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अगस्त, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

न हिंदुस्तान बुरा, न पाकिस्तान बुरा

स्नानघर में सुबह जब नहाने के लिए गया, तो दिमाग में कुछ अजीब सी हलचल हुई। जब महसूस किया तो कुछ शब्द उभरकर जुबां पर आ गए। जिनको तुरंत मैंने आपके सामने परोसकर रख दिया। स्वादृष्टि होंगे या नहीं मैं नहीं जानता, लेकिन इन को प्रकट करने मन को सुकून सा मिल गया। न हिंदुस्तान बुरा, न पाकिस्तान बुरा यहां धर्म के ठेकेदार, औ' वहां तालिबान बुरा न यहां का, न वहां का इंसान बुरा बाबा नानक यहां भी बसता वहां भी बसता नुसरत हो या रफी यहां भी बजता है वहां भी बजता है इंसान वहां का भी और यहां का भी शांति चाहता है नहीं मांगती किसी की आंखें तबाही-ए-मंजर नहीं उठाना चाहता कोई हाथ में खूनी खंजर कोई नहीं चाहता कि हो दिल-ए-जमीं बंजर मिट्टी वहां भी वो ही है मिट्टी यहां भी वो ही है बांटी गई नहीं जमीं, बस मां का जिगर लहू लहान हुआ है तब जाकर एक हिंदुस्तान और दूसरा पाकिस्तान हुआ है तबाही यहां हो चाहे वहां हो दर्द तो बस एक मां को होता है जो बट गई टुकड़ों में

दर्द-ए-आवाज मुकेश को मेरा नमन, और आपका

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जी हां, पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है, उंगलियां कुछ और लिख रही हैं और दिमाग में कुछ और चल रहा है। मुझे नहीं पता मेरे ऐसा पिछले दिनों से ऐसा क्यों हो रहा है, वो बात मैं आपके साथ बांटना चाहता हूं, इस पोस्ट के मार्फत। पिछले दिनों अचानक मेरे दिमाग में एक नाम आया, वो था मुकेश का। ये मुकेश कोई और नहीं, हमारे होंठों पर आने वाले गीतों को अमर कर देने वाली आवाज के मालिक मुकेश का ही था। मेरा हिंदी संगीत से कोई ज्यादा रिश्ता नहीं रहा, लेकिन दूरदर्शन की रंगोली और चित्रहार ने मुझे कहीं न कहीं हिन्दी संगीत के साथ जोड़े रखा। पहले पहल तो ऐसा ही लगा करता था कि अमिताभ खुद गाते हैं, और अक्षय कुमार खुद गाते हैं, जैसे जैसे समझ आई, पता चला कि गीतों में जान फूंकने वाला तो कोई और ही होता है, ये तो केवल आवाज पर उन पर गाने का अभिनय करते हैं। पता नहीं, मुझे पिछले कुछ दिनों से क्यों ऐसा लग रहा था कि ‘दर्द-ए-संगीत’ की रूह मुकेश को शायद मीडिया की ओर से उतना प्यार नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए, विशेषकर खंडवा के लाल किशोर दा के मुकाबले तो कम ही मिलता है, ये तो सच है। किशोर दा का जन्मदिवस या पुण्यति

क्यों नहीं भाते कुंवारे इनको ?

कल अरुण शौरी की खबर पर अचानक एक खबर भारी पड़ गई थी, जी हां वो खबर थी शिल्पा शेट्टी के विवाह की खबर। कल मीडिया में शिल्पा के पिता के हवाले से कुछ खबरें आई, जिनमें कहा गया कि शिल्पा राज कुंदरा की होने वाली हैं, जो एक तलाकशुदा व्यक्ति है। शिल्पा शेट्टी राजकुंदरा से शादी कर ओकलाहामा स्टेट यूनिवर्सिटी की शोध को सच कर रही है या नहीं, “जिसमें कहा गया था कि कुंवरी लड़कियों की पहली पसंद शादीशुदा पुरुष होते हैं”, ये तो पता नहीं। हां, मगर वो बॉलीवुड की उस प्रथा को आगे बढ़ा रही हैं, जिस प्रथा को योगिता बाली, रिया पिल्ले, करिश्मा कपूर, मान्यता ने कड़ी दर आगे चलाया। संगीत की दुनिया में अमिट छाप छोड़ जाने वाले किशोर दा के साथ योगिता बाली ने शादी रचाई, लेकिन ये विवाह संबंध जल्द ही टूट गए और योगिता बाली मिथुन चक्रवर्ती की हो गई। किशोर कुमार की योगिता बाली के साथ तीसरी शादी थी। एक भारतीय टेनिस खिलाड़ी की पत्नी बन चुकी रिया पिल्ले ने संजय दत्त के साथ रचाई, जो अपनी पहली पत्नी को खोने के बाद तन्हा जीवन जी रहे थे, लेकिन यहां पर भी विवाह संबंध सफल न हुए और रिया ने संजय से अलग होकर एक टेनिस सितारे लिएंडर पेस से

