संदेश

छोटे आसमां पर बड़े सितारे

शाहरुख खान छोटे पर्दे से बड़े पर्दे पर जाकर बालीवुड का किंग बन गया एवं राजीव खंडेलवाल आपनी अगली फिल्म 'आमिर' से बड़े पर्दे पर कदम रखने जा रहा है, मगर वहीं लगता है कि बड़े पर्दे के सफल सितारे अब छोटे पर्दे पर धाक जमाने की ठान चुके हैं। इस बात का अंदाजा तो शाहरुख खान की छोटे पर्दे पर वापसी से ही लगाया जा सकता था, मगर अब तो सलमान खान एवं ऋतिक रोशन भी छोटे पर्दे पर दस्तक देने जा रहे हैं. इतना ही नहीं पुराने समय के भी हिट स्टार छोटे पर्दे पर जलवे दिखा रहे हैं, जिनमें शत्रुघन सिन्हा एवं विनोद खन्ना प्रमुख है. बालीवुड के सितारों का छोटे पर्दे की तरफ रुख करने के दो बड़े कारण हैं, एक तो मोटी राशी एवं दूसरा अधिक दर्शक मिल रहे हैं. इन सितारों के अलावा अक्षय कुमार, अजय देवगन, गोविंदा भी छोटे पर्दे के मोह से बच नहीं सके. अभिनेताओं की छोड़े अभिनेत्रियां भी कहां कम हैं उर्मिला मातोंडकर एवं काजोल भी छोटे पर्दे पर नजर आ रही हैं. छोटे पर्दे पर भी आना बुरी बात नहीं लेकिन जब आप बड़े पर्दे पर सफलता की शिखर पर बैठे हों तो छोटे पर्दे की तरफ रुख करना ठीक नहीं, इस सबूत तो शाहरुख खान को मिल गया, उसके नए टी

क्रिकेट पर नस्लीय टिप्पणियों का काला साया

चित्र
क्रिकेट खेल मैदान अब धीरे धीरे नस्लीय टिप्पणियों का मैदान बनता जा रहा है. आज खेल मैदान में खिलाड़ी खेल भावना नहीं बल्कि प्रतिशोध की भावना से कदम रखता है. वो अपने मकसद में सफल होने पर सम्मान महसूस करने की बजाय अपने विरोधी के आगे सीना तानकर खड़ने में अधिक विश्वास रखता है. यही बात है कि अब क्रिकेट का मैदान नस्लवादी टिप्पणियों के बदलों तले घुट घुटकर मर रहा है. इसके पीछे केवल खिलाड़ी ही दोषी नहीं बल्कि टीम प्रबंधन और बाहर बैठे दर्शक भी जिम्मेदार हैं. अगर टीम प्रबंधन खिलाड़ियों के मैदान में उतरने से पहले बोले कि खेल को खेल भावना से खेलना और नियमों का उल्लंघन करने पर कड़ी सजा होगी तो शायद ही कोई खिलाड़ी ऐसा करें. लेकिन आज रणनीति कुछ और ही है मेरे दोस्तों. आज की रणनीति 'ईंट का जवाब पत्थर' से देने की है. जिसके चलते आए दिन कोई न कोई खिलाड़ी नस्लवादी टिप्पणी का शिकार होता है. यह समस्या केवल भारतीय और आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की नहीं बल्कि इससे पहले दक्षिण अफ्रीका के खिलाड़ी हर्शल गिब्स ने भी पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर टीका टिप्पणी की थी. खेल की बिगड़ती तस्वीर को सुधारने के लिए खेल प्रबंधन को ध्यान

