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News Nation - नमो लहर — यूपी में बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता हाशिए पर

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लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की कथित लहर पर सवार पार्टी के प्रत्याशियों को अब उत्तर प्रदेश के कभी दिग्गज रहे वरिष्ठ नेताओं की जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया और मैनेजमेंट के सहारे ही उन्हें अपनी नैया पार होती दिख रही है। आलम यह है कि यूपी भाजपा के कई बड़े नेता हाशिए पर डाल दिए गए हैं या फिर वे खुद नाराज होकर नेपथ्य में चले गए हैं। कभी भाजपा के दिग्गजों में गिने जाने वाले उत्तर प्रदेश के ये नेता क्या कर रहे हैं, खुद भाजपा कार्यकताओं को ही नहीं पता है। भारतीय जनता पार्टी में कभी यूपी के नेताओं की तूती बोलती थी। एक लंबी श्रृंखला थी मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, विनय कटियार, केसरी नाथ त्रिपाठी, ओम प्रकाश सिंह, सुरजीत सिंह डंग, सत्यदेव सिंह, हृदय नारायण दीक्षित, सूर्य प्रताप शाही समेत कई ऐसे नाम हैं जिनका सहयोग लेने से भाजपाई कतरा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि भाजपा नेतृत्व ने इन्हें हाशिए पर डाल दिया तो अब प्रत्याशी भी इनमें से ज्यादातर लोगों के कार्यक्रमों की मांग नहीं कर रहे हैं। बनारस से कानपुर जाने के लिए मजबूर किए गए दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी की स्थिति ख

Short Story - बाबूजी की बात, और नत्‍थासिंह

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नत्‍था सिंह बहुत भोला - भाला इंसान था। जब खेतों के किनारे लगे पेड़ों पर फूल आने वाले होते तो वो उनके पेड़ों के आस पास भंवरों की तरह मंडराने लगता, फूल आते ही उदास होकर घर लौट जाता। अब भी पेड़ों पर फूल आने वाले थे, और नत्‍था सिंह भी। नत्‍था सिंह आया - बाबू जी ने उससे पूछा, जब फूल आने वाले होते हैं तो तुम यहां खुशी खुशी आते हो, लेकिन फूल आने के बाद तुम उदास होकर यहां से निकल जाते हो। नत्‍था सिंह ने कहा, मैं गुलाबी फूल लेने के लिए यहां आता हूं, लेकिन आपके पेड़ हर मौसम में पीले रंग के फूल देने लगते हैं। तो बाबूजी कहते हैं कि अरे पगले, हमने बबूल के पेड़ उगाएं हैं, तो बबूल के फूल ही आएंगे, गुलाब के कैसे आ सकते हैं। गुलाब के फूलों के लिए गुलाब का पौधा लगाना पड़ता है। नत्‍थे को बात समझ आई या नहीं, लेकिन मुझे एक बात समझ जरूर आ रही थी। बाबूजी कह रहे थे कि अगर बबूल का पेड़ लगाएंगे तो बबूल के फूल आएंगे, और अगर गुलाब का पौधा है तो गुलाब के फूल। शायद इसका संबंध कहीं न कहीं हमारे विचारों की खेती से भी है। हम अपने भीतर जो पेड़ पौधे लगाते हैं, शायद शब्‍दों में - अपने व्‍यवहार में - उसी पौधे के फूल

Fiction - टिकट टू पाकिस्‍तान

सुबह सुबह का समय था, सूर्य निकलने में देर थी, चिड़ियां की चीं चीं सुनाई दे रही थी। देव अफीमची खुशी के मारे नाच रहा था। द्वारकी हैरान थी, आखिर आज देव अफीमची बिना चीखे चिल्‍लाए। बिना हाय बू किए। बिना काली नागिन यानि अफीम खाए कैसे उठ गया। भीतर की महिला ने द्वाकी को बेचैन कर दिया, आखिर ऐसा क्‍या हुआ कि देव अफीमची, सुबह सुबह वो भी सू्र्य निकलने से पहले बिस्‍तर से खड़ा हो गया। द्वाक ी मन ही मन में सोचने लगी, जब तक पता नहीं चलेगा, तब तक किसी काम में मन नहीं लगेगा। आज ऐसा लग रहा था, जैसे देव अफीमची को अल्‍लादीन का चिराग मिल गया, और उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। आज देव अफीमची द्वाकी को अपने पुराने दिनों की याद दिला रहा था, जब देव अफीमची युवा था, जब दोनों की नयी नयी शादी हुई थी। देव अफीमची, दूसरे नौजवानों की तरह सुबह सुबह इस तरह बड़े शौक से खेतों की तरफ निकलता था। आज देव अफीमची को, अपनी जवानी की दलहीज लांघे हुए साठ साल हो चले हैं। इस उम्र में जवानी वाला जोश तो भगवान को भी चिंता में डाल दे, यहां तो फिर भी द्वाकी के रूप में एक महिला थी। बिना पूछे कैसे रह सकती थी, लेकिन सीधे सीेधे तो