गणेशोत्सव, और मेरा चिंतन

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रविवार से गणेशोत्सव शुरू होने वाला है, इस बात का अहसास मुझे उस वक्त हुआ। जब शुक्रवार को मैं शहर के बीच से गुजर रहा था। सड़क किनारे हजारों की तादाद में पड़ी गणेश की मूर्तियां इंदौरवासियों के धार्मिक होने की पुष्टि कर रही थी। दुकानों के बाहर सड़क पर रखी हजारों रंग बिरंगी गणेश की मूर्तियां आंखों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। एक बार तो मेरा भी रुकने का मन हुआ, लेकिन वक्त ने रुकने की इजाजत नहीं दी। बाजारों में भक्तों की पॉकेट हैसियत के अनुकूलन सजी हुई मूर्तियां बहुत प्यारी लग रही थी, लेकिन इनकी मूर्तियों की खूबसूरत चार दिन की चांदनी जैसी है, क्योंकि कुछ दिनों बाद इन मूर्तियों का जलप्रवाह कर दिया जाएगा। नदियों में जल नहीं है, लेकिन फिर भी लोग जलप्रवाह करने जाएंगे, जिसका नतीजा हम सबको को देखने को मिलता है, किसी नदी के किनारे पड़ी खंडित मूर्तियां के रूप में। जहां एक मूर्ति खंडित होने पर पता नहीं कितने इंसानों को खंडित कर दिया जाता है, और नगरों के नगर तबाह हो जाते हैं, मगर वहीं दूसरी तरफ इस तरह नदी किनारे हजारों मूर्ति खंडित होती हैं, उनका की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। क्या जलप्रवाह या विसर्जन

बदनाम हुए तो क्या हुआ

'बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ' ये पंक्ति बहुत बार सुनी होगी जिन्दगी में, लेकिन मैंने तो इसको कुछ समय से सत्य होते हुए भी देख लिया। इस बात को सत्य किसी और ने नहीं बल्कि हिंदुस्तानी मनोरंजक चैनलों ने कर दिखाया है। राखी सावंत से लेकर विश्व प्रसिद्धी हासिल शिल्पा शेट्टी तक आते आते कई ऐसे नाम मिल जाएंगे, जो इस बात की गवाही भरते हैं कि बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ। कल तक अनुराधा बाली को कोई नहीं जानता था, लेकिन जैसे ही वो फिजा के नाम से बदनाम हुई तो रियालिटी शो बनाने वालों की निगाह सबसे पहले उस पर पड़ी, बेशक रियालिटी शो बनाने वाले शो का फोर्मेट तक चुराते हैं। इमरान हाशमी के नाम एक खुला पत्र फिजा को इस जंगल से मुझे बचाओ में ब्रेक देकर सोनी टेलीविजन वालों ने उस कड़ी को आगे बढ़ाया, जिसको क्लर्स ने मोनिका बेदी, शिल्पा शेट्टी एवं महरूम जेड गुडी को ब्रेक देकर शुरू किया था। मोनिका अबू स्लेम के कारण बदनाम हुई, तो शिल्पा शेट्टी पहले जेड गुडी के कारण और फिर रिचर्ड गेयर के कारण बदनाम हुई, क्लर्स टीवी ने बदनाम महिलाओं को ही नहीं बल्कि राहुल महाजन एवं राजा चौधरी को भी जगह दी, जिन्होंने

एक सोच पर प्रतिबंध कहां तक उचित ?

अब पाकिस्तान में घमासान मचने को तैयार है, क्योंकि इमरान खान की लिखी गई जीवनी में कुछ ऐसी बातें सामने आई हैं, जो भुट्टो परिवार को आहत कर सकती हैं। समझ नहीं आ रही कि हर कोई सच का सामना क्यों करना चाहता है, वो भी उस सच का जिसे किसी का भी घर उजड़ सकता है। हर कोई सुकरात बनने की फिराक में। पिछले सोमवार को रिलीज हुई जसवंत सिंह की किताब ने अपनी रिलीज के बाद ही राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी, अगर देखा जाए तो जसवंत सिंह ने उस कहावत को सच करने की कोशिश की है, जो हम सब आम सुनते हैं कि एक हाथ से ताली नहीं बजती। ये बिल्कुल सच है कि कभी भी एक हाथ से ताली नहीं बजती, और उस तत्थ को भी उन्होंने सही साबित करने की कोशिश की है कि अगर हम किसी दूसरे की तरफ एक उंगली उठाते हैं तो शायद तीन उंगुलियां हमारी तरफ होती हैं। जसवंत सिंह ऐसा पहला शख्स नहीं जिसने जिन्ना के बारे में कुछ कहा हो, इससे पहले भाजपा के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवानी भीं जिन्ना की वकालत कर चुके हैं। आडवानी ने तो अपने पद से त्याग पत्र देकर पार्टी को चुप करवा दिया था, लेकिन जसवंत सिंह की बारी तो पार्टी के कायदे कानून ही बदल गए। जिन्ना को लेकर बवाल

