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70 साल की लूट, गलती से ही सही, कहीं सच तो नहीं बोल रहे नरेंद्र मोदी

आप कैशलेस को पूरे देश पर थोपना चाहते हैं। आप कैशलेस का आह्वान करते तो समझ में आता। प्रेम में प्रस्‍ताव रखे जाते हैं, और जबरी संबंधों में सबकुछ थोपा जाता है। आप कह रहे हैं कि तकनीक का जमाना है, सब कुछ ऑनलाइन हो सकता है, अब लेन देन भी ऑनलाइन करो। मैं सहमत हूँ, लेकिन एक फोकट का सवाल है , जब तकनीक का जमाना है, जब हम सब कुछ ऑनलाइन कर सकते हैं तो आपकी रैली ऑफलाइन क्यों? मेरे झोले में फोकट की सलाह भी है - क्यों ना आप भी रैली भाषण का वीडियो रिकॉर्ड करके यूट्यूब पर डालें, और महसूस करें कि पूरा इंडिया इसको सुन रहा है, देख रहा है, और गर्व महसूस कर रहा है। इससे कथित 4 करोड़ प्रति रैली खर्च बच सकता है, आपकी जान को भी कोई खतरा नहीं होगा, आपकी रक्षा के लिए रैली के बाहर खड़ी होने वाली पुलिस अपने रोजमर्रा के काम निबटा पाएगी। कड़वी दवा तो नहीं कड़वा सच - जो आप जानते हैं। आपके पीआर जानते हैं कि मोबाइल अभी घर घर की जरूरत है लेकिन इंटरनेट नहीं। आपको पता है कि जो भीड़ रैली में होती है, वो वंचित है उन सुविधाओं से जिसने आपके समर्थक लैस हैं। उस भीड़ में किसी के पास डेटा पैक के पैसे नहीं, तो किसी के पास नेट

कहो..... भीड़ नहीं हम.....

आस पास के लोगों से..... सतर्क हो जाइए..... क्‍योंकि पता नहीं कौन सा नकाबपोश..... काले धन का मालिक हो..... मखौटों के इस दौर में सब फर्जी हैं..... हां..... मैं..... आप..... हम सब फर्जी हैं। चौंकिए मत..... सच है.....। कबूतर की तरह आंखें भींचने से क्‍या होगा?.....। याद कीजिए..... 35 लाख का घर..... और 22 लाख के दस्‍तावेज..... आखिर किसने बनवाये। बेरोजगार बेटे बेटी को 3 से 5 लाख रिश्‍वत देकर..... सरकारी नौकरी किसी ने दिलवाई.....। आखिर कौन पूछता है..... दामाद ऊपर से कितना कमा लेता है.....। ऐसे ही तो..... जमा होता है काला धन..... काले धन वाले भी..... तो शामिल हैं ईमानदारों में..... और नोटबंदी का करते हैं जमकर समर्थन..... कहते हैं..... मिट जाएगा काला धन..... और खत्‍म होगी रिश्‍वतखोरी..... हां..... स्‍लीपर सैल की तरह..... हम में भी..... कहीं न कहीं..... छुपे बैठे हैं चोर..... दम है तो पकड़िये..... रिश्‍वत लेते..... जो पकड़ा गया..... रिश्‍वत देकर छूट जाएगा..... सड़क पर ट्रैफिक वाला रसीद काटता है..... तो आप बड़े आदमी को फोन लगा लेते हैं..... ईमानदार कर्मचारी की बैंड खूब बजती है..... और तमाश द

और तो कुछ पता नहीं, लेकिन लोकतंत्र ख़तरे में है

जहां लोकतंत्र में सत्‍ता और विपक्ष रेल की पटरी सा होता है। तो वहीं, लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था एक रेल सी होती है। यदि दोनों पटरियों में असंतुलन आ जाए तो पटना इंदौर एक्‍सप्रेस सा हादसा होते देर नहीं लगती, सैंकड़ों जिंदगियां पल भर में खत्‍म हो जाती हैं। और पीछे छोड़ जाती हैं अफसोस कि काश! संकेतों पर गौर कर लिया होता। वक्‍त रहते कदम उठा लिये गए होते। ये संकेत नहीं तो क्‍या हैं कि देश सिर्फ एक व्‍यक्‍ति पर निर्भर होता जा रहा है। देश में विपक्ष की कोई अहमियत नहीं रह गई। सत्‍ता पक्ष के खिलाफ बोलना अब देशद्रोह माना जाने लगा है। किसी सरकारी नीति की आलोचना करने का साहस करने पर आपको बुरा भला कहा जाता है। दिलचस्थ तथ्‍य तो देखो कि भारत बंद की घोषणा होने के साथ ही सत्‍ता पक्ष की तरफ से कुछ दुकानों पर एक सरीखे नारे लिखे बोर्ड या बैनर टांग दिये जाते हैं। हर आदमी के गले में कड़वी बात को उतारने के लिए सेना और देशभक्‍ति का शहद की तरह इस्‍तेमाल किया जा रहा है, ताकि कड़वाहट महसूस न हो। पहले तो ऐसा नहीं होता था, सरकार के खिलाफ भारत बंद भी होते थे। जो लोग आज सत्‍ता में हैं, वो ही लोग लठ लेकर निकला करते थे

