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क्रिकेट पर नस्लीय टिप्पणियों का काला साया

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क्रिकेट खेल मैदान अब धीरे धीरे नस्लीय टिप्पणियों का मैदान बनता जा रहा है. आज खेल मैदान में खिलाड़ी खेल भावना नहीं बल्कि प्रतिशोध की भावना से कदम रखता है. वो अपने मकसद में सफल होने पर सम्मान महसूस करने की बजाय अपने विरोधी के आगे सीना तानकर खड़ने में अधिक विश्वास रखता है. यही बात है कि अब क्रिकेट का मैदान नस्लवादी टिप्पणियों के बदलों तले घुट घुटकर मर रहा है. इसके पीछे केवल खिलाड़ी ही दोषी नहीं बल्कि टीम प्रबंधन और बाहर बैठे दर्शक भी जिम्मेदार हैं. अगर टीम प्रबंधन खिलाड़ियों के मैदान में उतरने से पहले बोले कि खेल को खेल भावना से खेलना और नियमों का उल्लंघन करने पर कड़ी सजा होगी तो शायद ही कोई खिलाड़ी ऐसा करें. लेकिन आज रणनीति कुछ और ही है मेरे दोस्तों. आज की रणनीति 'ईंट का जवाब पत्थर' से देने की है. जिसके चलते आए दिन कोई न कोई खिलाड़ी नस्लवादी टिप्पणी का शिकार होता है. यह समस्या केवल भारतीय और आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की नहीं बल्कि इससे पहले दक्षिण अफ्रीका के खिलाड़ी हर्शल गिब्स ने भी पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर टीका टिप्पणी की थी. खेल की बिगड़ती तस्वीर को सुधारने के लिए खेल प्रबंधन को ध्यान