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जलाल देखा

आज कई दिनों के बाद तेरे चेहरे पे खुशी का जलाल देखा ए बिछोह के सुल्तान फिर तेरे मनांगन को खुशहाल देखा तुम खुश क्या हुए हकीकत में बदलता हुआ ख्याल देखा तेरे चेहरे का नूर देख दुश्मनों के लबों पर आया सवाल देखा लौटी तेरे घर खुशी हैपी ने आँख से कुदरत का कमाल देखा

'अजब प्रेम..' पर टिका संतोषी का भविष्य

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अगर हिन्दी फिल्म जगत के फिल्म निर्देशकों की बात की जाए तो राजकुमार संतोषी का नाम न लिया जाए तो शायद बात अधूरी सी लगेगी। उनकी फ्लॉप फिल्मों ने उनके कैरियर में एक काला अध्याय लिख दिया है, लेकिन फिर भी एक समय था जब राजकुमार संतोषी की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खूब तालियां एवं पैसा बटोरती थी। अब बहुत जल्द राजकुमार संतोषी अपनी अगली फिल्म 'अजब प्रेम की गजब कहानी' लेकर आए रहे हैं, लेकिन मन में सवाल उठता है कि श्री संतोषी जी युवा दर्शकों को संतुष्ट कर पाएंगे ? मेरे दिमाग में ये सवाल इस लिए आया, क्योंकि पिछले साल रिलीज हुई उनकी फिल्म 'हल्ला बोल', उनकी 1993 में रिलीज हुई दामिनी से काफी मिलती जुलती थी। जिसके कारण उनकी ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा समय टिक नहीं पाई, बेशक इस फिल्म में पंकज कपूर के काम को ज्यादा प्रशंसा मिली। संतोषी और देओल परिवार की जोड़ी बॉक्स ऑफिस पर खूब गजब ढाहती थी, लेकिन आजकल दोनों ही परिवार बुरे दौर से गुजर रहे हैं। संतोषी और देओल नाम की युगलबंदी ने हिन्दी फिल्म जगत को घायल, दामिनी, घातक, बरसात जैसी हिट फिल्में दी। इसके बाद संतोषी ने अजय देवगन से हाथ मिला लिया, वो भ

मन तो वो भी मैला करते थे

कल जब दो बातें एहसास की पर लोकेन्द्र विक्रम सिंह जी द्वारा लिखत काव्य ""कागज के जहाज अक्सर उछाला करतें हैं..."" पढ़ रहा था तो अचानक मेरे मन के आंगन में भाव्यों की कलियां खिलने लगी, जिनकी खुशबू मैं ब्लॉग जगत में बिखेरने जा रहा हूं। धूप सेकने के बहाने, गर हम छत्त पे बैठा करते थे, वो भी जान बुझकर यूं ही आंगन में टहला करते थे। हम ही नहीं जनाब, मन तो वो भी मैला करते थे॥ जब जाने अनजाने में नजरें मिला करती थी। दिल में अहसास की कलियां खिला करती थी।। बातों के लिए और कहां हुआ तब एयरटेला* करते थे। हम ही नहीं जनाब, मन तो वो भी मैला करते थे॥ जुबां काँपती, शरीर थर-थर्राता जब पास आते। कुछ कहने की हिम्मत यारों तब कहां से लाते॥ पहले तो बस ऐसे ही हुआ मंजनू लैला करते थे। हम ही नहीं जनाब, मन तो वो भी मैला करते थे॥ गूंगी थी दोनों तरफ मोहब्बत फल न सकी। मैं उसके और वो मेरे सांचों में ढल न सकी॥ पाक थे रिश्ते अफवाह बन हवा में न फैला करते थे। हम ही नहीं जनाब, मन तो वो भी मैला करते थे॥

इंदौर आएंगे क्या खाएंगे-पार्ट 2

सुबह सुबह जब आप उठते हैं तो शायद आपको चाय और घर में बना हुआ कुछ खाने को मिल जाए। पंजाब में तो ज्यादातर स्कूली बच्चों और आफिस जाने वालों को चाय के साथ पराठे मिल जाते हैं नाश्ते के तौर पर। मगर इंदौर में सुबह सुबह पोहा जलेबी मिलता है, खासकर उनको जो इस शहर में घर परिवार के साथ स्थापित नहीं, बाहर से आए हुए हैं। इंदौर के हर कोने पर सुबह सुबह आपको लोग पोहा जलेबी खाते हुए मिलेंगे। जब मैं इस शहर में आया था तो तब मैं भी इसका आदि हो गया था, लेकिन धीरे धीरे दूरी बढ़ती गई। पोहे के साथ जलेबी बहुत स्वाद लगती है, लेकिन हम तो पोहा जलेबी के बाद चाय भी पीते थे, हमारा चाय के बगैर चलता नहीं। सुबह सुबह छप्पन पर लोगों की भीड़ आपको हैरत में डाल सकती है, पलासिया स्थित छप्पन दुकान पर लड़के लड़कियों की युगलबंदी तो आम ही मिल जाती हैं। वैसे कहूं तो इंदौर में छप्पन दुकान का नाम लव प्वाइंट भी रखा जा सकता था। कुछ लोग सुबह सुबह पेट की भूख मिटाने आते हैं और कुछ लोग यहां आंखें सेकने और दिल जलाने आते हैं। छप्पन पर प्रेमी परिंदों के लिए हर चीज उपलब्ध है, साईबर कैफे, मिठाई शॉप, आईक्रीम शॉप, गिफ्ट शॉप, रेस्टोरेंट वगैरह वगैरह। य

इंदौर आएंगे तो क्या खाएंगे ? सोचिए मत

इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया, लेकिन मैंने शहर को क्या दिया अक्सर सोचता हूं? कल जब मैं राजवाड़ा से निकल रहा था तो मैंने सोचा क्यों न, इस शहर की अच्छी चीजों को इतर की तरह हवा में फैलाया जाए ? क्यों न किसी को बातों ही बातों में कुछ बताया जाए? मुझे इस शहर में आए तीन वर्ष होने वाले हैं, लेकिन अब भी सीने में धड़कते दिल में पंजाब ही धड़कता है, उस मिट्टी की खुशबू को मैं आज भी महसूस कर सकता हूं पहले की भांति, लेकिन बुजुर्गों ने कहा है कि जहां का खाईए, वहां का गाईए। इस लिए मैं इस शहर का भी थोड़ा सा कर्ज उतार रहा हूं। इंदौर मध्यप्रदेश की कारोबारिक राजधानी कहलाता शहर है, इसके दिल में बसता है राजवाड़ा, जहां पर आपको सूई से लेकर जहाज तक मिल जाएगा। जहां पर आप वो बड़े जहाज को भूलकर बच्चों वाला जहाज समझिए बेहतर होगा। जब भी मैं इस बाजार में आता हूं तो सबसे पहले या सबसे बाद में सराफा बाजार जाना नहीं भूलता, सराफा बाजार में जहां दिन के वक्त सोना चांदी बिकता है तो शाम को आपको तरह तरह के व्यंजनों का स्वाद चखने को मिलता है, एक इंदौर में यही स्थान है जो देर रात तक आपको खुला मिलेगा। यहां स्थित एक दुकान पर जाना नहीं