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उम्मीद के सूरज को सलाम

उम्मीद के सूरज को सलाम। रोशनी से जगमगा उठे मेरा महान भारत। हां, हम कर सकते हैं, इस नारे से देश को जगाया था। स्वप्न दिए। उठने की हिम्मत दी। अब वक्त है कुछ कर गुजरने का। उम्मीद करता हूं आप सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे। मैंने नहीं देखा, आपका भावुक होना। लाजमी दिल से हुए होंगे। उम्मीद करता हूं देश से अधिक आपकी भावना को आपके मंत्री समझें। ईमानदार तो मनमो​हन सिंह भी थे। अच्छे प्रधानमंत्री थे, लेकिन उनका संगठन कमजोर व खोखला हो चुका है। उनमें नेतृत्व की कमी थी। अंत जो नारा आप ने मारा। वो बराक ओबामा ने भी मारा था, लेकिन कुछ दिन पहले बराक ओबामा ने खुद माना कि वो करिश्मा नहीं कर पाए। सब कुछ डिलीट कर देना चाहिए। उम्मीद है कि आप नहीं कहेंगे। मिली ख़बरों के मुताबिक जब आज नरेंद्र मोदी पहले बार लोक सभा पहुंचे। उन्होंने लोकसभा में प्रवेश करने से पहले माथा टेका। लोक सभा पहुंचकर नरेंद्र मोदी भावुक हुए। गला तक रुंध गया।

कह सकते हैं 'मैं देशद्रोही हूं'

बड़ी अजीब स्‍थिति देश के अंदर, विशेषकर इस मंच पर, अगर आप भाजपा को छोड़कर किसी भी दल के साथ खड़े होते हैं, चाहे वो गैर राजनीतिक लोगों का समूह ही क्‍यूं न हो, तो आप देशद्रोही, या गंदी राजनीति करने वाले होंगे। राजनीति में अब तक सभी दल एक जैसे लगते थे, लेकिन आम आदमी पार्टी के जरिए आम लोगों को राजनीति में आते देखकर आम आदमी के समर्थन में खड़ा हो गया। अगर आपको पसंद नहीं तो मैं देशद्रोही हूं। अमिताभ बच्‍चन, शाहरुख खान, सलमान खान को पसंद करने वाले भी देशद्रोही कह सकते हैं, क्‍यूंकि मैंने बचपन से अक्षय कुमार को पसंद किया है। हिन्‍दी संगीत में मुझे कैलाश खेर अच्‍छा लगता है। पंजाबी संगीत में गोरा चक्‍क वाला, राज बराड़ व देबी मखसूदपुरी अच्‍छा लगता है। अगर यह आपकी पसंद न हो तो आप कह सकते हैं मैं देशद्रोही हूं। मैं रोबिन शर्मा को पढ़ता हूं, अन्‍य बहुत सारे लेखकों को पढ़ा, लेकिन मन पसंदीदा रोबिन शर्मा लगा। अगर आपको पसंद नहीं तो कह सकते हैं मैं देशद्रोही हूं। मैंने बहुत सारे आध्‍यात्‍मिक गुरूओं को सुना और पढ़ा। ओशो की बातें ठीक लगी। कुछ सत्‍य लगी। मैंने ओशो को जब दिल किया, त

