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किरदार ही नहीं एके हंगल का जीवन भी था आदर्श

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जब पूरा परिवार अंग्रेजों के लिए नौकरी कर रहा था, तब एके हंगल साहेब ने अपने अंदर आजादी की ज्‍योति को प्रज्‍वलित किया। एके हंगल साहेब ने अंग्रेजों के रहमो कर्म पर पलने की बजाय, अपनी मेहनत की कमाई के चंद रुपयों पर जीवन बसर करना ज्‍यादा बेहतर समझा। उन्‍होंने कपड़ा सिलाई का काम सीखकर टेलरिंग का काम शुरू किया एवं साथ साथ रंगमंच से दिल लगा लिया। आजादी की लड़ाई में योगदान के लिए उनको पाकिस्‍तान की जेलों में करीबन दो साल तक रहना पड़ा। वो रोजी रोटी के लिए मुम्‍बई आए। कहते हैं कि जब एके हंगल साहेब मुम्‍बई आए तो उनके पास केवल जीवन गुजारने के लिए बीस रुपए थे। यहां पर वो टेलरिंग के साथ साथ रंगमंच से जुड़े रहे। एक दिन उनके अभिनय ने स्व. बासु भट्टाचार्य का दिल मोह लिया, जिन्‍होंने उनको अपनी फिल्म तीसरी कसम में काम करने के लिए ऑफर दिया। इस फिल्‍म से ए के हंगल सफर ने रुपहले पर्दे की तरफ रुख किया, मगर वो फिल्‍मों में नहीं आना चाहते थे, लेकिन एक के बाद एक ऑफरों ने उनको वापिस लौटने नहीं दिया। उन्‍होंने अपने फिल्‍मी कैरियर में करीबन 255 फिल्‍मों में अभिनय किया। इसमें से करीबन 16 फिल्‍में उन्‍होंने बॉलीवु