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पति से त्रसद महिलाएं न जाएं सात खून माफ

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सात खून माफ फ‍िल्‍म से पूर्व मैंने फ‍िल्‍म निर्देशक विशाल भारद्वाज की शायद अब तक कोई फ‍िल्‍म नहीं देखी, लेकिन फ‍िल्‍म समीक्षकों की समीक्षाएं अक्‍सर पढ़ी हैं, जो विशाल भारद्वाज की पीठ थपथपाती हुई ही मिली हैं। इस वजह से सात खून माफ देखने की उत्‍सुकता बनी, लेकिन मुझे इसमें कुछ खास बात नजर नहीं आई, कोई शक नहीं कि मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक फ‍िल्‍म ने बॉक्‍स आफि‍स पर अच्‍छी कमाई की, फि‍ल्‍म कमाई करती भी क्‍यों न, आख‍िर सेक्‍स भरपूर फ‍िल्‍म जो ठहरी, ऐसी फ‍िल्‍म कोई घर लाकर कॉमन रूम में बैठकर देखने की बजाय सिनेमा घर जाकर देखना पसंद करेगा। मेरी दृष्टि से तो फ‍िल्‍म पूरी तरह निराश करती है, मैंने समाचार पत्रों में रस्‍किन बांड को पढ़ा है, और उनका फैन भी बन गया, मुझे नहीं लगता उनकी कहानी इतनी बोर करती होगी। कुछ फ‍िल्‍म समीक्षक लिख रहे हैं कि फ‍िल्‍म बेहतरीन है, लेकिन कौन से पक्ष से बेहतरीन है, अभिनय के पक्ष से, अगर वो हां कहते हैं तो मैं कहता हूं एक कलाकार का नाम बताए, जिसको अभिनय करने का मौका मिला।  अगर निर्देशन पक्ष की बात की जाए, जिसके कारण फ‍िल्‍म की सफलता का श्रेय विशाल भारद्वाज को जाता है, ल

जनाक्रोश से भी बेहतर हैं विकल्प, देश बदलने के

कुलवंत हैप्पी / गुड ईवनिंग/ समाचार पत्र कॉलम हिन्दुस्तान में बदलाव के समर्थकों की निगाहें इन दिनों अरब जगत में चल रहे विद्रोह प्रदर्शनों पर टिकी हुई हैं एवं कुछ लोग सोच रहे हैं कि हिन्दुस्तान में भी इस तरह के हालात बन सकते हैं और बदलाव हो सकता, लेकिन इस दौरान सोचने वाली बात तो यह है कि हिन्दुस्तान में तो पिछले छह दशकों से लोकतंत्र की बहाली हो चुकी है, यहां कोई तानाशाह गद्दी पर सालों से बिराजमान नहीं। वो बात जुदा है कि यहां लोकतांत्रिक सरकार होने के बावजूद भी देश में भूखमरी, बेरोजगारी व भ्रष्टाचार अपनी सीमाएं लांघता चला जा रहा है। इसके लिए जितनी हिन्दुस्तान की सरकार जिम्मेदार है, उससे कई गुणा ज्‍यादा तो आम जनता जिम्मेदार है, जो चुनावों में अपने मत अधिकार का इस्तेमाल करते वक्‍त पिछले दशकों की समीक्षा करना भूल जाती है। कुछ पैसों व अपने हित के कार्य सिद्ध करने के बदले वोट देती है। देश में जब जब चुनावों का वत नजदीक आता है नेता घर घर में पहुंचते हैं, लेकिन इन नेताओं की अगुवाई कौन करता है, हमीं तो करते हैं, या कहें हमीं में से कुछ लोग करते हैं, या जो समस्याएं हमें दरपेश आ रही ह

