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सावधान! पीवी सिंधू

प्रिय पीवी सिंधु, बधाई हो तुम्‍हें, शानदार प्रदर्शन और रजत हासिल करने की। 19 अगस्‍त 2016 की रात भारतीयों ने तुमको खूब सारी बधाईयां दी क्‍योंकि तुमने अपने बेहतरीन प्रदर्शन से चांदी जो जीती, हालांकि, हम सोने तक नहीं पहुंच सके। कोई बात नहीं, फिर भी तुम दिल जीतने में कामयाब रही। तुम भाग्‍यशाली हो कि हार के बावजूद तुम्‍हारे साथ भारतीय क्रिकेटरों सा व्‍यवहार नहीं हुआ, बल्‍कि तुम्‍हारी हार को भी सकारात्‍मक रूप से लिया गया। इस बात से अधिक खुश मत होना। हम भारतीय हैं, भीड़ में चलते हैं। हमसे से कुछ ऐसे भी हैं, जो खाली हाथों से तालियां जरूर बजा रहे हैं, मगर जेबें पत्‍थरों से भरे हुए हैं। तुमको याद होगा, युवराज सिंह, भारतीय युवा क्रिकेटर। उसके छह छक्‍के आज तक लोगों के जेहन में जिन्‍दा हैं। रातों रात हीरो बन गया। हर कोई युवराज सिंह बनने की होड़ में दिखने लगा। अचानक जिन्‍दगी ने दांव पलटा। वो ही युवराज सिंह आंख की किरकिरी बन गया। खेल प्रदर्शन में चूकने लगा तो लोगों ने उसके घरों पर पत्‍थर बरसा दिए। ये वो ही लोग थे, जो युवराज को सर आंखों पर बिठाए हुए थे। भारतीयों का सम्‍मान और प्‍यार बड़ा अ

मुसीबत! फिल्‍मों में बढ़ता चुम्‍बन चलन

पिछले दिनों ड्राइव इन सिनेमा में मोहनजो दरो देखने गए। शादीशुदा आदमी बहुत कम अकेले जाता है, जब भी जाता है परिवार सहित जाता है। सवाल परिवार के साथ जाने या न जाने का तो बिलकुल नहीं। सवाल है कि आप अचानक फिल्‍म देखते देखते असहज हो जाते हो। हालांकि, चुम्‍बन करना बुरा नहीं। मगर, इस तरह चुम्‍बन को बढ़ावा देने उचित भी नहीं, जब सिनेमा घर में परिवार सहित बच्‍चे भी आए हों, जिनको कुछ भी पता नहीं होता। मेरी छह साल की बच्‍ची है, सिनेमा घर हो या टेलीविजन की स्‍क्रीन, लड़का लड़की के बीच रोमांटिक सीन उसको बिलकुल नहीं अच्‍छे लगते। वो अपना ध्‍यान इधर उधर भटकाने पर लग जाती है। उसको अन्‍य बच्‍चों की तरह डॉरेमन जैसे कार्टून देखने अच्‍छे लगते हैं, जो शायद एक तरह से अच्‍छा भी है। कार्टून चैनलों पर अभी इतना फूहड़ता नहीं आई है। मोहनजो दरो में एक चुम्‍बन दृश्‍य है, जो काफी बेहतरीन है। मगर, आपको असहज बना देता है क्‍योंकि जब फिल्‍म पूरी तरह सामाजिक सीमाओं में बंधकर चल रही हो और अचानक यूं दृश्‍य आ जाए। अब इसका चलन दिन प्रति दिन बढ़ता चला जाएगा। बड़े बैनर भी अब चुम्‍बन बाजी पर ध्‍यान दे रहे हैं। आदित्‍य चोपड़ा

