अच्छे थे, लेकिन फिल्म में जो सबसे बुरी बात लगी वो थी, निर्देशक जब चाहे अपने किरदारों से हिन्दी में बात करवाता है और जब उसका मन करता है तो वो इंग्लिश में उन किरदारों को बुलवाना शुरू कर देता है. फिल्म का सबसे कमजोर ये हिस्सा है. 

           अगर फिल्म निर्देशक विदेशी है तो भाषा भी विदेशी इस्तेमाल करता, बीच बीच में हिन्दी क्यों ठूंस दी, हां अगर वो हिन्दी में बनाना चाहता था तो हिन्दी भाषा में पूरी फिल्म मुकम्मल करता. मुम्बई की झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले जमाल नामक बच्चे का पढ़ाई से कोई बा-वास्ता रहा ही नहीं होता, लेकिन जब वो आगरा पहुंचते हैं तो इंग्लिश में बात करते हुए विदेशी पर्यटकों को ताज के बारे में जानकारी देते हैं, और कई स्थानों पर वो हिन्दी बोलते हैं, ऐसा तो बिल्कुल नहीं हो सकता, मुझे लगता है कि फिल्म का निर्देशक किसी उलझन में था, उसको कुछ समझ नहीं आया कि फिल्म को वे पूरी हिन्दी में बनाए या इंग्लिश में. 

फिल्म की उस बात को भी हजम करना मुश्किल है, जब एक चाय वाले को एक कॉल सेंटर का कर्मचारी अपनी सीट देकर बाहर चला जाता है, क्या हिन्दुस्तान में ऐसा होता है ? कभी नहीं. यहां तो उच्च पद पर काम करने वाले लोग दफ्तर में साफ सफाई करने वाले से बात करना भी उचित नहीं समझते और उसको अपनी सीट देकर जाना कहां उचित समझेंगे. ये सब कुदरती मान सकते हैं कि जो सवाल शो में होस्ट ने पूछे वो व्यक्तिगत जीवन से जुड़े हों, लेकिन मेरे हिसाब से सवाल के साथ जुड़े हर अध्याय फिल्म निर्देशक निरंतर जोड़ नहीं पाया, फिल्म में झुग्गी झोपड़ी का ये नौजवान झुग्गी झोपड़ी से निकलकर गुंडों के बीच पहुंच जाता है, यहां पर उसको भीख आदि मांगने के लिए तैयार किया जाना था, वहां से वो बचकर निकलता है तो उसका भाई एक नंबर का गुंडा बन जाता है, तो ऐसे में समझ नहीं आता कि वो दोनों कब स्कूल पढ़ने गए और कब उन्होंने इंग्लिश सीखी. 

अगर इंग्लिश निर्देशक ने फिल्म बनाई है, उनका इंग्लिश बोलना लाजमी था तो बिल्कुल गलत है, फिर वो हिन्दी का इस्तेमाल बीच बीच में नहीं करते. फिल्म में आखरी सवाल का जवाब खुद होस्ट एक आइने पर लिखता है, लेकिन जमाल उत्तर उसके विपरीत देता है. यहां पर समझ आता है कि जमाल ने जवाब उसके विपरीत क्यों दिया, क्योंकि जमाल के पास दो विकल्प रह गए थे और शो का होस्ट उसको जीतने का मौका क्यों देगा, इसलिए जमाल होस्ट के विपरीत वाला उत्तर चुनता है. फिल्म हिन्दुस्तानियों के लिए बिल्कुल नहीं, क्यों ऐसी हजारों फिल्में हिंदुस्तान में बन चुकी हैं. फिल्म निर्देशक अगर इस फिल्म को बनाने से पहले बाम्बे, ट्रैफिक सिग्नल, सुहाग, रोटी आदि जैसी फिल्में देख लेता तो शायद फिल्म इससे बेहतर बन जाती, फिल्म का विषय अच्छा था, लेकिन हिन्दी इंग्लिश उपयोग फिल्म में रास आने वाला नहीं था. 

अगर, इस फिल्म को आस्कर मिलता है तो मुझे हिन्दुस्तान से फिल्में भेजने वालों पर गुस्सा आता है कि इस फिल्म से ज्यादा बेहतर, ज्यादा अच्छी फिल्में हिन्दुस्तान में बनती हैं, तो ऐसे में वो एक सुपर स्टार को नजरंदाज कर छोटे बजट की फिल्मों को ऑस्कर में भेजकर देखो. इस फिल्म में भारतीय गरीबी को तो एक प्रतिशत ही दिखाया गया है, हिन्दी फिल्में तो गरीबी से लबालब होती हैं, एक बात और फिल्म निर्देशक को इसके लिए याद रखना चाहिए कि उसने गंदगी गली के कुत्ते से भी इंग्लिश बुलवा दी. इस फिल्म और ओबामा में कोई ज्यादा अंतर नहीं, उसने भी गरीबी को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका के उच्च पद पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई है, अगर पूरा हिन्दुस्तान के लिए तालियां बजाता है तो स्लमडॉग के लिए क्यों नहीं. दोनों ही विदेशी धरती के जो हैं.

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