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सन्‍नी लिओन घबराना मत

गालियों की पाठशाला बन चुका बिग बॉस का घर एक बार फिर चर्चाओं में आ गया, पॉर्न स्‍टार सन्‍नी लिओन के कारण, जिसको अभी अभी बिग बॉस के घर में एंट्री मिली है, वैसे भी बिग बॉस को अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता। सन्‍नी लिओन को शायद कल तक कोई नहीं जानता था, मैं तो बिल्‍कुल नहीं, हो सकता है बिग बॉस के घर में आने के बाद भी, मगर हिन्‍दुस्‍तानी मीडिया ने इस समाचार को इतनी गम्‍भीरता से लिया कि आज हर कोई सन्‍नी लिओन को जानने लगा है, इस तरह के समाचार को लेकर मीडिया की दिलचस्‍पी वैसे ही मीडिया की गरिमा को हानि पहुंचाती है, जैसे कि बिग बॉस के घर में हो रही गतिविधियां रियालटी शो की गरिमा को। बिग बॉस एक बेहतरीन कांस्‍पेट हो सकता है, मगर रातोंरात टीआरपी बटोरने के चक्‍कर में इस कांस्‍पेट पर काम कर रहे लोगों ने अपनी घटिया सोच का प्रदर्शन करते हुए इसका मलियामेट कर दिया। कुछ दिन पहले बिग बॉस का घर गालियों की पाठशाला बना हुआ था, लेकिन आज कल बिग बॉस का घर पॉर्न स्‍टार के कारण चर्चाओं में है। आखिर बिग बॉस का घर, आम हिन्‍दुस्‍तानियों के घरों को क्‍यों बिगाड़ने पर तूला हुआ है, यह बात पूरी

रियली शॉरी इम्‍ितयाज अली

रियली शॉरी इम्‍ितयाज अली, एक तो शॉरी तो इसलिए कि यह पत्र मैं तुम्‍हें सार्वजनिक तौर पर लिख रहा हूं, दूसरा शॉरी इसलिए कि मुझे तुम्‍हारा रॉकस्‍टार एक्‍सप्रीमेंट बिल्‍कुल अच्‍छा नहीं लगा, केवल हंसाने वाले एक दो दृश्‍यों के अलावा। यह आपकी तीसरी फिल्‍म थी, जो मैंने कल रात घर के समीप स्‍थित सिनेमा हाल में देखी, यह भी पहले की दो फिल्‍मों की तरह पंजाब हरियाणा बेस्‍टेड थी। अगर मैं गलत न हूं तो इम्‍ितयाज जी आप ने हीर रांझा की स्‍टोरी को ध्‍यान में रखकर रॉकस्‍टार की रचना करनी चाहिए, मगर पूरी तरह चूक गए, क्‍योंकि आपका रांझा इश्‍क मुहब्‍बत की समझ से परे था, कहूं तो केवल मनचला। यही कारण है कि हीर रांझा की तरह आपकी कहानी दिल को नहीं छूती, शायद चलती चलती कहानी में अचानक फलेश बैक का चलना, जो आपने लव आजकल में बहुत बेहतरीन ढंग से इस्‍तेमाल किया था। एक और गलती, जो लंडन ड्रीम्‍स में विपुल शाह ने दोहराई थी, एक हिन्‍दी गाने वाला विदेशी लोगों को कैसे रिझा सकता है, समझ से परे है, अगर आप पराग भेजने की जगह जॉर्डन को मुम्‍बई भेज देते तो क्‍या नुकसान हो जाता। जॉर्डन को हाईलाइट करने वाले व्‍यक्‍ित को आप स्‍टोरी टेल

एक अच्‍छे जज की भांति फैसला सुनाएं

सच में, मैं कभी कोर्ट नहीं गया, लेकिन टीवी सीरियलों व फिल्‍मों के मार्फत कोर्ट कारवाई बहुत देखी है, शायद आपने भी। कोर्ट के कटहरे में एक आरोपी व्‍यक्‍ित खड़ा होता है, लेकिन जज की निगाहों के सामने दो व्‍यक्‍ित दलीलें कर रहे होते हैं, इन दलीलों के आधार पर जज को फैसला सुनाना होता है। एक व्‍यक्‍ित, कटहरे में खड़े व्‍यक्‍ित को सजा दिलवाने की पूर्ण कोशिश करता है, और दूसरा उसको बचाने के लिए पूर्ण प्रयास, लेकिन अंतिम फैसला जज को सुनाना होता है। ऐसे ही दृश्‍य मानव अपनी जिन्‍दगी में हर बार महसूस करता है, जब वह कुछ न करने का साहस कर रहा होता है, उसके दो दिमाग (कॉन्‍शीयस माइंड एवं अनकॉन्‍शीयल माइंड) आपस में बहस करते हैं, एक रोकने की कोशिश करता है तो दूसरा दिमाग आगे बढ़ाने के लिए पूर्ण प्रयास करता है। इन दोनों के बीच जज की भूमिका व्‍यक्‍ित को स्‍वयं ही निभानी होती है। कौन सा गलत है और कौन सा सही। जब भी आप कुछ नया करेंगे तो आपको अंदर से आवाज आएगी, कहीं गलत हो गया तो, तभी दूसरी तरफ से आवाज आती है, क्‍या बात करते हो, ऐसा हो ही नहीं सकता, मानव दुविधा में आ जाता है, फैसला सुनाने वाले जज की तरह। ऐसी स्‍िथ

