यदि ऐसा है तो गुजरात में अब की बार भी कमल ही खिलेगा!
गुजरात विधान
चुनाव के पहले चरण के मतदान में गिनती के 9 दिन बचे हैं। दूसरे चरण के
मतदान के लिए 14 दिन, भले ही 3 साल बीतने के बाद भी देश के प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी विकास की मुंह दिखाई न कर सके हों, लेकिन, 18 दिसंबर 2017 को
'गुजरात का किंग कौन' के रहस्य से पर्दा उठ जाएगा, जिसको लेकर इस समय
गुजरात में राजनीतिक पारा अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका है।
हाल ही में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली में संबोधित करते हुए कहा था कि 151 गिन लो। यह वो ही आंकड़ा है, जो सोमनाथ में इस साल के आरंभ में आयोजित भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में तय हुआ था, बस फर्क इतना है कि उस समय केवल 150 से अधिक सीटों का संकल्प कहा गया था।
लेकिन, आज से कुछ महीने पहले, जब जीएसटी लागू नहीं हुआ था, तब एक बड़े पद की जिम्मेदारी संभाल रहे भाजपा नेता से मैंने व्यक्तिगत स्तर पर बात की थी, और पूछा था कि इस बार गुजरात चुनाव में जनता का रूझान क्या है? उनका कहना था कि 80 सीट तो हाथ में हैं। उनका मतलब साफ था कि 119 सीटों के साथ सत्ता में बैठी भाजपा के लिए डगर आसान नहीं है।
जीएसटी लागू होने के बाद सरकार के खुफिया तंत्र की सर्वे रिपोर्ट का कांटा भी इसी आंकड़े के आस पास आकर ठहर सा गया। हालांकि, उसी समय में भाजपा की स्थिति पहले से भी अधिक कमजोर हो चली थी क्योंकि कार्यकर्ता 80 सीटों की जगह अब केवल 60 से 75 तक के आंकड़े को देख रहे थे। इसका मुख्य कारण नोटबंदी के बाद जीएसटी को लेकर नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार की हर तरफ आलोचना, गुजरात के व्यापारियों का विरोध, अल्पेश ठाकोर की अगुवाई वाला फ्रंट और पाटीदार पटेल आंदोलन का समाधान न होना आदि था।
नवंबर महीने में कारडिया राजपूत समाज ने गुजरात भाजपा अध्यक्ष जीतू वाघाणी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। ऐसे में भाजपा की मुश्किल और बढ़ गई हैं। हालांकि, भाजपा की ओर से दावा किया जा चुका है कि मामले को सुलझा लिया गया है। घबराहट की कोई बात नहीं है।
मगर, इस बात को खारिज करना भी मुश्किल है कि अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेघाणी और हार्दिक पटेल की तिक्कड़ी के बल पर मृत कांग्रेस एक बार फिर से दम भरने लगी है। डूबते को तिनके का सहारा — दिल्ली से विकास पागल हो गया जैसा नुकीला नारा लेकर निकले राहुल गांधी को गुजरात में अमित शाह के बेटे जय शाह का मामला बैठे बिठाए मिल गया।
भले ही माहौल कांग्रेस की तरफ बन चुका हो। लेकिन, भाजपा कार्यकर्ता अभी भी नरेंद्र मोदी की तरह 151 गिन लो पर अटके हुए हैं और अब कार्यकर्ता भी इस जादूई आंकड़े को बड़ी आसानी से हासिल करते हुए दिख रहे हैं।
यदि उनके तर्कों को मान लिया जाए, तो भारतीय जनता पार्टी गुजरात में सरकार बनाने जा रही है, और वो भी 136 से लेकर 151 सीटों के बीच में किसी भी आंकड़े पर।
जमीनी स्तर पर जीत के लिए दिन रात लड़ाई रह रहे भाजपा के एक युवा पद अधिकारी ने जो तर्क दिए, वो कुछ इस तरह हैं :
हार्दिक पटेल की सीडी देखने के बाद पटेलों का एक बड़ा तबका भाजपा के साथ आ चुका है। जो व्यापारी भाजपा से नाराज हुए थे, जीएसटी में फेरबदल करने से खुश हो चुके हैं। पद्मावती पर प्रतिबंध लगाने से राजपूत समाज भी भारतीय जनता पार्टी के साथ आ चुका है। अल्पेश ठाकोर ने राजनीति में न जाने की बात कही थी, उसने कांग्रेस में शामिल होकर समाज को धोखा दिया, और उससे नाराज समाज भाजपा के खेमे में आकर खड़ा हो चुका है।
यदि ऐसा है तो गुजरात में अब की बार भी कमल ही खिलेगा!
