संदेश

स्‍वयं बने कृष्‍णार्जुन, चाणक्‍य चंद्रगुप्‍त

आप ने भी मेरी तरह कई घरों व मंदिरों के परिसरों में महाभारत की याद दिलाने वाली अद्भुत कलाकृति देखी होगी, जिसमें एक रथ पर महान निशानेबाज अर्जुन घुटनों के बल बैठे एवं हाथ जोड़े भगवान श्रीकृष्‍ण की तरफ देख रहे हैं, एवं भगवान श्री कृष्‍ण उनको उपदेश दे रहे मालूम पड़ते हैं, वैसे भी महाभारत में जब अर्जुन अपनों को सामने हारते हुए देख भावुक हो गए थे, तो श्रीकृष्‍ण ने उनको उपदेश देते हुए समझाया था कि यह रणभूमि है, और तुम एक योद्धा, अगर तुमने सामने वाले को खत्‍म नहीं किया तो वह तुम्‍हें खत्‍म कर देंगे। श्री कृष्‍ण भगवान के उपदेश के बाद अर्जुन ने कौरवों का अंत करने के लिए अपना धनुष्य उठाया, और इतिहास गवाह है पांडवों की जीत का। मुझे मालूम नहीं कि आपने कभी उस तस्‍वीर को मेरी नजर से देखा है कि नहीं, लेकिन मेरी नजर में, वह दृश्‍य कॉन्‍शीयस माइंड एंड अन कॉन्‍शीयस माइंड की जीती जागती उदाहरण है। कॉन्‍शीयस माइंड सिर्फ वह करता है, जो उसको फिलहाल सामने दिखाई पड़ता है, जबकि अनकॉन्‍शीयस माइंड दूरदर्शी होता है, एवं मानव का मार्गदर्शन करता है। अनकॉन्‍शीयस जिस चीज को ग्रहण कर लेता है, उसको वह निरंतर करता रहता है,

कल करे सो आज क्‍यों नहीं

ज्‍यादातर स्‍कूली बच्‍चों को छुटिटयों के बाद स्‍कूल जाना सबसे ज्‍यादा डरावना लगता है, खासकर उन बच्‍चों के लिए जिन्‍होंने हॉलिडे होमवर्क कल करेंगे करते करते पूरी छुटिटयां मौज मस्‍ती में गुजारी हों। कुछ ऐसे ही बच्‍चों की तरह व्‍यक्‍ित भी कल करेंगे कल करेंगे कहते कहते अपनी जिन्‍दगी गंवा देता है, अंतिम सांस अफसोस के साथ छोड़ता है, काश! कुछ वक्‍त और मिल जाता। आज सुबह जब मैं अपने घर के प्रांगण में टहल रहा था तो उक्‍त विचार अचानक दिमाग में आ टपका। इस विचार से पहले मेरे मास्‍टर साहिब द्वारा सुनाई एक कहानी याद आई, जिसको मैंने मानव जीवन और स्‍कूली बच्‍चों से जोड़कर देखा, वो बिल्‍कुल स्‍टीक बैठती है, जब उन्‍होंने सुनाई तब वो सिर्फ कहानी थी मेरे लिए, लेकिन आज वह मार्गदार्शिका है। सर्दियों का मौसम था, मास्‍टर साहिब कुर्सी पर, और हम सब जमीन पर बिछे टाटों पर बैठे हुए थे। मास्‍टर साहिब ने सूर्य की ओर देखते हुए कहा, आज स्‍कूली किताबों से परे की बात करते हैं। हम को लगा, चलो आज का दिन तो मस्‍त गुजरने वाला है क्‍योंकि किताबी बात नहीं होने वाली। मास्‍टर साहिब ने बोलना शुरू किया, खेतों में एक बिना छत वाला