मनप्रीत की जनसभाएं व आमजन

कुलवंत हैप्पी /  गुड ईवनिंग/ समाचार पत्र कॉलम 'ए खाकनशीनों उठ बैठो, वो वत करीब आ पहुंचा है, जब तख्त उछाले जाएंगे, तब ताज गिराए जाएंगे' विश्व प्रसिद्ध शायर फैज अहमद फैज की कलम से निकली यह पंतियां, गत दिनों स्थानीय टीचर्ज होम के हाल में तब सुनाई दी, जब जागो पंजाब यात्रा के दौरान राद्गय में इंकलाब लाने की बात कर रहे राज्‍य के पूर्व वित्‍त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल एक जन रैली को संबोधन कर रहे थे। फैज की कलम से निकली इस पंति को कहते वत मनप्रीत को जद्दोजहद करना पड़ रहा था अपने थक व पक चुके गले से, जो पिछले कई महीनों से राद्गय की जनता को इंकलाब लाने के लिए लामबंद करने हेतु आवाज बुलंद कर रहा है। गले के दर्द को भूल मनप्रीत इस रचना की एक अन्य पंति 'अब टूट गिरेंगी जंजीरें, अब जैदांनों की खैर नहीं, जो दरिया झूम के उठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे' को पढ़ते हुए पूरे इंकलाबी रंग में विलीन होने नजर आए। उनके संबोधन में उसकी अंर्तात्मा से निकलने वाली आवाज का अहसास मौजूद था, यही अहसास लोगों को इंकलाब लाने के लिए लामबंद करने में अहम रोल अदा करता है। इसमें भी कोई दो राय नहीं होनी चाहिए, जब

एक विडियो सांग की बदौलत मिली 'द लॉयन ऑफ पंजाब' : दलजीत

देश विदेश में 25 फरवरी को होगी रिलीज द लॉयन ऑफ पंजाब कुलवंत हैप्पी, बठिंडा। जल्द रिलीज होने वाली मेरी पहली पंजाबी फिल्म द लॉयन ऑफ पंजाब 'पहलां बोली द नी' गीत के विडियो की बदौलत मिली। यह खुलासा स्थानीय हरचंद सिनेमा में अपनी फिल्म के प्रोमशन के लिए पहुंचे पंजाबी संगीत प्रेमियों के दिलों की धडक़न गायक दलजीत ने किया। मुक्‍तसर मार्किञ्ट कमेटी के चेयरमैन हनी बराड़ फत्‍तणवाला के विशेष निमंत्रण पर बठिंडा पहुंचे पंजाबी गायक व अभिनेता दलजीत ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि अगर परमात्मा की दुआ से उनकी पहली फिल्म चल गई तो वह पंजाबी फिल्म प्रेमियों की झोली में और भी बेहतरीन फिल्में डालने की कोशिश को जारी रखेंगे। फिल्म में उनके किरदार के बारे में पूछे जाने पर दलजीत कहते हैं कि फिल्म में उनका किरदार अवतार सिंह नामक युवा का है, जिसका संबंध रामपुरा फूल के समीप स्थित एक गांव से है। फिल्म के विषय पर उन्होंने रहस्य कायम रखते हुए कहा कि फिल्म का विषय पंजाब की एक अहम समस्या है, जो आए दिन अखबारों में सुर्खियां बटोरती है। एक अन्य सवाल के जवाब में दलजीत कहते हैं कि वह इस फिल्म से पूर्व फिल्म निर्देश

उंगली उठाने से पहले जरा सोचे

बुधवार को स्थानीय फायर बिग्रेड चौंक पर समाज सेवी संस्थाओं की ओर से हिन्दुस्तानी भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता रैली का आयोजन किया गया, जिसमें मैं भी शामिल हुआ। हाथों में जागरूकता फैलाने वाले बैनर पकड़े हम सब सडक़ के एक किनारे खड़े थे, और उन बैनरों पर जो लिखा था, वह आते जाते राहगीर तिरछी नजरों से पढ़कर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे। इतने में मेरे पास खड़े एक व्यक्‍ति की निगाह सामने दीवार पर लटक रहे धार्मिक संस्था के एक फलेक्‍स पर पड़ी, जिस पर लिखा हुआ था, हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा, उन्होंने मेरा ध्यान उस तरफ खींचते हुए कहा कि वह शब्‍द बहुत कम हैं, लेकिन बहुत कुछ कहते हैं। अपने लेखन से सागर में गागर तो कई लेखकों ने भर दिया, लेकिन हमारा जेहन उनको याद कितनी देर रखता है, अहम बात तो यह है। हमारे हाथों में पकड़े हुए बैनरों पर लिखे नारों की अंतिम पंक्‍ति भी कुछ यूं ही बयान करती है, न रिश्वत लें, न रिश्वत दें की कसम उठाएं, जो बैनर तैयार करते समय मेरे दिमाग से अचानक निकली थी। किसी पर उंगली उठानी, सडक़ों पर निकल कर प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करनी हमारी आदत में शुमार सा हो गया था, ल