एक ऐसा रियालिटी शो, जो बयाँ करता रियालिटी

रियालिटी शो में होती नहीं रियालिटी...इस धारणा को मानकर नहीं देखता था रियालिटी शो...लेकिन एक रियालिटी शो ऐसा, जिसने बदल डाली मेरी धारणा...जी हां..सच है दूध सा सफेद...खरा नहीं क्योंकि दूध में मिलावट चल रही है। शायद मेरी तरह आपकी इस रिलायिटी शो के दीवाने हों...पक्का नहीं कहता। बात को लम्बी नहीं खींचते हुए बताता हूं कि मैं कलर्स पर प्रसारित होने वाले रियालिटी शो.. इंडियाज गोट टेलेंट की बात कर रहा हूं। छोटे पर्दे पर रियालिटी शो तो और भी हैं, लेकिन इस रियालिटी शो की बात ही कुछ और है.. यहां पर जज आपस में टकराते नहीं बात बात पर..मीडिया की सुर्खियां भी नहीं बटोरते...बस ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। सच में ही इंडियाज़ गोट टेलेंट ने मेरी तो रियालिटी शो के प्रति नकारात्मक सोच को बदल कर रख दिया। इस शो को देखने के बाद लगता है कि हिंदुस्तान में हुनर की कोई कमी नहीं..और इस रियालिटी शो की टेग लाईन भी बड़ी दमदार है 'हुनर ही विनर है'। सचमुच इस शो को देखते हुए लगता है कि भारत में हुनर की कोई कमी नहीं..बस देखने वाली आँख भगवान ने हर किसी को नहीं दी। 15 अगस्त को जब ये शो देख रहा था तो आँख

कौन दिशा में ले चला रे पत्रकारिता

कौने दिशा में चला रे 'बटोहिया'... इस गीत को मैंने और आपने बहुत बार सुना होगा, लेकिन आजकल जब अख़बारों एवं खबरिया चैनलों को देखता हूं तो इस गीत को याद करता हूं। आप सोच रहे होंगे कि बात तो कुछ पल्ले नहीं पड़ी। इसका पत्रकारिता से क्या लेना देना है? पर आजकल की पत्रकारिता ही ऐसी हो गई कि कहना पड़ता है कौन दिशा में ले चला रे पत्रकारिता। पत्रकारिता का अर्थ सूचना देना होता है, न कि सनसनी फैलाना। मगर आज तो हर कोई सनसनी फैलाने पर लगा हुआ है, सूचना की तो कोई बात ही नहीं। पहले तालिबान था और अब स्वाइन फ्लू। टीवी वाले बिना रुकावट निरंतर दिन में कई दफा एक ही बात का प्रचार कर उसको हौवा बना देते हैं । ऐसे में कोई भी कह उठेगा ‘कौन दिशा में ले चला रे पत्रकारिता’, इसमें दोष न्यूज एंकर का नहीं, वो तो मालिक के हाथ की कठपुतली है, उसको तो वो करना है जो मालिक को नफा दे, तभी तो उसकी पगार आएगी। सही में बोलें तो पापी पेट का सवाल है। पत्रकारिता का क्षेत्र अब उन लोगों के लिए नहीं जो आदर्श पत्रकारिता करना चाहते हैं, क्योंकि उनकी यहां चलती है कहां, यहां तो स्थिति फौज वाली है। बस यस सर, बोलो नो का कोई काम नहीं

