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बेटियों की परवाह करते हैं या चुनने का अधिकार छीनते हैं ?

बेटियों की परवाह करते हैं या चुनने का अधिकार छीनते हैं? यह प्रश्‍न मुझे कई दिनों से तंग परेशान कर रहा है। सोचा आज अपनी बात रखते हुए क्‍यूं न दुनिया से पूछ लिया जाए। कुछ दिन पहले मेरी शॉप पर एक महिला ग्राहक अपने परिवार समेत आई, वो भी मेरी तरह कई दिनों से तंग परेशान थी, एक सवाल को लेकर, मैं हिन्‍दी और मेरी पत्‍नी अच्‍छी गुजराती कैसे बोलती है? आखिर उसने भी मेरी तरह हिम्‍मत करके सवाल पूछ ही लिया, उत्तर तो शायद वह पहले से ही जानती थी लव मैरिज। मगर पूछकर उस ने अपने संदेह को सत्‍य में तब्‍दील कर दिया। फिर वह झट से बोली, मैंने भी अपने बेटे को कह रखा है, जो लड़की पसंद हो मुझे बता देना, मैं शादी करवा दूंगी। चलो अच्‍छी बात है कि दुनिया अब ऐसा सोचने लगी है, लव मैरिज को अहमियत देने लगी है। मगर कुछ देर बाद वो महिला बोली, अगर तुम्‍हारे ध्‍यान में हमारी बिरादरी का लड़का हो तो बताना, मेरी बेटी के लिए। मुझे यह बात खटक गई, मैंने पूछा, बेटा जो भी लाए चलेगा, लेकिन लड़की के लिए आप ही ढूंढेंगे ? क्‍या बात है! उसने कहा, ऐसा नहीं, बच्‍ची की जिन्‍दगी का सवाल है, फिर मैंने पूछा क्‍या जो आपका लड़का लड़क