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और तो कुछ पता नहीं, लेकिन लोकतंत्र ख़तरे में है

जहां लोकतंत्र में सत्‍ता और विपक्ष रेल की पटरी सा होता है। तो वहीं, लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था एक रेल सी होती है। यदि दोनों पटरियों में असंतुलन आ जाए तो पटना इंदौर एक्‍सप्रेस सा हादसा होते देर नहीं लगती, सैंकड़ों जिंदगियां पल भर में खत्‍म हो जाती हैं। और पीछे छोड़ जाती हैं अफसोस कि काश! संकेतों पर गौर कर लिया होता। वक्‍त रहते कदम उठा लिये गए होते। ये संकेत नहीं तो क्‍या हैं कि देश सिर्फ एक व्‍यक्‍ति पर निर्भर होता जा रहा है। देश में विपक्ष की कोई अहमियत नहीं रह गई। सत्‍ता पक्ष के खिलाफ बोलना अब देशद्रोह माना जाने लगा है। किसी सरकारी नीति की आलोचना करने का साहस करने पर आपको बुरा भला कहा जाता है। दिलचस्थ तथ्‍य तो देखो कि भारत बंद की घोषणा होने के साथ ही सत्‍ता पक्ष की तरफ से कुछ दुकानों पर एक सरीखे नारे लिखे बोर्ड या बैनर टांग दिये जाते हैं। हर आदमी के गले में कड़वी बात को उतारने के लिए सेना और देशभक्‍ति का शहद की तरह इस्‍तेमाल किया जा रहा है, ताकि कड़वाहट महसूस न हो। पहले तो ऐसा नहीं होता था, सरकार के खिलाफ भारत बंद भी होते थे। जो लोग आज सत्‍ता में हैं, वो ही लोग लठ लेकर निकला करते थे

'अकीरा' फिल्‍म नहीं, कहानी है एक 'लड़की' के साहस की

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अकीरा फिल्‍म नहीं, एक कहानी है, एक दस्‍तां है, एक लड़की के साहस की, जोश की, हिम्‍मत की, संघर्ष की और बलिदान की, जो हमको सिल्‍वर स्‍क्रीन पर सुनाई जाती है। अकीरा सी लड़की पैदा करना हर मां बाप के बस की बात नहीं, ऐसी लड़की को ईश्‍वर किसी किसी को वरदान स्‍वरूप देता है। अकीरा खूबसूरत है। अकीरा भी आम लड़कियों जैसी है। मगर, एक बात उसको अलग बनाती है, उसके भीतर की हिम्‍मत। फिल्‍म की शुरूआत में ही एक सूफी कहावत का जिक्र है, जिसमें फिल्‍म का पूरा निचोड़ है। ईश्‍वर आपके उस गुण की परीक्षा लेता है, जो आप में मौजूद है। 'अकीरा' की परीक्षा तो दस साल की उम्र से शुरू हो जाती है, जब अकीरा बस स्‍टैंड पर बदतमीजियां कर रहे लड़कों को निपटा देती है। अकीरा की शक्‍ति उसके पिता है, जैसे नीरजा में नीरजा की शक्‍ति उसके पिता थे। अकीरा 3 साल बाल सुधार गृह में गुजारने के बाद खूबसूरत जीवन जीने लगती है। तभी किस्‍मत अकीरा के जीवन में मुम्‍बई जाना लिख देती है। कहते हैं ना जब पाप हद से ज्‍यादा बढ़ जाए तो पापियों का विनाश करने को एक परम-आत्‍मा जन्‍म लेती है। कुछ ऐसा ही अकीरा के बारे में कह सकते हैं, जब अक

