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सिर्फ नाम बदला है

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वो बारह साल की है। पढ़ने में अव्‍वल। पिता बेहद गरीब। मगर पिता को उम्‍मीद है कि उसकी बेटी पढ़ लिखकर कुछ बनेगी। अचानक एक दिन बारह साल की मासूम के पेट में दर्द उठता है। वो अपने मां बाप से सच नहीं बोल पाती, अंदर ही अंदर घुटन महसूस करने लगती है। आखिर अपने पेट की बात, अपनी सहेली को बताती है, और वो मासूम सहेली घर जाकर अपने माता पिता को। अगली सवेर उसके माता पिता कुछ अन्‍य पड़ोसियों को लेकर स्‍कूल पहुंचते हैं और स्‍कूल में मीटिंग बुलाई जाती है। बिना कुछ सोच समझे एक तरफा फैसला सुनाते बारह साल की मानसी को स्‍कूल से बाहर कर दिया जाता है। टूट चुका पिता अपनी बच्‍ची को लेकर डॉक्‍टर के यहां पहुंचता है, तो पता चलता है कि बच्‍ची मां नहीं बनने वाली, उसके पेट में नॉर्मल दर्द है। मगर डॉक्‍टर एक और बात कहता है, जो चौंका देती है, कि मानसी का कौमार्य भंग हो चुका है। गरीब पिता अपनी बच्‍ची को किसी दूसरे स्‍कूल में दाखिल करवाने के लिए लेकर जाता है, तो रास्‍ते में पता चलता है कि उसकी बेटी को पेट का दर्द देने वाला कोई और नहीं, उसी की जान पहचान का एक कार चालक है, जो खुद दो बच्‍चों का बाप है। अगली सुबह मानसी