कहो..... भीड़ नहीं हम.....
आस पास के लोगों से..... सतर्क हो जाइए..... क्योंकि पता नहीं कौन सा नकाबपोश..... काले धन का मालिक हो..... मखौटों के इस दौर में सब फर्जी हैं..... हां..... मैं..... आप..... हम सब फर्जी हैं।
चौंकिए मत..... सच है.....। कबूतर की तरह आंखें भींचने से क्या होगा?.....। याद कीजिए..... 35 लाख का घर..... और 22 लाख के दस्तावेज..... आखिर किसने बनवाये। बेरोजगार बेटे बेटी को 3 से 5 लाख रिश्वत देकर..... सरकारी नौकरी किसी ने दिलवाई.....। आखिर कौन पूछता है..... दामाद ऊपर से कितना कमा लेता है.....।
ऐसे ही तो..... जमा होता है काला धन..... काले धन वाले भी..... तो शामिल हैं ईमानदारों में..... और नोटबंदी का करते हैं जमकर समर्थन..... कहते हैं..... मिट जाएगा काला धन..... और खत्म होगी रिश्वतखोरी..... हां..... स्लीपर सैल की तरह..... हम में भी..... कहीं न कहीं..... छुपे बैठे हैं चोर.....
दम है तो पकड़िये..... रिश्वत लेते..... जो पकड़ा गया..... रिश्वत देकर छूट जाएगा..... सड़क पर ट्रैफिक वाला रसीद काटता है..... तो आप बड़े आदमी को फोन लगा लेते हैं..... ईमानदार कर्मचारी की बैंड खूब बजती है..... और तमाश देखते हैं हम सब.....
ट्रैफिक सिग्नल पर खड़ा शहरी 60 सैकेंड इंतजार नहीं कर सकता..... लेकिन..... गरीबों को लाइन में लगने पर खूब ज्ञान उड़ेल रहा है.....
युवान बेटा पिता के कहने पर बिजली का बिल भरने नहीं जाता..... कहीं..... लाइन बड़ी हुई तो डार्लिंग बुरा मान जाएगी..... फेसबुक पर उस गरीब को ज्ञान बांटता है..... जो 14 घंटे मजदूरी करता है..... और मिलता है बाबा जी ठुल्लू.....
बुरा तो लगता है..... कड़वी बात का..... जो कल तक..... मोदी की नोटबंदी का..... सबसे बड़ा समर्थक था..... पकड़ा गया बड़े नोटों के साथ.....
सब चुप रहेंगे..... कोई नहीं बोलेगा..... क्योंकि..... सच बोलने के लिए..... नकाब हटाने होंगें..... अपने स्वार्थों की बलि..... देनी होगी.....। इसलिए..... जो चल रहा..... चलने दें..... तमाशा देखें..... क्योंकि..... तमाशबीन हैं हम.....
125 करोड़ जनता..... 11 क्रिकेटर..... जमकर देखते हैं..... गाली निकालते हैं..... जीते तो जश्न मनाते हैं..... पर्दे पर अजय मेहरा देखकर..... खून खौलने लगता है..... घर आते आते..... थका हरा घसीट पीटा आम आदमी..... भीतर से निकलता है..... जैसे अदालीन के चिराग से जिन्न.....
हम को अचानक..... बोलने वाला प्रधानमंत्री मिलता है..... हम खुशी के मारे झूम उठते हैं..... क्योंकि..... हम बोल नहीं सकते..... कोई तो आया बोलने वाला.....
फिर अचानक..... बोलना भी..... सिरदर्द करने लगता है.....
फिर..... आशावाद..... फिर..... चलो देखते हैं..... और फिर..... मैं..... आप..... सब..... तमाशबीन हो जाते हैं.....
तमाशबीन होने का भी..... अपना ही एक मजा है.....
टीवी के सामने बैठकर..... सचिन को शॉट मारना सिखाते हैं..... फिल्म निर्देशक को..... निर्देशन के गुर..... किसी लड़ने वाले को..... नायक से खलनायक..... खलनायक से नायक बनाते हैं.....