इमरान हाशमी के नाम एक खुला पत्र

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तुमने तो यू-टर्न ले लिया, लेकिन आज के बाद अगर किसी अन्य व्यक्ति ने आवाज उठाई तो उसका क्या होगा? इमरान हाश्मी। क्या तुम्हारे पास कोई जवाब है? तुम तो मिस-कम्यूनिकेशन की बात कहकर निकल गए, अगर तुम्हारे बयान के बाद शहर की स्थिति तनावपूर्ण हो जाती तो फिर कोई क्या करता। तुमको तो मशहूरी मिल गई, चर्चा मिल गई। तुमने तो सच के खिलाफ उठने वाली आवाजों को भी दबने के लिए मजबूर कर दिया। अगर आज के बाद कोई सच के खिलाफ भी आवाज उठाएगा तो लोग उसको झूठ-मशहूरी का फंडा कहकर नकार देंगे। इमरान हाश्मी तुम तो इस फिल्म जगत में नए हो, लेकिन यहां तो सालों से मुस्लिम भाईचारे के लोग बसे हुए हैं एवं फिल्म जगत पर राज कर रहे हैं। उनके मुम्बई में बड़े बड़े आलीशान महल हैं, यहां तक कि शाहरुख खान के बंगले मन्नत को देखने के लिए सैंकड़ों लोग हर रोज मुम्बई तक आते हैं। वो भी तो मुस्लिम भाईचारे से है, उनको तो किसी ने बाजू पकड़कर बाहर नहीं निकाला। समस्या वो नहीं थी, जो तुमने बताई, मीडिया में जिसका चर्चा किया। समस्या तो ये है कि तुम अभी स्टार बने ही नहीं, तुम तो एक सीरियल किसर हो, जिसको बस वो युवा देखते हैं, जिनको स्क्रीन पर आंखें गर

रक्षा बंधन के रंग में रंगे कुछ ब्लॉग आपकी नज़र

आज रक्षा बंधन है, तो स्वाभिक है कि हमारे ब्लॉग लेखक इस त्यौहार पर अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करने से कैसे पीछे रह सकते हैं। अखबारों से लेकर टेलीविजन तक हर जगह रक्षा बंधन की बातें हो रही हैं। तो ऐसे में हमारा ब्लॉग जगत कैसे पीछे रहेगा, जी हां, हमारे इस जगत के कुछ लेखकों ने अपने अपने ढंग से रक्षा बंधन के मौके पर कुछ कुछ अभिव्यक्ति व्यक्त की हैं। जो मैं इस पोस्ट के जरिए आपके पास भेज रहा हूं। अगर कोई ब्लॉग पढ़ने से छुट गया हो तो अब पढ़ लीजिए, कोई बहाना मत कीजिए। रक्षा बंधन के पलों के साथ जिन्दगी को हसीन ढंग से जीजिए।... मेरी प्यारी बहना //कच्चे कचनार के नीचे खड़े भाई खूब याद आते हैं... उस छोटी दुनिया में बड़ी खुशियाँ हासिल थी जहाँ हमे..// एक राखी ऐसी भी थी राखी का गीत -आचार्य संजीव 'सलिल' राखी ...!!!! मेरे भैया - राखी के इस पावन अवसर पर एक आध्यात्मिक बंधन- रक्षा बंधन अटूट विश्वास का बन्धन है राखी मेरी बहन तु सलामत रहे बहना मेरी राखी के बंधन को निभाना अटूट विश्वास का बंधन है राखी रक्षा बंधन पर एक कार्टून ! याद जो तेरी आई बहना !!

बदनाम हुए तो क्या हुआ

'बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ' ये पंक्ति बहुत बार सुनी होगी जिन्दगी में, लेकिन मैंने तो इसको कुछ समय से सत्य होते हुए भी देख लिया। इस बात को सत्य किसी और ने नहीं बल्कि हिंदुस्तानी मनोरंजक चैनलों ने कर दिखाया है। राखी सावंत से लेकर विश्व प्रसिद्धी हासिल शिल्पा शेट्टी तक आते आते कई ऐसे नाम मिल जाएंगे, जो इस बात की गवाही भरते हैं कि बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ। कल तक अनुराधा बाली को कोई नहीं जानता था, लेकिन जैसे ही वो फिजा के नाम से बदनाम हुई तो रियालिटी शो बनाने वालों की निगाह सबसे पहले उस पर पड़ी, बेशक रियालिटी शो बनाने वाले शो का फोर्मेट तक चुराते हैं। फिजा को इस जंगल से मुझे बचाओ में ब्रेक देकर सोनी टेलीविजन वालों ने उस कड़ी को आगे बढ़ाया, जिसको क्लर्स ने मोनिका बेदी, शिल्पा शेट्टी एवं महरूम जेड गुडी को ब्रेक देकर शुरू किया था। मोनिका अबू स्लेम के कारण बदनाम हुई, तो शिल्पा शेट्टी पहले जेड गुडी के कारण और फिर रिचर्ड गेयर के कारण बदनाम हुई, क्लर्स टीवी ने बदनाम महिलाओं को ही नहीं बल्कि राहुल महाजन एवं राजा चौधरी को भी जगह दी, जिन्होंने असल जिन्दगी में अपना घर उजाड़ने के बा