फेसबुक की पहल, पेश किया गुमनाम लॉग-इन ऐप्लिकेशन

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सैन फ्रांसिस्को। फेसबुक ने अपने एक अरब से अधिक उपयोक्ताओं का भरोसा बढ़ाने के लिए गुमनाम रहकर फेसबुक का उपयोग करने से जुड़ा ऐप्लिकेशन पेश किया है। फेसबुक के सह-संस्थापक और प्रमुख मार्क जुकरबर्ग लंबे समय तक कहते रहे हैं कि उपयोक्ताओं को एक ऑनलाईन पहचान रखनी चाहिए लेकिन अब वे फेसबुक पर गुमनाम रहकर इस सोशल नेटवर्किंग साईट पर काम करने का मौका मिलेगा। फेसबुक ने डाटा ऐप्लिकेशन की पहुंच को नियंत्रित करने के तरीके को भी सुव्यवस्थित किया है। जुकरबर्ग ने एक सम्मेलन में इन बदलावों और फेसबुक को ऐप्लिकेशन के लिए ज्यादा स्थिर मंच बनाने की भी घोषणा की। जुकबर्ग ने कहा ‘‘लोगों को शक्ति और नियंत्रण देने से वे सभी ऐप्लिकेशन पर भरोसा करेंगे। यह सभी के लिए सकारात्मक पहल है।’’ कंपनी ने कहा कि गुमनाम लॉग-इन (एनॉनिमस लॉग-इन) का उपयोग करना आसान है और वे फेसबुक पर बिना व्यक्तिगत सूचना दिए इस ऐप्लिकेशन का उपयोग कर सकते हैं।

News Nation - नमो लहर — यूपी में बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता हाशिए पर

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लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की कथित लहर पर सवार पार्टी के प्रत्याशियों को अब उत्तर प्रदेश के कभी दिग्गज रहे वरिष्ठ नेताओं की जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया और मैनेजमेंट के सहारे ही उन्हें अपनी नैया पार होती दिख रही है। आलम यह है कि यूपी भाजपा के कई बड़े नेता हाशिए पर डाल दिए गए हैं या फिर वे खुद नाराज होकर नेपथ्य में चले गए हैं। कभी भाजपा के दिग्गजों में गिने जाने वाले उत्तर प्रदेश के ये नेता क्या कर रहे हैं, खुद भाजपा कार्यकताओं को ही नहीं पता है। भारतीय जनता पार्टी में कभी यूपी के नेताओं की तूती बोलती थी। एक लंबी श्रृंखला थी मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, विनय कटियार, केसरी नाथ त्रिपाठी, ओम प्रकाश सिंह, सुरजीत सिंह डंग, सत्यदेव सिंह, हृदय नारायण दीक्षित, सूर्य प्रताप शाही समेत कई ऐसे नाम हैं जिनका सहयोग लेने से भाजपाई कतरा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि भाजपा नेतृत्व ने इन्हें हाशिए पर डाल दिया तो अब प्रत्याशी भी इनमें से ज्यादातर लोगों के कार्यक्रमों की मांग नहीं कर रहे हैं। बनारस से कानपुर जाने के लिए मजबूर किए गए दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी की स्थिति ख

Short Story - बाबूजी की बात, और नत्‍थासिंह

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नत्‍था सिंह बहुत भोला - भाला इंसान था। जब खेतों के किनारे लगे पेड़ों पर फूल आने वाले होते तो वो उनके पेड़ों के आस पास भंवरों की तरह मंडराने लगता, फूल आते ही उदास होकर घर लौट जाता। अब भी पेड़ों पर फूल आने वाले थे, और नत्‍था सिंह भी। नत्‍था सिंह आया - बाबू जी ने उससे पूछा, जब फूल आने वाले होते हैं तो तुम यहां खुशी खुशी आते हो, लेकिन फूल आने के बाद तुम उदास होकर यहां से निकल जाते हो। नत्‍था सिंह ने कहा, मैं गुलाबी फूल लेने के लिए यहां आता हूं, लेकिन आपके पेड़ हर मौसम में पीले रंग के फूल देने लगते हैं। तो बाबूजी कहते हैं कि अरे पगले, हमने बबूल के पेड़ उगाएं हैं, तो बबूल के फूल ही आएंगे, गुलाब के कैसे आ सकते हैं। गुलाब के फूलों के लिए गुलाब का पौधा लगाना पड़ता है। नत्‍थे को बात समझ आई या नहीं, लेकिन मुझे एक बात समझ जरूर आ रही थी। बाबूजी कह रहे थे कि अगर बबूल का पेड़ लगाएंगे तो बबूल के फूल आएंगे, और अगर गुलाब का पौधा है तो गुलाब के फूल। शायद इसका संबंध कहीं न कहीं हमारे विचारों की खेती से भी है। हम अपने भीतर जो पेड़ पौधे लगाते हैं, शायद शब्‍दों में - अपने व्‍यवहार में - उसी पौधे के फूल