सावधान। एमएलएम बिजनस से

बढ़ती महंगाई और मिलावट से बचने के लिए एमएलएम, मतलब मल्‍टी लेवल मार्कटिंग बिजनस अच्‍छा है, मगर कोई अच्‍छी चीज गलत लोगों के हाथों में बुरे परिणाम देती है, जैसे कि पागल के हाथ में तलवार, आतंकवादियों के हाथ में गोला बारूद। बारूद तलवार बुरी चीजें नहीं, मगर गलत लोगों के हाथों में पड़ते ही गलत परिणाम देने लगती हैं। वैसे ही हिन्‍दुस्‍तान में एमएलएम बिजनस को लेकर हो रहा है। एमएलएम बिजनस के नाम पर करोड़ों रुपए की ठगी मारी जा रही है, इसलिए सावधान रहने के लिए कह रहा हूं। आज के युग में एमएलएम एक बेहतरीन बिजनस है, अगर करना है तो एक अच्‍छी एमएलएम कंपनी चुनिए। मैं आपको किसी कंपनी विशेष के लिए सिफारिश नहीं करूंगा, लेकिन एक अच्‍छी कंपनी चुनने के लिए सुझाव दे सकता हूं। सबसे पहले कंपनी के पास विजन होना चाहिए, एक बेहतर कल का। उसका प्रोडेक्‍ट बेस होना चाहिए। मार्किट भाव पर सामान उपलब्‍ध करवाए, क्‍योंकि एमएलएम को एडवाटाइजमेंट पर पैसा नहीं खर्च होता, वह ग्राहक के द्वारा भी प्रचार करवाती है। एमएलएम के लिए हिन्‍दुस्‍तान में अभी कोई लगाम कसने वाला कोई विभाग नहीं, इसलिए व्‍यक्‍ितयों खुद ही सावधान रहना होगा।  नह

"हारने के लिए पैदा हुआ हूं"

नॉर्मन विन्‍सेंट पील अपनी पुस्‍तक "पॉवर आफ द प्‍लस फेक्‍टर" में एक कहानी बताते हैं, "हांगकांग में काउलून की घुमावदार छोटी सड़कों पर चलते समय एक बार मुझे एक टैटू स्‍टूडियो दिखा। टैटुओं के कुछ सैंपल खिड़की में भी रखे हुए थे। आप अपनी बांह या सीने पर एंकर या झंडा या जलपरी या ऐसी ही बहुत सी चीजों के टैटू लगा सकते थे, परंतु मुझे सबसे ज्‍यादा अजीब बात यह लगी कि वहां पर एक टैटू था, जिस पर छह शब्‍द लिखे हुए थे, "हारने के लिए पैदा हुआ हूं"। अपने शरीर पर टैटू करवाने के लिए यह भयानक शब्‍द थे। हैरानी की स्‍िथति में मैं दुकान में घुसा और इन शब्‍दों की तरफ इशारा करके मैंने टैटू बनाने वाले चीनी डिजाइनर से पूछा क्‍या कोई सचमुच इस भयानक वाक्‍य हारने के लिए पैदा हुआ हूं वाले टैटू को अपने शरीर पर लगाता है? उसने जवाब दिया, हां कई बार मैंने कहा, परंतु मुझे यकीन नहीं होता कि जिसका दिमाग सही होगा वह ऐसा करेगा। चीनी व्‍यक्‍ित ने अपने माथे को थपथपाया और टूटी फूटी इंग्‍लिश में कहा, शरीर पर टैटू से पहले दिमाग में टैटू होता है। लेखक इस कहानी के मार्फत कहना चाहता है, जो हम को मिलता है

माहौल बदलो, जीवन बदलेगा

मेरा बेटा, गोल्‍ड मेडलिस्‍ट है, देखना उसको कहीं न कहीं बहुत अच्‍छी नौकरी मिल जाएगी। शाम ढले बेटा घर लौटता है और कहता है कि पापा आपका ओवर कोंफीडेंस मत खा गया, मतलब जॉब नहीं मिली। इंटरव्‍यूर, उसका शानदार रिज्‍यूम देखकर कहता है, कुनाल चोपड़ा, तुम्‍हारा रिज्‍यूम इतना शानदार है कि इससे पहले मैंने कभी ऐसा रिज्‍यूम नहीं देखा, लेकिन अफसोस की बात है कि तुमने पिछले कई सालों से कोई केस नहीं लड़ा। यह अंश क्‍लर्स टीवी पर आने वाले एक सीरियल परिचय के हैं, जो मुझे बेहद पसंद है, खासकर सीरियल के नायक कुनाल चोपड़ा के बिंदास रेवैया के कारण। कितनी हैरानी की बात है कि एक पिता अपने इतने काबिल बेटे को दूसरों के लिए कुछ पैसों खातिर कार्य करते हुए देखना चाहता है। इसमें दोष उसके पिता का नहीं बल्‍कि उस समाज, माहौल का है, जिस माहौल समाज में वह रहते हैं, कुणाल चोपड़ा गोल्‍ड मैडलिस्‍ट ही नहीं बल्‍कि एक बेहतरीन वकील है, मगर उसका परिवार तब बेहद खुद होता है, जब उसकी प्रतिभा को वही फार्म कुछ पैसों में खरीद लेती है, जिसके इंटरव्‍यूर ने कुणाल चोपड़ा को रिजेक्‍ट कर दिया था। ऐसी कई कंपनियां हैं, जहां पर एक से एक प्रतिभावान