हलके गुलाबी कुर्ते वाले प्रधानमंत्री और जियो डिजीटल लाइफ

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'मन की बात' कहने वाले हमारे माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी आज सुबह सुबह आपका तस्‍वीर अखबारों के पहले पृष्‍ठ पर देखा। टचवुड नजर न लग जाए। हलके गुलाबी कुर्ते पर ब्‍लू रंग की मोदी जैकेट जंच रही है, खिला हुआ चेहरा तो मशाल्‍लाह है। मगर, एक बात खटक गई। बड़ा रोका मैंने खुद को कि चल छोड़ो जाने दो। मगर, मन की बात कहां दबी रहती है जुबां पर आ ही जाती है। मुझे समझ नहीं आया कि जियो डिजीटल लाइफ क्‍या है, जिसका आप चेहरा बने हैं इस विज्ञापन में। क्‍या जियो डिजीटल आइडिया एयरटेल वोडाफोन टाटा डोकोमो श्रेणी में नहीं आती ? यदि आती है तो फिर क्‍यों आप ने बीएसएनएल का प्रचार करने की बजाय जियो डिजीटल पर फोटो लगाने की अनुमति दी। हमारा बीएसएनएल मर रहा है। दम तोड़ रहा है। ऐसे हालात में आपका फोटो जियो डिजीटल लाइफ के साथ प्रकाशित होता है। मन दुखी होने लगता है। आप से कोई सवाल नहीं करेगा, क्‍योंकि आप देश के प्रधान मंत्री हैं। टेलीकॉम कंपनियों में कोई अजय देवगन जैसा बिंदास आदमी नहीं है, वरना किसी सहयोगी से आपको फोन लगवाकर पूछ लेता कि साहेब हमने आपका का क्‍या बिगाड़ा है, जो हमको पछाड़ने के लिए

राम की रामायण होती है, किंतु रावण की रामायण नहीं हो सकती

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आज सुबह दिल्‍ली के एक समाचार पत्र को देखते हुए एक विज्ञापन पर नजर गई। विज्ञापन एक नाटक के संदर्भ में था, जिसमें पुनीत इस्‍सर रावण के रूप में अभिनय कर रहे हैं। इस नाटक को निर्देशित और कलमबद्ध अतुल सत्‍य कौशिक ने किया है। इस नाटक का नाम रावण की रामायण। हालांकि, राम की रामायण होती है, किंतु रावण की रामायण नहीं हो सकती। पूछो क्‍यों? जब सूर्य उत्‍तर दिशा की तरफ सरकने लगता है तो उस समय स्‍थिति को उत्‍तरायण कहा जाता है क्‍योंकि उस समय सूरज का उत्‍तर दिशा की तरफ बढ़ता है। डॉ. विद्यानिवास मिश्र का एक संदर्भ लेते हुए बात करूं तो अयन के दो अर्थ हैं - 'घर' भी है और 'चलना' भी है। बिलकुल सही और स्‍टीक हैं। रामायण देखा जाए तो पूर्ण रूप से राम का घर है और यात्रा भी है, चलना भी यात्रा से जोड़ा जा सकता है। राम कथा को रामायण इसलिए कहा जाता है क्‍योंकि उसमें पूर्ण राम समाए हैं। रामायण का अर्थ कहानी या दास्‍तां नहीं होता। हालांकि, लोग आप बोल चाल की भाषा में कहते जरूर हैं कि तेरी रामायण बंद कर। इसलिए रावण की रावणायण तो सकती है। मगर, रावण की रामायण होना मुश्‍किल है। इस शब्‍द को

...लो बूटी और बेस हमारे गीतों में शामिल हो गए

आज कल ट्विटर पर बीट पे बूटी चैलेंज चल रहा है। बहुत सारे लोग बीट पे बूटी चैलेंज एक दूसरे को आगे बढ़ा रहे हैं। बड़ी अजीब बात है कि आजकल "बेस" और "बूटी" आम सी बात होगी, जैसे मेरी तो फट गई। यह हमारी भाषा तो नहीं, ये तो रोड़ किनारे खड़े, टी स्‍टॉल पर खड़े, टपोरी लोगों की भाषा है। मगर, हमको आज कल 'बीट पे बूटी' और 'बेबी को बेस पसंद है' ही अच्‍छा लगने लगा है या यो यो हनी सिंह '* में दम है तो बंद कर लो'। बड़ा अजीब लगता है, कोई कहता है कि मेरी तो फटती है, चाहे लड़का हो चाहे लड़की। जब उनसे फटती का अर्थ पूछो तो जुबां पर लगाम लग जाती है। क्‍या यह नहीं कह सकते ? मुझे डर लगता है। मैं डर गया। मैं डर गई। मैं घबरा गई। मेरे तो हाथों के तोते उड़ गए। तेरे तो पसीने छूट रहे हैं। बूटी का हिन्‍दीकरण पिछवाड़ा हालांकि उर्दूकरण थोड़ा सा सलीके वाला है, तरशीफ। इस गीत में जैकलीन फर्नांडीज ने जमकर बूटी थिरकाई है। जैकलीन फर्नांडीज श्रीलंकाई हैं। आप जैकलीन फर्नांडीज के जितने गाने देखेंगे, आपको बूटी के सिवाय शायद ही कोई अन्‍य मूवमेंट नजर आए। ए फलाइंग जट्ट का गाना भी शायद