जागो..जागो..हिंदुस्तानियों जागो....

अफजल को माफी, साध्वी को फांसी ।आरएसएस पर प्रतिबंध, सिमी से अनुबंध ।अमरनाथ यात्रा पर लगान, हज के लिए अनुदान।ये है मेरा भारत महान। जागो...जागो...शायद ये मोबाइल एसएमएस आपके मोबाइल के इंबॉक्स में पड़ा हो, ये मोबाइल एसएमएस भारत के भीतर पनप रहे मतभेद को प्रदर्शित कर रहा है. इस तरह की बनती विचार धारा देश को एक बार फिर बंटवारे की तरफ खींचकर ले जा रही है, इस एसएमएस में एक बात अच्छी वो है, 'जागो जागो', आज भारत की धरती पर रहने वाले हर व्यक्ति को जागने की जरूरत है, भले वो हिंदु है, भले वो मुस्लिम है, भले वो सिख है, भले वो ईसाई है, क्योंकि भारतीय राजनीति इस कदर गंदी हो चुकी है, वो किसी भी हद तक जा सकती है. देश की दो बड़ी पार्टियां देश को दो हिस्सों में बांटने पर तुल चुकी हैं, ऐसा ही कुछ आज से काफी दशक पहले अंग्रेजों कारण महात्मा गांधी और जिन्ना के बीच हुए मतभेदों के कारण हुआ था. हिंदुस्तान दूसरी बार न टूटे तो हर हिंदुस्तानी को जागना होगा औत इसमें हर हिंदुस्तानी की भलाई होगी. राजनीतिक पार्टियों के झांसे में आकर हर हिंदुस्तानी को ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि आतंकवाद का किसी भी मजहब से कोई लेन देन नहीं होता, क्योंकि आतंकवादी गतिविधियों के दौरान मरने वाले व्यक्ति हिंदु मुस्लिम सिख और ईसाई समुदाय के ही होते हैं, किसी एक समुदाय के नहीं, इसमें दिलचस्प बात ये है कि आतंकवादी गतिविधियों में कोई राजनीतिक समुदाय का व्यक्ति नहीं मरता, कोई किसी राजनेता को निजी रंजिश के चलते उड़ा दे तो क्या कहना. वैसे आम होने वाले बंब धमाकों में राजनीतिक पार्टियों के नेता शिकार नहीं होते. इनमें तो केवल आम आदमी मरता है. लेकिन राजनीतिक पार्टियां लोगों के बीच अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए एक समुदाय को जिम्मेदार ठहराती हैं, देश की बड़ी पार्टियों में आने वाली भाजपा आतंकवाद को इस्लाम का नाम देती है तो कांग्रेस और उसकी सहयोगी अन्य पार्टियां हिंदु संगठनों को आतंकवाद फैलाने के लिए दोषी ठहराती हैं. ऐसा करके हिंदु समुदाय की नजर में इस्लाम को और मुस्लिम समुदाय की नजर में हिंदुओं को बदनाम करके पार्टियां अपना असितत्व कायम रखना चाहती हैं. देश के नेता भालीभांति जानते हैं कि इस देश में मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या इतनी है कि उनको किसी अन्य मुलिस्म देश में नहीं भेजा जा सकता और पाकिस्तान में इतने हिंदु हैं जिनको भारत अपने देश में जगह नहीं दे सकता. बस इस देश के नेता अपनी कुर्सी बचाने के लिए आम जनता को आपस में भिड़ा रहे हैं मजहब के नाम पर..जब के आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता, उनका मकसद केवल देश में आतंक, अशांति फैलाना होता है. कभी कभी लगता है कि देश में होने वाली आतंकवादी गतिविधियां देश के नेता करवाते हैं, तांकि वो एक समुदाय को बदनाम कर अपनी कुर्सी बचाने के लिए वोट बैंक जुटा पाएं. हिंदुस्तानियों को जागना होगा..देश को बचाना होगा...इस साल में हुई आतंकवादी गतिविधियों में देश की सरकार क्या प्रगति कर पाई, सिर्फ मृतकों का एक लाख रुपए मूल्य पाने के अलावा कुछ नहीं..और कुर्सी पाने के लिए एक लाख रुपया तो कुछ भी नहीं. उदाहरण के तौर पर जब से साध्वी मालेगांव बंब धमाकों के मामले में गिरफ्तार हुई है, तब से भाजपा को हाथों पैरों की पड़ गई, कल तक जो भाजपा साध्वी से रिश्ता न होने की बातें करती थी, वो भाजपा अब उसको बचाने के लिए, उसको निर्दोष सिद्ध करने के लिए ऐडी चोटी का जोर लगा रही है. अफजल को अभी तक फांसी नहीं दे सकीं सरकार. क्या पता अफजल कांग्रेस की देन हो..वैसे भी राजनीति और अपराध का तो भारत में बहुत पुराना रिश्ता है..

टिप्पणियाँ

  1. आपकी सारी बातें सही हैं. पर इस विषय पर एक और द्रष्टि भी डालिए. धर्म को एक तरफ़ रखिये, राजनीति को एक तरफ़ रखिये, कांग्रेस और बीजेपी को एक तरफ़ रखिये, फ़िर साध्वी प्रज्ञा पर हुए अमानवीय अत्याचार की बात करिए. पुलिस किस कानून के अंतर्गत यह अत्त्याचार कर रही है? किस संविधान ने पुलिस को यह अधिकार दिया है जिस के अंतर्गत वह किसी भी आरोपी को गैरकानूनी गिरफ्तार कर सकती है, जेल में बंद रख सकती है, उसे मार सकती है, पीट सकती है, गालियाँ दे सकती है, उस के स्वाभिमान की धज्जियाँ बिखेर सकती है? कहाँ है महिला आयोग? कहाँ है मानवाधिकार आयोग? क्यों नहीं यह आयोग साध्वी का केस उठाते? बीजेपी की मांग बस इस मुद्दे तक ही सीमित है. यह मुद्दा सिर्फ़ बीजेपी का नहीं है, यह मुद्दा हर उस भारतीय का है जो कानून का सम्मान करता है और एक महिला नागरिक के ऊपर हो रहे इस अमानवीय अत्त्याचार से दुखी है. पुलिस जांच करे, किसी को कोई ऐतराज नहीं. पर मानसिक और शारीरक यातनाएं, यह कोई कैसे बर्दाश्त कर सकता है? क्या आप यह सब बर्दाश्त करेंगे?

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  2. सुरेश जी की बात से सहमत हूँ।
    लेकिन एक बात और जो कहनी चाहूँगा। इस बार कांग्रेस की हालत पतली थी सो यह चाल चली गई लगती है। दूसरी और २४ साल पुरानी बात का लालीपाप सिखों को खिलाना चाह रहे हैं राहुल बाबा। कुर्सी के लिए ये कुछ भी करने को तैयार हैं। देश कि चिन्ता किसे है?

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  3. aapke vichar kafi achchhe lage kafi achchhi tarah se aapne apni bate rakhi hai badhai

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  4. आपसे सहमत हूँ.ये वर्ड वेरिफिकेशन वाला टैग हटा दे तो कमेण्ट्स करने मे सहुलियत

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