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बस! मुझे ट्रैफिक चाहिए

आज की ब्रेकिंग न्‍यूज क्‍या है ? सर अभी तक तो कोई नहीं, लेकिन उम्‍मीद है कि कोई दिल्‍ली से धमाका होगा। अगर न हुआ तो। फिर तो मुश्‍िकल है सर। बस! मुझे ट्रैफिक चाहिए। कुछ ऐसे ही संवाद होते हैं आज के बाजारू मीडिया संपादक के। मजबूरी का नाम महात्‍मा गांधी हो या मनमोहन सिंह, कोई फर्क नहीं पड़ता। मजबूरी तो मजबूरी है। उसके सामानर्थी शब्‍द ढूंढ़ने से कुछ नहीं होने वाला। पापी पेट के लिए कुछ तो पाप करने पड़ते हैं। आज मीडिया हाऊसों की वेबसाइटों को अश्‍लील वेबसाइटों में तब्‍दील किया जा रहा है। अगर कोई ब्रेकिंग न्‍यूज नहीं तो क्‍या हुआ, तुम कुछ बनाकर डालो, अश्‍लील फोटो डालो, लिप लॉक की फोटो डालो। मुझे तो बस! मुझे ट्रैफिक चाहिए। इतना ही नहीं, मासिक पत्रिकाएं भी कहती हैं अब कुछ करो, बुक स्‍टॉलों पर ट्रैफिक चाहिए, वरना घर जाइए। हर किसी को ट्रैफिक चाहिए। हर कोई ट्रैफिक के पीछे दौड़ रहा है। सड़कें ट्रैफिक से निजात पाना चाहती हैं, मगर ऐसा हो नहीं पा रहा। पैट्रोल के रेट बढ़ रहे हैं तो कंपनियां वाहनों के रेट गिराकर डीजल मॉडल उतार रही हैं। ट्रैफिक कम होने का नाम नहीं ले रहा, वहीं दूसरी तरफ नेता अभिनेता भी ट