स्‍वयं बने कृष्‍णार्जुन, चाणक्‍य चंद्रगुप्‍त

आप ने भी मेरी तरह कई घरों व मंदिरों के परिसरों में महाभारत की याद दिलाने वाली अद्भुत कलाकृति देखी होगी, जिसमें एक रथ पर महान निशानेबाज अर्जुन घुटनों के बल बैठे एवं हाथ जोड़े भगवान श्रीकृष्‍ण की तरफ देख रहे हैं, एवं भगवान श्री कृष्‍ण उनको उपदेश दे रहे मालूम पड़ते हैं, वैसे भी महाभारत में जब अर्जुन अपनों को सामने हारते हुए देख भावुक हो गए थे, तो श्रीकृष्‍ण ने उनको उपदेश देते हुए समझाया था कि यह रणभूमि है, और तुम एक योद्धा, अगर तुमने सामने वाले को खत्‍म नहीं किया तो वह तुम्‍हें खत्‍म कर देंगे। श्री कृष्‍ण भगवान के उपदेश के बाद अर्जुन ने कौरवों का अंत करने के लिए अपना धनुष्य उठाया, और इतिहास गवाह है पांडवों की जीत का। मुझे मालूम नहीं कि आपने कभी उस तस्‍वीर को मेरी नजर से देखा है कि नहीं, लेकिन मेरी नजर में, वह दृश्‍य कॉन्‍शीयस माइंड एंड अन कॉन्‍शीयस माइंड की जीती जागती उदाहरण है। कॉन्‍शीयस माइंड सिर्फ वह करता है, जो उसको फिलहाल सामने दिखाई पड़ता है, जबकि अनकॉन्‍शीयस माइंड दूरदर्शी होता है, एवं मानव का मार्गदर्शन करता है। अनकॉन्‍शीयस जिस चीज को ग्रहण कर लेता है, उसको वह निरंतर करता रहता है,

कल करे सो आज क्‍यों नहीं

ज्‍यादातर स्‍कूली बच्‍चों को छुटिटयों के बाद स्‍कूल जाना सबसे ज्‍यादा डरावना लगता है, खासकर उन बच्‍चों के लिए जिन्‍होंने हॉलिडे होमवर्क कल करेंगे करते करते पूरी छुटिटयां मौज मस्‍ती में गुजारी हों। कुछ ऐसे ही बच्‍चों की तरह व्‍यक्‍ित भी कल करेंगे कल करेंगे कहते कहते अपनी जिन्‍दगी गंवा देता है, अंतिम सांस अफसोस के साथ छोड़ता है, काश! कुछ वक्‍त और मिल जाता। आज सुबह जब मैं अपने घर के प्रांगण में टहल रहा था तो उक्‍त विचार अचानक दिमाग में आ टपका। इस विचार से पहले मेरे मास्‍टर साहिब द्वारा सुनाई एक कहानी याद आई, जिसको मैंने मानव जीवन और स्‍कूली बच्‍चों से जोड़कर देखा, वो बिल्‍कुल स्‍टीक बैठती है, जब उन्‍होंने सुनाई तब वो सिर्फ कहानी थी मेरे लिए, लेकिन आज वह मार्गदार्शिका है। सर्दियों का मौसम था, मास्‍टर साहिब कुर्सी पर, और हम सब जमीन पर बिछे टाटों पर बैठे हुए थे। मास्‍टर साहिब ने सूर्य की ओर देखते हुए कहा, आज स्‍कूली किताबों से परे की बात करते हैं। हम को लगा, चलो आज का दिन तो मस्‍त गुजरने वाला है क्‍योंकि किताबी बात नहीं होने वाली। मास्‍टर साहिब ने बोलना शुरू किया, खेतों में एक बिना छत वाला