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बनते बनते बिगड़ी किस्मत

गज्जन सिआं वो देख बस आ रही है, बस नहीं निहाले, वो तो रूह की खुराक है. पास बैठा करतारा बोलिया. ऐसा क्या है बस में, बूढ़ी उम्र में भी आंखें गर्म करने से बाज नहीं आते, ओ नहीं करतारिया, उस बस में गांव के लिए एकलौता समाचार पत्र आता है, जिसको सारा दिन गांव के पढ़े लिखे लोग पढ़कर देश के हालात को जानते हैं, अच्छा अच्छा, ओ गज्जन सिआं माफ करी, ऐसे ही गलत मलत बोल गया था, नहीं नहीं इसमें तेरा कोई कसूर नहीं, टीवी वालों ने बुजुर्गों का अक्स ही ऐसा बना दिया है. गुफ्तगू चल ही रही थी कि बस पास आई और ले लो बुजुर्ग रूह की खुराक ड्राईवर ने बोलते हुए अख्बार बुजुर्गों की तरफ फेंका. गज्जन सिआं ने अख्बार की परतें खोलते हुए कहा, आज तो पहले पन्ने पर किसी नैनो की खबर लगी है, जल्दी पढ़ो गज्जन सिआं, कोई आँखों का मुफ्त कैंप लगा होगा आस पास में कहीं, समीप बैठा करतारा बोलिया..चुटकी लेते हुए गज्जन सिआं ने कहा नहीं ओ मेरे बाप, ये ख़बर आंखों से संबंधित नहीं बल्कि टाटा ग्रुप द्वारा बनाई जा रही नैनो कार के बारे में है, करतारा नजर झुकाते हुए बोला, चल आप ही बताएं खबर में क्या लिखा है, गज्जन सिआं बोला कि अख्बार में लिखा है कि नैन

सिनेमे को समझो, केवल देखो मत

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इस साल भी बहुत सारी फिल्में रिलीज हुई, हर साल की तरह. लेकिन साल की फिल्मों में एक बात आम देखने को मिली, वो थी आम आदमी की ताकत, जिसके पीछे था तेज दिमाग, जिसके बल पर आम आदमी भी किसी बड़ी ताकत को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है. इस साल रिलीज हुई एकता कपूर की फिल्म 'सी कंपनी' ने बेशक बॉक्स आफिस पर सफलता नहीं अर्जितकी, लेकिन फिल्म का थीम बहुत बढ़िया था, घर में होने वाली अनदेखी से तंग आकर कुछ लोग मजाक मजाक में 'सी कंपनी' बना बैठते हैं, 'सी कंपनी' की दहश्त शहर में इस कदर फैलती है कि बड़े बड़े गुंडे और सरकारें भी उनके सामने घुटने टेकने लगती हैं, वो लोग बस फोन पर ही धमकी देते हैं, सब काम हो जाते हैं, वो लोग आम जनता के हित में काम करते हैं. फिल्म कहती है कि अगर बुरे काम के लिए 'डी कंपनी' का फोन आ सकता है तो अच्छे काम करवाने के लिए 'सी कंपनी' क्यों नहीं बन सकती.'सी कंपनी' को छोड़कर अगर हम इस साल सबसे ज्यादा समीक्षकों के बीच वाह वाह बटोरने वाली फिल्म 'ए वेनसडे' की बात करें तो वो फिल्म भी एक आम आदमी की ताकत को रुपहले पर्दे पर उतारती है. लेकिन इस फि

कैसे निकलूं घर से...