Standpoint - 'हिंदु परिषद' के आगे 'विश्व' क्यूं ?

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आप सोच रहे होंगे। यह अटपटा सवाल क्यूं ? बिल्कुल मुझे भी 'विश्व' अटपटा लगता है, जब मैं इस संस्थान के प्रमुख के बयानों को सुनता हूं। देखता हूं या कहीं पढ़ता हूं। बड़ी अजीब बात है कि आप भारत को एक कट्टर देश बनाने की सोच रखते हैं, लेकिन शब्द विश्व जैसा इस्तेमाल करते हैं। अगर आप भारत को सीमित रखना चाहते हैं, तो सच में 'विश्व' जैसा शब्द एक देश की ऐसी संस्था को शोभा नहीं देता। यह शब्द वैसा ही है, जैसा दक्षिण भारत की एक राजनीतिक पार्टी indian christian secular party में 'सेकुल्यर'शब्द है। अगर सेकुल्यर हो तो क्रिचियन शब्द क्यूं ? वैसे ही अगर विश्व हिन्दु परिषद भारत को हिन्दु राष्ट्र बनाना चाहती है तो राष्ट्र शब्द स्टीक हो सकता है, लेकिन विश्व शब्द नहीं क्यूंकि राष्ट्र को विश्व की संज्ञा नहीं दी जा सकती। 31 मार्च 2013 को ' हिंदु संगम ' समारोह का आयोजन हुआ। इस समारोह में विश्व हिंदु परिषद के प्रमुख प्रवीण तोगड़िया ने कहा था, ''2015 के बाद गुजरात को हिन्दु राज्य घोषित कर दिया जाएगा, क्यूंकि 18000 गांवों में विहिप की मौजूदगी हो जाएगी।'' ए

Standpoint - इंटरव्यू या बेआबरू होने का नया तरीका

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आज सुबह सुबह कंप्यूटर चलाया। राज ठाकरे के साथ अर्णब गोस्वामी का इंटरव्यू देखने के लिए, लेकिन बदकिस्मती देखिए, मैं आईबीएन ख़बर की वेबसाइट पर पहुंच गया, जहां सीएनएन आईबीएन के चीफ इन एडिटर राजदीप सरदेसाई राज ठाकरे का इंटरव्यू ले रहे थे। इंटरव्यू देखते वक्त ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि राज ठाकरे राजदीप सरदेसाई की क्लास लगा रहे हों। एक चैनल के चीफ इन एडिटर को बता रहे थे, इंटरव्यू और इंट्रोगेशन में कितना अंतर होता है। बोलने को भौंकना जैसे शब्दों से संबोधित किया गया। इंटरव्यू में किस मुद्रा में बैठा जाता है। इंटरव्यू कर रहे हैं तो पीछे हटकर बैठें। आपको अर्णब गोस्वामी नहीं बनना है। इंटरव्यू में आवाज उंच्ची नहीं होती। इंटरव्यू चल रहा है, राजदीप सरदेसाई स्वयं को रोके हुए हैं। राज ठाकरे अनाप शनाप बोले जा रहे हैं। सवाल तो यह है कि इस तरह का बदतमीजी पर इंटरव्यू करना चाहिए ? अगर इस इंटरव्यू को दिखाया गया तो क्यूं ? इसके पीछे की मजबूरी क्या ? क्या राज ठाकरे का इंटरव्यू इतना महत्वपूर्ण है कि चीफ इन एडिटर जैसे पद पर बैठा व्यक्ति अपनी इज्जत को दांव पर लगाए। कहीं इज्जत की ध​ज्जियां उड़ाने का हमने