अगर नहीं देखी तो 'बोल' देखिए

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कुछ दिन पहले पाकिस्‍तानी फिल्‍म बोल देखने को मिली, जो वर्ष 2011 में रिलीज हूई थी, जिसका निर्देशन शोएब मंसूर ने किया था। एक शानदार फिल्‍म, जो कई विषयों को एक साथ उजागर करती है, और हर कड़ी एक दूसरे से बेहतरीन तरीके से जोड़ी है। कहानी एक लड़की की है, जो अपने पिता के कत्‍ल केस में फांसी के तख्‍ते पर लटकने वाली है। एक लड़के के कहने पर लड़की फांसी का फंदा चूमने से पहले अपनी कहानी कहने के लिए राष्‍ट्रपति से निवेदन करती है। राष्‍ट्रपति उस लड़की के निवेदन को स्‍वीकार करते हैं और वे लड़की अपनी मीडिया से कहानी कहती है। लड़की के पिता हकीम हैं, जिनका धंधा दिन प्रति दिन डूब रहा है, और हकीम साहेब बेटे की चाह में बेटियां ही बेटियां पैदा किए जा रहे हैं। अंत उनके घर एक बच्‍चे का जन्‍म होता है, जो लड़की है न लड़का। किन्‍नर संतान से हकीम नफरत करने लगते हैं। लेकिन परिवार के अन्‍य सदस्‍य किन्‍नर को आम बच्‍चों की तरह पालने कोशिश में लग जाते हैं। सालों से घर की चारदीवारी में बंद किन्‍नर बाहरी दुनिया से अवगत हो, खुशी से जीवन जीए, यह सोचकर उसको बाहर भेजा जाता है, मगर, कुछ हवस के भूखे लोगों की निगाह में

मोहनजो दरो से मेलूहा वाया बाहुबली

मोहनजो दरो अमरी गांव के एक युवक और मगरमच्‍छ के बीच होने से टकराव से शुरू होती है। अमरी का युवा श्‍रमन गांव वालों के लिए नायक है, जैसे बाहुबली का शिवा, मुट्ठी भर लोगों के लिए। एक सपना श्‍रमन को एक अनजान शहर की तरफ खींचता है, जैसे पर्वत की ऊंचाई शिवा को। श्‍रमन का पालन पोषण श्‍रमन के चाचा चाची करते हैं, तो शिवा का पालन पोषण भी उनके माता पिता द्वारा नहीं होता। दोनों अभिभावकों की जिद्द के विपरीत अपने सपनों के शहर जाने के लिए उत्‍सुक होते हैं। दोनों का युद्ध एक करूर राजा या प्रधान से होता है।

सेंसर बोर्ड की गरिमा का ख्‍याल तो करें

निर्देशक अभिषेक चौबे निर्देशित फिल्‍म 'उड़ता पंजाब' को सेंसर बोर्ड ने हरी झंडी दिखाने से मना कर दिया क्‍योंकि फिल्‍म में गाली गालौज बहुत था। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने इस फिल्‍म को हरी झंडी देना बेहतर नहीं समझा। भारतीय सेंसर बोर्ड पिछले कुछ महीनों से चर्चा का केंद्र बना हुआ। कभी सेंसर बोर्ड में पदाधिकारियों की अदला बदली को लेकर तो कभी सेंसर बोर्ड की गैर एतराजजनक आपत्‍तियों के कारण। ऐसा नहीं कि सेंसर बोर्ड ने उड़ता पंजाब को बैन कर पहली बार दोहरे मापदंड अपनाने की बात जग जाहिर की। सेंसर बोर्ड इससे पहले भी ऐसा कर चुका है। जाने माने फिल्‍मकार राजकुमार हिरानी की फिल्‍म 'साला खाडूस' को बिना एतराज के पास कर दिया गया जबकि विकास राव द्वारा निर्मित फिल्‍म ‘बेचारे बीवी के मारे’ से साला शब्‍द हटाने का आदेश दिया गया। इस फिल्‍म के निर्माता विकास राव ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड पर भेदभाव भरा सलूक करने का आरोप तक लगाया था। एक तरफ 'ग्रांड मस्‍ती' और 'मस्‍तीजादे' जैसी फिल्‍मों को रिलीज करने की अनुमति है और वहीं दूसरी तरफ 'उड़ता पंजाब' को इसलिए रोक लि