कोई चौपालों में..... कोई ड्राइंग रूम में..... कोई चाय के गल्ले पर बैठकर..... देश बदल रहा है..... पान मसाले का पीक..... मुंह से थू थू हुए..... स्वच्छता का ज्ञान झाड़ा जा रहा है..... सुन रहे हैं हम..... क्योंकि..... तमाशबीन हैं हम
असल जीवन में..... काले को सफेद करने की दौड़..... सोशल मीडिया पर..... ज्ञान खूब बघारा जा रहा है..... किसका दामन..... कितना मैला..... हर कोई..... लिए प्रमाण पत्र..... घूम रहा है.....
कांग्रेस के दौर में..... शहीद हुए तो एक के बदले दस..... भाजपा के दौर में शहीद हुए..... तो सवाल मत पूछिए..... रैलियों में सुर ऊंचा है..... संसद में सिर नीचा है.....
क्यों नहीं..... हम नेता चुनते..... क्यों..... हर बार हम..... कांग्रेस..... बीजेपी..... चुनें..... क्यों नहीं..... हम सरकार से..... तीखे सवाल करते..... चाहे कांग्रेस की हो..... चाहे बीजेपी की हो.....
क्यों नहीं..... हर सवाल हमारा मौलिक होता..... क्यों..... हम पढ़े लिखे होने के बाद भी..... कॉपी पेस्ट..... नकल करते हैं..... सभ्य समाज हैं..... फिर भी..... चर्चा नहीं..... बहस करते हैं..... तर्क नहीं दे पाते..... तो गाली गालौच करते हैं.....
भीड़ नहीं तो..... क्या हैं हम..... एक ने लिखा..... चोर..... तो हम भी..... लिखते हैं..... चोर..... इंटरनेट है..... पर तथ्य..... क्यों नहीं खोजते हम..... पढ़े लिखे हैं हम..... यह क्यों नहीं सोचते..... एक ही वीडियो..... कभी कांग्रेस का हो जाता है..... कभी भाजपा का..... और अंधे हम..... करते हैं..... फॉरवर्ड..... फॉरवर्ड..... फॉरवर्ड.....
कहो..... भीड़ नहीं हैं हम..... बताओ..... भेड़ नहीं हम..... युवा हैं हम..... किसी के गुलाम नहीं हम..... बीरबलता नहीं..... नचिकेतता चाहिये हमें..... बुरे हैं तो बुरा कहो..... सच्चे हैं तो सच्चे कहो..... झूठ के लिबास में..... तारीफ नहीं चाहिये.....
कहो..... भीड़ नहीं हम.....
चौंकिए मत..... सच है.....। कबूतर की तरह आंखें भींचने से क्या होगा?.....। याद कीजिए..... 35 लाख का घर..... और 22 लाख के दस्तावेज..... आखिर किसने बनवाये। बेरोजगार बेटे बेटी को 3 से 5 लाख रिश्वत देकर..... सरकारी नौकरी किसी ने दिलवाई.....। आखिर कौन पूछता है..... दामाद ऊपर से कितना कमा लेता है.....।
ऐसे ही तो..... जमा होता है काला धन..... काले धन वाले भी..... तो शामिल हैं ईमानदारों में..... और नोटबंदी का करते हैं जमकर समर्थन..... कहते हैं..... मिट जाएगा काला धन..... और खत्म होगी रिश्वतखोरी..... हां..... स्लीपर सैल की तरह..... हम में भी..... कहीं न कहीं..... छुपे बैठे हैं चोर.....
दम है तो पकड़िये..... रिश्वत लेते..... जो पकड़ा गया..... रिश्वत देकर छूट जाएगा..... सड़क पर ट्रैफिक वाला रसीद काटता है..... तो आप बड़े आदमी को फोन लगा लेते हैं..... ईमानदार कर्मचारी की बैंड खूब बजती है..... और तमाश देखते हैं हम सब.....
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युवान बेटा पिता के कहने पर बिजली का बिल भरने नहीं जाता..... कहीं..... लाइन बड़ी हुई तो डार्लिंग बुरा मान जाएगी..... फेसबुक पर उस गरीब को ज्ञान बांटता है..... जो 14 घंटे मजदूरी करता है..... और मिलता है बाबा जी ठुल्लू.....
