संदेश

देश में बदलाव के लिए कुछ तरीके

चित्र
देश के पढ़ लिख रहे युवायों को सरकारी कार्यालय में पार्ट टाइम जॉब्स देनी चाहिए। अच्छे काम वालों को पढ़ाई खत्म होने पर पक्का किया जाए, अगर उनकी इच्छा हो तो। देश में युवायों को एक ही क्षेत्र में एक साथ दाखिले लेने पर प्रतिबंध हो। उनको अलग अलग कार्य क्षेत्र चुनने के लिए करियर गाइंड्स प्रदान की जाए। गांवों के आस पास ग्रामीण उद्योगों की स्थापना की जाए। कृषि के साथ साथ किसान या उनके युवा बच्चे इनमें अपनी इच्छा अनुसार अंशकालिक रूप में काम करें। देश में स्वदेशी चीजों के चलन पर जोर देने के लिए, सरकार को स्वयं प्रचार का जिम्मा उठाना चाहिए। देश के अंदर सरकारी कामों के लिए कोल सेंटर बनाने चाहिए, ताकि हर सरकारी काम की जानकारी तुरंत मिल सके, हर सरकारी काम ओनलाइन होना चाहिए, अगर मोबाइल फोन, बैंकिंग जैसी पेचीदा चीजों की जानकारी पल में मिलती है तो सरकारी​ विभागों के कामों की क्यूं नहीं हो सकती। सरकारी कामों के लिए विंडो सिस्टम जरूरी है। विंडो सिस्टम पर फाइलों की पूरी जांच पड़ताल हो, अधिकारी केवल खानापूर्ति के लिए साइन करें। एजेंटों को यहां से दूर रखा जाए, जिस अधिकारी का संपर्क एजेंट से पाया जा

राजनीतिक पार्टियां यूं क्यूं नहीं करती

चित्र
हर राजनीति देश के विकास का नारा ठोक रही है। सब कहते हैं, हमारे बिना देश का विकास नहीं हो सकता, सच में मैं भी यही मानता हूं, आपके बिना देश का विकास नहीं हो सकता, लेकिन एकल चलने से भी तो देश का विकास नहीं हो सकता, जो देश के विकास के लिए एक पथ पर नहीं, चल सकते, वो देश को विकास की बातें तो न कहें। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश को एकता का नारा देते हैं, लेकिन खड़े एकल हैं, जहां जाते हैं, वहां की सरकार की खाटिया खड़ी करते हैं। कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि दो इंच कील की जगह चार इंच हथोड़े की चोट से ठोक देते हैं। कांग्रेस समेत देश की अन्य पार्टियां भी कुछ यूं ही करती हैं, वो देश के विकास का मोडल रखने को तैयार नहीं। टीवी चैनलों ने तो केजरीवाल सरकार को गिराने के लिए निविदा भर रखी है, जो गिराने में सशक्त होगा, उसको निवि​दा दी जाएगी। लेकिन क्यूं नहीं देश की राजनीतिक पार्टियां एक सार्वजनिक मंच पर आ जाएं। अपने अपने विकास मोडल रखें, जैसे स्कूल के दिनों में किसी प्रतियोगिता में बच्चे रखते थे, जिसका अच्छा होगा, जनता फैसला कर लेगी। इससे दो फायदे होंगे, एक तो टेलीविजन पर रोज शाम को बकबक बंद ह