हां, यदि उपरोक्त तर्कों को खारिज कर दिया जाए, तो उपरोक्त पद अधिकारी भी स्वीकार करता है कि पार्टी की हालत खस्ता है, और पार्टी 70 से 80 सीटों के आंकड़े के बीच में झूल रही है।
लेकिन... जब हर बार भारतीय जनता पार्टी को वोट देकर कमल खिलाने वाले एक परिचित से मैंने उसी शाम कहा, 'शेयर बाजार काफी उुपर जा चुका है। यदि शेयर बेचने है, तो बेच दीजिये। अगर गुजरात में भारतीय जनता पार्टी हारी तो शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है।'
उनका जवाब हैरान करने वाला था, 'इस बार भाजपा नहीं आएगी।'
कार्यकर्ताओं के अपने तर्क हैं। जनता का अपना अनुभव है। जमीनी हकीकत कहती है कि इस बार भारतीय जनता पार्टी के लिए सिंहासन तक जाना काफी कठिन है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी के संकट मोचन कहे जाने वाले अमित शाह ने देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात में बड़े स्तर पर रैलियां करने के लिए कथित तौर पर अनुरोध किया।
हाल ही में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली में संबोधित करते हुए कहा था कि 151 गिन लो। यह वो ही आंकड़ा है, जो सोमनाथ में इस साल के आरंभ में आयोजित भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में तय हुआ था, बस फर्क इतना है कि उस समय केवल 150 से अधिक सीटों का संकल्प कहा गया था।
लेकिन, आज से कुछ महीने पहले, जब जीएसटी लागू नहीं हुआ था, तब एक बड़े पद की जिम्मेदारी संभाल रहे भाजपा नेता से मैंने व्यक्तिगत स्तर पर बात की थी, और पूछा था कि इस बार गुजरात चुनाव में जनता का रूझान क्या है? उनका कहना था कि 80 सीट तो हाथ में हैं। उनका मतलब साफ था कि 119 सीटों के साथ सत्ता में बैठी भाजपा के लिए डगर आसान नहीं है।
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जीएसटी लागू होने के बाद सरकार के खुफिया तंत्र की सर्वे रिपोर्ट का कांटा भी इसी आंकड़े के आस पास आकर ठहर सा गया। हालांकि, उसी समय में भाजपा की स्थिति पहले से भी अधिक कमजोर हो चली थी क्योंकि कार्यकर्ता 80 सीटों की जगह अब केवल 60 से 75 तक के आंकड़े को देख रहे थे। इसका मुख्य कारण नोटबंदी के बाद जीएसटी को लेकर नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार की हर तरफ आलोचना, गुजरात के व्यापारियों का विरोध, अल्पेश ठाकोर की अगुवाई वाला फ्रंट और पाटीदार पटेल आंदोलन का समाधान न होना आदि था।
नवंबर महीने में कारडिया राजपूत समाज ने गुजरात भाजपा अध्यक्ष जीतू वाघाणी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। ऐसे में भाजपा की मुश्किल और बढ़ गई हैं। हालांकि, भाजपा की ओर से दावा किया जा चुका है कि मामले को सुलझा लिया गया है। घबराहट की कोई बात नहीं है।
मगर, इस बात को खारिज करना भी मुश्किल है कि अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेघाणी और हार्दिक पटेल की तिक्कड़ी के बल पर मृत कांग्रेस एक बार फिर से दम भरने लगी है। डूबते को तिनके का सहारा — दिल्ली से विकास पागल हो गया जैसा नुकीला नारा लेकर निकले राहुल गांधी को गुजरात में अमित शाह के बेटे जय शाह का मामला बैठे बिठाए मिल गया।
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भले ही माहौल कांग्रेस की तरफ बन चुका हो। लेकिन, भाजपा कार्यकर्ता अभी भी नरेंद्र मोदी की तरह 151 गिन लो पर अटके हुए हैं और अब कार्यकर्ता भी इस जादूई आंकड़े को बड़ी आसानी से हासिल करते हुए दिख रहे हैं।
यदि उनके तर्कों को मान लिया जाए, तो भारतीय जनता पार्टी गुजरात में सरकार बनाने जा रही है, और वो भी 136 से लेकर 151 सीटों के बीच में किसी भी आंकड़े पर।
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जमीनी स्तर पर जीत के लिए दिन रात लड़ाई रह रहे भाजपा के एक युवा पद अधिकारी ने जो तर्क दिए, वो कुछ इस तरह हैं :
हार्दिक पटेल की सीडी देखने के बाद पटेलों का एक बड़ा तबका भाजपा के साथ आ चुका है। जो व्यापारी भाजपा से नाराज हुए थे, जीएसटी में फेरबदल करने से खुश हो चुके हैं। पद्मावती पर प्रतिबंध लगाने से राजपूत समाज भी भारतीय जनता पार्टी के साथ आ चुका है। अल्पेश ठाकोर ने राजनीति में न जाने की बात कही थी, उसने कांग्रेस में शामिल होकर समाज को धोखा दिया, और उससे नाराज समाज भाजपा के खेमे में आकर खड़ा हो चुका है।
यदि ऐसा है तो गुजरात में अब की बार भी कमल ही खिलेगा!
हां, यदि उपरोक्त तर्कों को खारिज कर दिया जाए, तो उपरोक्त पद अधिकारी भी स्वीकार करता है कि पार्टी की हालत खस्ता है, और पार्टी 70 से 80 सीटों के आंकड़े के बीच में झूल रही है।
लेकिन... जब हर बार भारतीय जनता पार्टी को वोट देकर कमल खिलाने वाले एक परिचित से मैंने उसी शाम कहा, 'शेयर बाजार काफी उुपर जा चुका है। यदि शेयर बेचने है, तो बेच दीजिये। अगर गुजरात में भारतीय जनता पार्टी हारी तो शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है।'
उनका जवाब हैरान करने वाला था, 'इस बार भाजपा नहीं आएगी।'
कार्यकर्ताओं के अपने तर्क हैं। जनता का अपना अनुभव है। जमीनी हकीकत कहती है कि इस बार भारतीय जनता पार्टी के लिए सिंहासन तक जाना काफी कठिन है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी के संकट मोचन कहे जाने वाले अमित शाह ने देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात में बड़े स्तर पर रैलियां करने के लिए कथित तौर पर अनुरोध किया।
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