बुरा तो लगता है..... कड़वी बात का..... जो कल तक..... मोदी की नोटबंदी का..... सबसे बड़ा समर्थक था..... पकड़ा गया बड़े नोटों के साथ.....
सब चुप रहेंगे..... कोई नहीं बोलेगा..... क्योंकि..... सच बोलने के लिए..... नकाब हटाने होंगें..... अपने स्वार्थों की बलि..... देनी होगी.....। इसलिए..... जो चल रहा..... चलने दें..... तमाशा देखें..... क्योंकि..... तमाशबीन हैं हम.....
125 करोड़ जनता..... 11 क्रिकेटर..... जमकर देखते हैं..... गाली निकालते हैं..... जीते तो जश्न मनाते हैं..... पर्दे पर अजय मेहरा देखकर..... खून खौलने लगता है..... घर आते आते..... थका हरा घसीट पीटा आम आदमी..... भीतर से निकलता है..... जैसे अदालीन के चिराग से जिन्न.....
हम को अचानक..... बोलने वाला प्रधानमंत्री मिलता है..... हम खुशी के मारे झूम उठते हैं..... क्योंकि..... हम बोल नहीं सकते..... कोई तो आया बोलने वाला.....
फिर अचानक..... बोलना भी..... सिरदर्द करने लगता है.....
फिर..... आशावाद..... फिर..... चलो देखते हैं..... और फिर..... मैं..... आप..... सब..... तमाशबीन हो जाते हैं.....
तमाशबीन होने का भी..... अपना ही एक मजा है.....
टीवी के सामने बैठकर..... सचिन को शॉट मारना सिखाते हैं..... फिल्म निर्देशक को..... निर्देशन के गुर..... किसी लड़ने वाले को..... नायक से खलनायक..... खलनायक से नायक बनाते हैं.....
कोई चौपालों में..... कोई ड्राइंग रूम में..... कोई चाय के गल्ले पर बैठकर..... देश बदल रहा है..... पान मसाले का पीक..... मुंह से थू थू हुए..... स्वच्छता का ज्ञान झाड़ा जा रहा है..... सुन रहे हैं हम..... क्योंकि..... तमाशबीन हैं हम
असल जीवन में..... काले को सफेद करने की दौड़..... सोशल मीडिया पर..... ज्ञान खूब बघारा जा रहा है..... किसका दामन..... कितना मैला..... हर कोई..... लिए प्रमाण पत्र..... घूम रहा है.....
कांग्रेस के दौर में..... शहीद हुए तो एक के बदले दस..... भाजपा के दौर में शहीद हुए..... तो सवाल मत पूछिए..... रैलियों में सुर ऊंचा है..... संसद में सिर नीचा है.....
क्यों नहीं..... हम नेता चुनते..... क्यों..... हर बार हम..... कांग्रेस..... बीजेपी..... चुनें..... क्यों नहीं..... हम सरकार से..... तीखे सवाल करते..... चाहे कांग्रेस की हो..... चाहे बीजेपी की हो.....
क्यों नहीं..... हर सवाल हमारा मौलिक होता..... क्यों..... हम पढ़े लिखे होने के बाद भी..... कॉपी पेस्ट..... नकल करते हैं..... सभ्य समाज हैं..... फिर भी..... चर्चा नहीं..... बहस करते हैं..... तर्क नहीं दे पाते..... तो गाली गालौच करते हैं.....
भीड़ नहीं तो..... क्या हैं हम..... एक ने लिखा..... चोर..... तो हम भी..... लिखते हैं..... चोर..... इंटरनेट है..... पर तथ्य..... क्यों नहीं खोजते हम..... पढ़े लिखे हैं हम..... यह क्यों नहीं सोचते..... एक ही वीडियो..... कभी कांग्रेस का हो जाता है..... कभी भाजपा का..... और अंधे हम..... करते हैं..... फॉरवर्ड..... फॉरवर्ड..... फॉरवर्ड.....
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कहो..... भीड़ नहीं हम.....
बहुत अच्छा लिखा आपने, भीड़ नहीं है हम।
जवाब देंहटाएंSachin3304.blogspot.in
bahut sahi likha hai aapne..dhanyawaad
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