'अकीरा' फिल्‍म नहीं, कहानी है एक 'लड़की' के साहस की

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अकीरा फिल्‍म नहीं, एक कहानी है, एक दस्‍तां है, एक लड़की के साहस की, जोश की, हिम्‍मत की, संघर्ष की और बलिदान की, जो हमको सिल्‍वर स्‍क्रीन पर सुनाई जाती है। अकीरा सी लड़की पैदा करना हर मां बाप के बस की बात नहीं, ऐसी लड़की को ईश्‍वर किसी किसी को वरदान स्‍वरूप देता है। अकीरा खूबसूरत है। अकीरा भी आम लड़कियों जैसी है। मगर, एक बात उसको अलग बनाती है, उसके भीतर की हिम्‍मत। फिल्‍म की शुरूआत में ही एक सूफी कहावत का जिक्र है, जिसमें फिल्‍म का पूरा निचोड़ है। ईश्‍वर आपके उस गुण की परीक्षा लेता है, जो आप में मौजूद है। 'अकीरा' की परीक्षा तो दस साल की उम्र से शुरू हो जाती है, जब अकीरा बस स्‍टैंड पर बदतमीजियां कर रहे लड़कों को निपटा देती है। अकीरा की शक्‍ति उसके पिता है, जैसे नीरजा में नीरजा की शक्‍ति उसके पिता थे। अकीरा 3 साल बाल सुधार गृह में गुजारने के बाद खूबसूरत जीवन जीने लगती है। तभी किस्‍मत अकीरा के जीवन में मुम्‍बई जाना लिख देती है। कहते हैं ना जब पाप हद से ज्‍यादा बढ़ जाए तो पापियों का विनाश करने को एक परम-आत्‍मा जन्‍म लेती है। कुछ ऐसा ही अकीरा के बारे में कह सकते हैं, जब अक

हलके गुलाबी कुर्ते वाले प्रधानमंत्री और जियो डिजीटल लाइफ

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'मन की बात' कहने वाले हमारे माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी आज सुबह सुबह आपका तस्‍वीर अखबारों के पहले पृष्‍ठ पर देखा। टचवुड नजर न लग जाए। हलके गुलाबी कुर्ते पर ब्‍लू रंग की मोदी जैकेट जंच रही है, खिला हुआ चेहरा तो मशाल्‍लाह है। मगर, एक बात खटक गई। बड़ा रोका मैंने खुद को कि चल छोड़ो जाने दो। मगर, मन की बात कहां दबी रहती है जुबां पर आ ही जाती है। मुझे समझ नहीं आया कि जियो डिजीटल लाइफ क्‍या है, जिसका आप चेहरा बने हैं इस विज्ञापन में। क्‍या जियो डिजीटल आइडिया एयरटेल वोडाफोन टाटा डोकोमो श्रेणी में नहीं आती ? यदि आती है तो फिर क्‍यों आप ने बीएसएनएल का प्रचार करने की बजाय जियो डिजीटल पर फोटो लगाने की अनुमति दी। हमारा बीएसएनएल मर रहा है। दम तोड़ रहा है। ऐसे हालात में आपका फोटो जियो डिजीटल लाइफ के साथ प्रकाशित होता है। मन दुखी होने लगता है। आप से कोई सवाल नहीं करेगा, क्‍योंकि आप देश के प्रधान मंत्री हैं। टेलीकॉम कंपनियों में कोई अजय देवगन जैसा बिंदास आदमी नहीं है, वरना किसी सहयोगी से आपको फोन लगवाकर पूछ लेता कि साहेब हमने आपका का क्‍या बिगाड़ा है, जो हमको पछाड़ने के लिए