अंत तक नहीं छोड़ा दर्द ने दामन

कोई दर्द कहां तक सहन कर सकता है, इसकी सबसे बड़ी उदाहरण है पिछले दिनों मौत की नींद सोई बेनज़ीर भुट्टो..जो नौ वर्षों के बाद पाकिस्तान लौटी थी..सिर पर कफन बांधकर..उसको पता था कि उसकी मौत उसको बुला रही थी, मगर फिर भी क्यों उसने अपने कदमों को रोका नहीं. इसके पिछे क्या रहा होगा शोहरत का नशा या फिर झुकेंगे नहीं मर जाएंगे के कथन पर खरा उतरने की कोशिश.. कुछ भी हो, असल बात तो ये है कि दर्द ने बेनजीर भुट्टो का दामन ही नहीं छोड़ा. स्व. इंदिरा गांधी की शख्सियत से प्रभावित और अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो से राजनीतिक हुनर सीखकर राजनीतिक क्षेत्र में उतरी बेनज़ीर भुट्टो बुर्के से चेहरे को बाहर निकालकर देश की सत्ता संभालने वाली पहली महिला थी. बेनज़ीर भुट्टो स्व. इंदिरा गांधी से पहली बार तब मिली थी, जब बांग्लादेश युद्ध के बाद 1972 में जुल्फिकार अली भुट्टो शिमला समझौते के लिए भारत आए थे, इस दौरन भुट्टो भी उनके साथ थी। बेनज़ीर की हँसती खेलती जिन्दगी में दर्द का सफर तब शुरू हुआ, जब 1975 में बेनजीर के पिता को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था और उनके विरुध एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या मुकदमा

इंसान की पहचान, उसकी बातें

चित्र
जैसे हीरे की पहचान जौहरी को होती है, वैसे ही इंसान की परख इंसान को. बस आप को सामने वाली बातों को ध्यान से सुनना है, जब वो किसी और से बात कर रहा हो. इस दौरान इंसान की मानसिकता किसी ना किसी रूप में सामने आई जाती है. आप ने देखा होगा कि कुछ लोगों को आदत होती है कि वो अपने एक सहयोगी या बोस के जाते उसकी बुराई करनी शुरू कर देते हैं तो उस पर आप विश्वास करके खुद को धोखा दे रहे हैं क्योंकि वो उस इंसान की फितरत है. जब आप न होंगे तो आपकी बुराई किसी और इंसान के सामने करेगा. एक छोटी सी कहानी मेरी जिन्दगी से कहीं न कहीं जुड़ी हुई है, जो मैं इस बार आपसे सांझी करना चाहूंगा, कहते हैं जब तक आदमी किसी वस्तु को चखता नहीं तब तक उसको स्वाद का पता नहीं चलता. एक बार की बात है कि दो लड़कियां और दो लड़के आपस में बातें कर रहे थे, उसके बीच प्यार और दोस्ती का टोपिक था, लड़के कहते हैं कि प्यार और दोस्ती दिखावे की होती है जबकि लड़कियां इस बात पर अड़िंग थी कि प्यार और दोस्ती दोनों ही जिन्दगी में अहम स्थान रखतें हैं. इसमें दोनों की बात सही थी क्योंकि लड़के अपनी फितरत बता रहे थे और लड़कियां अपनी. लड़कियों को प्यार और दोस्ती

कफन के जेब नहीं होती...

यहां हर इंसान को पता है कि जब वो दुनिया से जाता है तो उसके हाथ खाली होते हैं, इतना ही नहीं कभी कभी तो उसके परिजन उसके हाथों में मरते समय रह गई अंगूठियों को भी उतार लेते हैं. इस असलियत से हर शख्स अवगत है, परंतु फिर भी उसके भीतर से लोगों के साथ छल कपट करके कमाई करने की आदत नहीं जाती. दुनिया में सिकंदर, रावण धनवान पल में राख हो गए और उनके साथ उनकी कमाई का एक हिस्सा भी नहीं गया, सिकंदर विशालतम साम्राज्य का मालिक था परंतु अंत में तो उसको दो गज ज़मीन ही नसीब हुई. मगर इंसान के भीतर दौलत कमाने की लालसा कभी कम नहीं होती, बेशक उसको पता है कि जिस सफेद कपड़े से उसका अंतिम यात्रा के वक्त शरीर ढका जाएगा, उसके परिजन जेब तक नहीं लगवाते. उदाहरण के तौर पर आज आपको एक नौजवान को नौकरी देने की एवज में एक करोड़ रुपए की रिश्वत मिल गई है और उसके कुछ दिन बाद ही आपकी मौत हो जाती है. क्या आपके परिजन आपके साथ वो पैसे जला देंगे ?, क्या वो आपका संस्कार चंदन की लकड़ी से करेंगे ? शायद उत्तर नहीं में होगा. अब भी आपके परिजन आपका अंतिम संस्कार आम लोगों की तरह ही करेंगे, शायद आपकी मौत पर वो नौजवान आंसू न बहाए, जिस से आप