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भारतीय राजनीति 99 के फेर में

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पिछले एक साल में भाजपा के प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने हर स्तर पर विज्ञापनों से बहुत खूबसूरत जाल बुना। असर ऐसा हुआ कि देश में एक संप्रदाय का जन्म होता नजर आया। मोदी के अनुयायी उग्र रूप में नजर आए। मानो विज्ञापनों से जंग जीत ली। सत्ता उनके हाथ में है। जो शांत समुद्र थे, एकदम तूफानी रूख धारण करने लगे। अब उनको दूसरे समाज सेवी भी अपराधी नजर आने लगे, खासकर दिल्ली में, क्यूंकि ​दिल्ली फतेह होते होते चुंगल से छूट गई। ख़बर है कि कांग्रेस प्रधान मंत्री पद की दौड़ में राहुल गांधी को उतारने का मन बना चुकी है। कांग्रेस राहुल गांधी को ऐसे तो उतार नहीं सकती, क्यूंकि सवाल साख़ का है, मौका ऐसा है कि बचा भी नहीं जा सका। अब राहुल को उतारने के लिए कांग्रेस पीआर एजें​सियों पर खूब पैसा लुटाने जा रही है। यकीनन अगला चुनाव मूंछ का सवाल है। इस बार चुनाव को युद्ध से कम आंकना मूर्खता होगी। युद्ध का जन्म अहं से होता है। यहां पर अहं टकरा रहा है। वरना देश में चुनाव साधारण तरीके से हो सकता था। भाजपा किसी भी कीमत पर सत्ता चाहती है। अगर उसकी चाहत सत्ता न होती तो शायद वह अपने पुराने बर

न हिंदुस्तान बुरा, न पाकिस्तान बुरा

स्नानघर में सुबह जब नहाने के लिए गया, तो दिमाग में कुछ अजीब सी हलचल हुई। जब महसूस किया तो कुछ शब्द उभरकर जुबां पर आ गए। जिनको तुरंत मैंने आपके सामने परोसकर रख दिया। स्वादृष्टि होंगे या नहीं मैं नहीं जानता, लेकिन इन को प्रकट करने मन को सुकून सा मिल गया। न हिंदुस्तान बुरा, न पाकिस्तान बुरा यहां धर्म के ठेकेदार, औ' वहां तालिबान बुरा न यहां का, न वहां का इंसान बुरा बाबा नानक यहां भी बसता वहां भी बसता नुसरत हो या रफी यहां भी बजता है वहां भी बजता है इंसान वहां का भी और यहां का भी शांति चाहता है नहीं मांगती किसी की आंखें तबाही-ए-मंजर नहीं उठाना चाहता कोई हाथ में खूनी खंजर कोई नहीं चाहता कि हो दिल-ए-जमीं बंजर मिट्टी वहां भी वो ही है मिट्टी यहां भी वो ही है बांटी गई नहीं जमीं, बस मां का जिगर लहू लहान हुआ है तब जाकर एक हिंदुस्तान और दूसरा पाकिस्तान हुआ है तबाही यहां हो चाहे वहां हो दर्द तो बस एक मां को होता है जो बट गई टुकड़ों में