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वत्स, तुम रो क्यों रहे हो : पीएम टू शशि थरूर

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लेखक   कुलवंत हैप्पी एक बार की बात है, एक व्यक्ति रोता हुआ घर जा रहा था, रास्ते में रोककर एक साधु ने उससे पूछा, "वत्स, तुम रो क्यों रहे हो"। तो उसने कहा कि उसका साईकिल चोरी हो गया। साधु ने उसकी बात सुनते ही कहा, "भगवान ने तुमसे साईकिल छीना है, क्योंकि वो साईकिल लेने के बाद ही तो तुमको मोटर साईकिल देगा"। वो व्यक्ति साधु की बात सुनकर खुश हो गया, और इस स्वप्न के साथ घर की तरफ आँखें पौंछता हुआ चल दिया। बहुत से लोगों के साथ यह किस्सा सच साबित हो चुका है, लेकिन शशि थरूर के साथ सच साबित होगा कि नहीं, कुछ भी कह पाना मुश्किल है। लेकिन हाँ यकीनन ट्विटर मास्टर शशि थरूर ने इस कहानी को पहले कहीं सुना जरूर होगा या फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सुना डाला होगा, क्योंकि पंजाब में तो यह किस्सा बेहद लोकप्रिय है, वरना इतनी आसानी से पीएम को अस्तीफा सौंपने का खयाल तो शशि के दिमाग में न आता। शायद पीएम की ओर से ऐसा भरोसा मिल होगा कि इस बार राज्य विदेश मंत्री थे, तो अगली बार तुमको सीधा केंद्रीय विदेश मंत्री बनाया जाएगा, अगर श्री आडवानी की तरह मोदी का जादू भी नेकस्ट इलेक्शन में न चल

जीत है डर के आगे

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लेखक कुलवंत हैप्पी ड्यू के टीवी विज्ञापन की टैग-लाईन 'डर के आगे जीत है' मुझे बेहद प्रभावित करती है, नि:संदेह औरों को भी करती होगी। सच कहूँ तो डर के आगे ही जीत है, जीत को हासिल करने के लिए डर को मारना ही पड़ेगा, वरना डर तुम को खा जाएगा। पिछले दिनों रिलीज हुई फिल्म "माई नेम इज खान" में एक संवाद है 'डर को इतना मत बढ़ने दो कि डर तुम्हें खा जाए'। असलियत तो यही है कि डर ने मनुष्य को खा ही लिया है, वरना मनुष्य जैसी अद्भुत वस्तु दुनिया में और कोई नहीं। मौत का डर, पड़ोसी की सफलता का डर, असफल होने का डर, भगवान द्वारा शापित कर देने का डर, जॉब चली जाने का डर, गरीब होने का डर, बीमार होने का डर। सारा ध्यान डर पर केंद्रित कर दिया, जो नहीं करना चाहिए था। एक बार मौत के डर को छोड़कर जिन्दगी को गले लगाने की सोचो। एक बार मंदिर ना जाकर किसी भूखे को खाना खिलाकर देखो। एक बार असफलता का डर निकालकर प्रयास करके देखो। असफलता नामक की कोई चीज ही नहीं दुनिया में, लोग जिसे असफलता कहते हैं वो तो केवल अनुभव। अगर थॉमस अलवा एडीसन असफलता को देखता, तो वो हजारों बार कोशिश ना करता और कभी बल्ब

ओशो सेक्स का पक्षधर नहीं

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लेखक कुलवंत हैप्पी खेतों को पानी दे रहा था, और खेतों के बीचोबीच एक डेरा है, वैसे पंजाब के हर गाँव में एकाध डेरा तो आम ही मिल जाएगा। मेरे गाँव में तो फिर भी चार चार डेरे हैं, रोडू पीर, बाबा टिल्ले वाला, डेरा बाबा गंगाराम, जिनको मैंने पौष के महीने में बर्फ जैसे पानी से जलधारा करवाया था, रोज कई घड़े डाले जाते थे उनके सिर पर, और जो डेरा मेरे खेतों के बीचोबीच था, उसका नाम था डेरा बाबा भगवान दास। गाँव वाले बताते हैं कि काफी समय पहले की बात है, गाँव में बारिश नहीं हो रही थी, लोग इंद्र देव को खुश करने के लिए हर तरह से प्रयास कर रहे थे, लेकिन इंद्रदेव बरसने को तैयार ही नहीं था। दुखी हुए लोग गाँव में आए एक रमते साधु भगवान दास के पास चले गए। उन्होंने उनसे बेनती बगैरह किया।

लफ्जों की धूल-4

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(1) जिन्दगी का जब, कर हिसाब किताब देखा लड़ाई झगड़े के बिन, ना कुछ जनाब देखा

लफ्जों की धूल-3

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(1) दिमाग बनिया, बाजार ढूँढता है दिल आशिक, प्यार ढूँढता है