रेलवे स्टेशन की तरफ, बस स्टैंड की तरफ, आफिस की तरफ घर से बाहर की तरफ बढ़ते हुए कदम रुक जाते हैं, और पलटकर देखता हूं घर को, अपने आशियाने को, जिसको खून पसीने की कमाई से बनाया है, जिसमें आकर मुझे सकून मिलता है, सोचता हूं, क्या फिर इस घर लौट पाउंगा कहीं किसी बम्ब धमाके में उड़ तो न जाउंगा या फिर किसी भीड़ में कुचला तो न जाउंगा, रुकते हैं जब कदम दौड़ने लगता है तब जेहन, असमंजस में पड़ जाता है मन, बेशक जान हथेली पर रखने का है जज्बा, लेकिन बे-मतलबी और अनचाही मौत से डरता है मन भीड़ को देखकर भी मन घबराता है कुचले जाने का डर सताता है कैसे निकलूं बेफ्रिक बेखौफ घर से लबालब हूं आतंक मौत के डर से

बाक्स आफिस पर अपनों से टक्कर

बालीवुड के लिए पिछले छ: महीने कैसे भी गुजरें हो, मगर इस साल के आने वाले छ: महीने दर्शकों एवं कलाकारों के लिए बहुत ही रोमांच भरे हैं। अगर हम फिल्म निर्माता एवं निर्देशकों द्वारा फिल्म रिलीज करने की तारीखों पर नजर डालें तो पता चलता है कि इस साल बाक्स आफिस पर प्रेमी प्रेमिका को, मामा भांजे को, बाप बेटे को टक्कर देगा। इसमें कोई शक नहीं की बाक्स आफिस पर अब मुकाबलेबाजी बढ़ने लगी है, यह बात तो 'सांवरिया' एवं 'ओम शांति ओम' के एक साथ रिलीज होने पर ही साबित हो गई थी. उसके बाद 'तारे जमीं पर' एवं 'वैकलम' एक साथ रिलीज हुई, बेशक यहां पर त्रिकोणी टक्कर होने वाली थी, मगर उस दिन अजय देवगन की फिल्म 'हल्ला बोल' को रिलीज नहीं किया गया था. बाक्स आफिस पर टक्कर होने से फिल्मी सितारों का मनोबल भी बढ़ता है और उनको भी खूब मजा आता है, जब सामने वाले किसी सितारे की फिल्म पिटती है। जुलाई महीने में भी दो नए सितारे बाक्स आफिस पर टकराने वाले हैं, हरमन बावेजा और इमरान खान. वैसे तो यह टक्कर कोई खास न होती, मगर यह टक्कर खास इस लिए हो गई क्योंकि दोनों के पीछे बड़े बैनर हैं. हरमन बाव

बालीवुड को जोरदार झट्के

चमक दमक भरी मायानगरी यानी बालीवुड में कुछ पता नहीं चलता, कब किसको आसमां मिल जाए और न जाने कब किसको जमीन पर आना पड़ जाए। जब बालीवुड की बात चल रही हो तो यशराज फिल्मस बैनर का नाम तो लेना स्वाभिक बात है क्योंकि इस बैनर का नाम तो बच्चा बच्चा जानता है। सफलता की सिख़र पर पहुंचे इस बैनर को लोगों की नजर लग गई और अब यह बैनर फलक से जमीं तलक आ गया। पिछले साल यशराज ने पांच फिल्में रिलीज की, मगर सफलता का परचम केवल एक लहरा पाई, वो फिल्म थी किंग खान की 'चक दे! इंडिया. यह फिल्म सफलता की सीढ़ियां चढ़ पाएगी यशराज बैनर को उम्मीद नहीं थी, जिसके चलते उन्होंने फिल्म को सस्ते दामों में बेचा, मगर जो फिल्में यशराज बैनर ने महंगे दामों पर बेची थी वो सब सुपर फ्लाप साबित हुई, जिसके चलते सिनेमा मालिकों को घाटा झेलना पड़ा. यशराज ने इस साल की शुरूआत 25 अप्रैल को 'टशन' से की, उन्होंने इस फिल्मों को भी महंगे दामों पर बेचना चाहा, मगर पहले ही नुकसान झेल चुके सिनेमा मालिकों ने इस बार यशराज फिल्मस की फिल्म को अहमियत नहीं दी, जिसके चलते यह फिल्म कुछ सिनेमा घरों में रिलीज नहीं हुई. फिल्म रिलीज होने के एक दो दिन बाद ही