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चैनलों की रंगदार होली

इस बरस की होली चैनलों की होली है। बेपानी की होते हुए भी रंगदार होली है। चैनलों ने अपने अपने नल खोल दिए हैं जिसमें से रंग बिरंगे सनसनीखेज समाचार लगातार बह रहे हैं। तरह तरह के समाचारों के रंग जिसमें बलात्कांर, खुदकुशी, रिश्वरत, घोटाले, मंदी, गंदी राजनीति तो हैं ही, वे भी है जिनका जिक्र करना ठीक नहीं है। वरना होली रंगीन से संगीन हो जाएगी। ऐसी भी कोई रोक नहीं है कि चैनलों के नल सिर्फ दो बजे दोपहर तक ही खुले रहेंगे जिस तरह बसें और मेट्रो दो बजे तक बंद रहती हैं। क्यों इनकी छुट्टी की जाती है जबकि ब्लू लाईन तो रोज ही दिन दहाड़े अपने आने के दिन से ही होली खेल रही हैं। जिस दिन उन्हें होली खेलनी चाहिए उस दिन उनकी छुट्टी कर दी जाती जबकि उस दिन वे होली खेलें तो पब्लिक को पता ही नहीं चलेगा कि रंग है या खून है। वैसे ब्लू लाईन कहने भर की होती है उनमें न लाल खून होता है न नीला ही। पीला हरा तो मिल ही नहीं सकता क्योंकि वे कीड़े मकोड़े नहीं होती हैं क्योंकि कुछ कीड़े मकोड़ों का खून नीला व कुछ का हरे रंग का भी होता है। बसों और मेट्रो के लिए तो तो पब्लिक कीड़े मकोड़े से अधिक है भी नहीं। इसलिए अगर कहीं क