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दिसंबर, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अंत तक नहीं छोड़ा दर्द ने दामन

कोई दर्द कहां तक सहन कर सकता है, इसकी सबसे बड़ी उदाहरण है पिछले दिनों मौत की नींद सोई बेनज़ीर भुट्टो..जो नौ वर्षों के बाद पाकिस्तान लौटी थी..सिर पर कफन बांधकर..उसको पता था कि उसकी मौत उसको बुला रही थी, मगर फिर भी क्यों उसने अपने कदमों को रोका नहीं. इसके पिछे क्या रहा होगा शोहरत का नशा या फिर झुकेंगे नहीं मर जाएंगे के कथन पर खरा उतरने की कोशिश.. कुछ भी हो, असल बात तो ये है कि दर्द ने बेनजीर भुट्टो का दामन ही नहीं छोड़ा. स्व. इंदिरा गांधी की शख्सियत से प्रभावित और अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो से राजनीतिक हुनर सीखकर राजनीतिक क्षेत्र में उतरी बेनज़ीर भुट्टो बुर्के से चेहरे को बाहर निकालकर देश की सत्ता संभालने वाली पहली महिला थी. बेनज़ीर भुट्टो स्व. इंदिरा गांधी से पहली बार तब मिली थी, जब बांग्लादेश युद्ध के बाद 1972 में जुल्फिकार अली भुट्टो शिमला समझौते के लिए भारत आए थे, इस दौरन भुट्टो भी उनके साथ थी। बेनज़ीर की हँसती खेलती जिन्दगी में दर्द का सफर तब शुरू हुआ, जब 1975 में बेनजीर के पिता को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था और उनके विरुध एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या मुकदमा

इंसान की पहचान, उसकी बातें

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जैसे हीरे की पहचान जौहरी को होती है, वैसे ही इंसान की परख इंसान को. बस आप को सामने वाली बातों को ध्यान से सुनना है, जब वो किसी और से बात कर रहा हो. इस दौरान इंसान की मानसिकता किसी ना किसी रूप में सामने आई जाती है. आप ने देखा होगा कि कुछ लोगों को आदत होती है कि वो अपने एक सहयोगी या बोस के जाते उसकी बुराई करनी शुरू कर देते हैं तो उस पर आप विश्वास करके खुद को धोखा दे रहे हैं क्योंकि वो उस इंसान की फितरत है. जब आप न होंगे तो आपकी बुराई किसी और इंसान के सामने करेगा. एक छोटी सी कहानी मेरी जिन्दगी से कहीं न कहीं जुड़ी हुई है, जो मैं इस बार आपसे सांझी करना चाहूंगा, कहते हैं जब तक आदमी किसी वस्तु को चखता नहीं तब तक उसको स्वाद का पता नहीं चलता. एक बार की बात है कि दो लड़कियां और दो लड़के आपस में बातें कर रहे थे, उसके बीच प्यार और दोस्ती का टोपिक था, लड़के कहते हैं कि प्यार और दोस्ती दिखावे की होती है जबकि लड़कियां इस बात पर अड़िंग थी कि प्यार और दोस्ती दोनों ही जिन्दगी में अहम स्थान रखतें हैं. इसमें दोनों की बात सही थी क्योंकि लड़के अपनी फितरत बता रहे थे और लड़कियां अपनी. लड़कियों को प्यार और दोस्ती

कफन के जेब नहीं होती...

यहां हर इंसान को पता है कि जब वो दुनिया से जाता है तो उसके हाथ खाली होते हैं, इतना ही नहीं कभी कभी तो उसके परिजन उसके हाथों में मरते समय रह गई अंगूठियों को भी उतार लेते हैं. इस असलियत से हर शख्स अवगत है, परंतु फिर भी उसके भीतर से लोगों के साथ छल कपट करके कमाई करने की आदत नहीं जाती. दुनिया में सिकंदर, रावण धनवान पल में राख हो गए और उनके साथ उनकी कमाई का एक हिस्सा भी नहीं गया, सिकंदर विशालतम साम्राज्य का मालिक था परंतु अंत में तो उसको दो गज ज़मीन ही नसीब हुई. मगर इंसान के भीतर दौलत कमाने की लालसा कभी कम नहीं होती, बेशक उसको पता है कि जिस सफेद कपड़े से उसका अंतिम यात्रा के वक्त शरीर ढका जाएगा, उसके परिजन जेब तक नहीं लगवाते. उदाहरण के तौर पर आज आपको एक नौजवान को नौकरी देने की एवज में एक करोड़ रुपए की रिश्वत मिल गई है और उसके कुछ दिन बाद ही आपकी मौत हो जाती है. क्या आपके परिजन आपके साथ वो पैसे जला देंगे ?, क्या वो आपका संस्कार चंदन की लकड़ी से करेंगे ? शायद उत्तर नहीं में होगा. अब भी आपके परिजन आपका अंतिम संस्कार आम लोगों की तरह ही करेंगे, शायद आपकी मौत पर वो नौजवान आंसू न बहाए, जिस से आप