एक बच्ची की मौत, अख़बारों की ​सुर्खियां

चित्र
बठिंडा शहर के समाचार पत्रों में एक बच्ची की मौत की ख़बर प्रकाशित हुयी, जिसका इलजाम पुलिस पर लगाया जा रहा है, क्यूंकि नवजात बच्ची की बेरोजगार महिला शिक्षकों के संघर्ष के दौरान मौत हुई है। पुलिस ने धरने पर बैठी महिलायों से रात को रजाईयां छीन ली थी, ठंड का मौसम है। बच्ची को ठंड लगी, अस्पताल में दम तोड़ दिया। मौत दुनिया का एक अमिट सत्य है, मौत का कारण कुछ भी हो सकता है ठंड लगना, पुलिस की मार या खाना समय पर न मिलना आदि। अगर अरबों लोग हैं तो मौत के अरबों रूप हैं। किसी भी रूप में आकर लेकर जा सकती है। लेकिन सवाल तो यह है कि हमारी मानवता इतनी नीचे गिर चुकी है कि अब हम नवजातों को लेकर सड़कों पर अपने हक मांगने निकलेंगे। पुलिस सरकार का हुकम बजाती है, यह वो सरकार है, जिसको हम अपनी वोटों से चुनते हैं। चुनावों के वक्त सरकार पैसे देकर वोटें खरीदती है और हम अपने पांच साल उनको बदले में देते हैं। गिला करने का हक नहीं, अगर सड़कों पर उतारकर हम अपने हकों की लड़ाई लड़ सकते हैं तो कुछ नौजवान आप में से देश की सत्ता संभाल सकते हैं। अपने भीतर के इंसान को जगाओ। मासूम शायद आपके भीतर का इंसान जगाने के लिए सोई हो

जाति आधारित सुविधाएं बंद होनी चाहिए

अगर आने वाले समय में भारत को एक महान शक्ति के रूप में देखना चाहते हैं। अगर चाहते हैं कि देश एक डोर में पिरोया जा सके तो आपको सालों से चली आ रही कुछ चीजों में बदलाव करने होंगे। हम हर स्तर पर बांटे हुए हैं। जब मैं एक राज्य से दूसरे राज्य में जाता हूं तो मेरी बोली से लोग कहते हैं, तू पंजाबी है, तू मराठी है या गुजराती है। मगर जब कोई व्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पहुंचता है तो कोई पूछता है तो आप अचानक कहते हैं इंडियन। जगह बदलने से आपका अस्तित्व बदल गया। राज्य स्तरीय सोच को छोड़ो। आगे बढ़ो। धर्म व जाति की राजनीति से उपर आओ। स्वयं आवाज उठाओ। मेरे माता पिता ने शिक्षक की फीस रियायत देने वाली पेशकश को ठुकरा दिया था, यह कहते हुए कि इसकी जगह किसी दूसरे बच्चे की कर दो। हम अपने बच्चों को पढ़ा सकते हैं। उन दिनों सरकारी स्कूलों की फीस कुछ नहीं हुआ करती थी, लेकिन रियायत लेना मेरे पिता को पसंद न था। गांव में पीले कार्ड बनते थे। हमारे पास भी मौका था बनवाने का। पिता ने इंकार कर दिया। वो अनपढ़ थे, लेकिन समझदार थे। रियायत केवल उनको दी जाएं, तो सच में उनके हकदार हैं, न केवल जान पहचाने वालों, सिफारिश वाल

Gujarat Govt.- गरीबी यूपी बिहार के कारण, तो अमीरी के दावेदार आप कैसे ?

गुजरात के वित्त मंत्री नितिन पटेल ने कहा है कि प्रदेश में यूपी, बिहार से आए लोगों के कारण गरीबी बढ़ी है क्यूंकि गुजरात सरकार बाहरी लोगों को भी बीपीएल कार्ड मुहैया करवाती है। अपनी इज्जत बचाने के लिए हर बहाना जरूरी है। अगर गरीबी के लिए यूपी बिहार के लोग जिम्मेदार हैं, तो अमीरी एवं विकास के लिए गुजरात सरकार को स्वयं का ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए। गुजरात के अंदर निवेश बाहरी राज्यों से, विदेशों से हो रहा है। उनमें यूपी, बिहार, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र न जाने कितने राज्यों के अमीर आदमी शामिल हैं, जो गुजरात के विकास के लिए जिम्मेदार हैं। नैनो को लेकर तो गुजरात कुछ नहीं कहता। मारूति का कारखाना लगने वाला है, उसको लेकर गुजरात सरकार कुछ नहीं कहती, लेकिन इज्जत बचाने के लिए यूपी बिहार के लोग आंख में खटक रहे हैं, जो केवल आपको सूरत में मिलेंगे, जो कम वेतन में स्थानीय लोगों से अधिक कार्य करते हैं। अगर वे कम पैसों में ​अधिक श्रम करते हैं तो गुजरात के व्यापारियों को अधिक उत्पादन एवं पैसा मिल रहा है। गुजरात सरकार बिहारियों को बिठाकर नहीं खिला रही, वे मेहनत करते हैं, खाते हैं। जिनको गुज