2007 ने किसको क्या दिया, किसी से क्या छीना

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किसी ने ठीक ही कहा है कि समय से बलवान कोई नहीं और समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता, ये बात बिल्कुल सत्य है, अगर आप आपने आसपास रहने वाले लोगों या खुद के बीते हुए दिनों का अध्ययन करेंगे तो ये बात खुदबखुद समझ में आ जाएगी. चलो पहले रुख करते हैं बालीवुड की तरफ क्योंकि ये मेरा पसंदीदा क्षेत्र है. जैसे ही 2007 शुरू हुआ छोटे बच्चन यानी अभिषेक के दिन बदल गए, उनकी इस साल की पहली फिल्म 'गुरू' रिलीज हुई, इस फिल्म ने अभिषेक को सफलता ही नहीं बल्कि करोड़ों दिलों की धड़कन 'ऐश' लाकर इसकी झोली में डाल दी, इसके बाद आओ हम चलते खिलाड़ी कुमार की तरफ ये साल उनके लिए बहुत ही भाग्यशाली साबत हुआ क्योंकि उनकी इस साल रिलीज हुई हर फिल्म को दर्शकों ने खूब प्यार दिया, जिसकी बदौलत अक्षय कुमार सफलता की सीढ़ियों को चढ़ते हुए सफलता की शिख़र पर जाकर बैठ गए. इस साल भारी झटका बालीवुड के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली को लगा क्योंकि उनकी पिछले दिनों रिलीज हुई फिल्म को इस साल की सबसे फ्लाप फिल्मों में गिना जा रहा है, बेशक संजय मानते हैं कि उनकी फिल्म बहुत अच्छी थी लेकिन समीक्षाकारां ने फिल्म की आलोचना इ

अनावश्यक इच्छाएं त्यागो, खुशी आपके द्वार

ज़िन्दगी की तलाश में हम मौत के कितने पास आ गए' ये पंक्तियां एक गीत की हैं, परंतु एक हकीकत को दर्शाती हैं. इस छोटी सी पंक्ति में शायर ने बहुत बड़ी बात कह दी थी, इंसान की फिदरत है कि वो खुशी पाने की तलाश में निकल पड़ता है और बदलें में गम मिलते हैं, जैसे पहले धार्मिक प्रवृत्ति के लोग प्रभु पाने के लिए जंगल की तरफ निकल जाते थे परंतु भगवान कहां मिलता है. जब खुशी ढूंढने की तलाश में इंसान निकलता है तो वह उसके विपरीत जाता है, जैसे आप सोचते हैं कि आपको वो चीज मिल जाए तो खुशी मिल जाएगी परंतु ऐसा कद्यापि नहीं होता क्यों कि जैसे जैसे इंसान चीजों को पाता जाता है वैसे वैसे उसकी लालसा बड़ती जाती है और एक दिन उसकी इच्छाएं और लालसाएं इतनी बढ़ जाती हैं कि वह दुखी रहने लगता है.  अगर खुश रहना है तो इच्छाओं का त्याग करो, अब यहां पर सवाल आ खड़ा हो जाता है कि अगर इंसान इच्छाओं का त्याग कर देगा तो जिन्दा कैसे रहेगा क्योंकि इच्छाओं के चलते ही तो इंसान जीता है, जैसे मनुष्य की शादी होती है तो उसकी अगली इच्छा है कि उसके घर कोई संतान हो, जैसे ही संतान का जन्म होता है तो उसकी जिम्मेवारी बढ़ जाती है और उसके जीवन

पंजाब में राजनीति और बाबावाद

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वैसे तो पूरे भारतवर्ष में ही बाबावाद फैला हुआ है, किंतु पंजाब की राजनीति तो चलती ही बाबावाद से, इसमें कोई शक नहीं कि पंजाब की राजनीति में बाबावाद का हस्तक्षेप है, पंजाब में जिनते भी साधू संत प्रसिद्ध हुए वे सब राजनीति में आए और राजनीति में जगह पाने के बदले कई साधू संतों को जान देकर कीमत चुकानी पड़ी है, बेशक वे संत हरचंद सिन्ह लौंगवाल हों, चाहे फिर विश्वप्रसिद्ध जरनैल सिन्ह भिंडरांवाला हों. इसके अलावा पंजाब में जब भी किसी बाबा के खिलाफ दुष्प्रचार होता है तो पंजाब की राजनीतिक पार्टियों को बहुत नुकसान होता है क्योंकि जिन बाबाओं के खिलाफ दुष्प्रचार होता है, उनके बल तो राजनीति चलती है. उदाहरण के तौर पर कुछ महीने पहले पंजाब में हुए डेरा सच्चा सौदा सिरसा और शिरोमणि गुरूद्बारा प्रबंधक कमेटी के बीच हुए संघर्ष को ही लें, इसके पीछे भी तो राजनीति थी. शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस पंजाब में दो बड़े दल हैं, अकाली दल की समर्थक भाजपा है. दोनों पार्टियों के नेताओं का डेरा सच्चा सौदा सिरसा में आना जाना है क्योंकि डेरा सच्चा सौदा के पंजाब में काफी श्रद्धालु हैं, लेकिन अकाली दल का इस बार डेरा के प्रति रोष इस