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शिर्डी यात्रा के कुछ पल

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बस अपने निर्धारित समय पर सुबह साढ़े तीन बजे शिर्डी पहुंच गई, मैं पक्की नींद में जा चुका था, शिर्डी मंदिर से कुछ दूर पहले मेरे साथ की सीट पर बैठे एक अन्य मुसाफिर ने मुझे हाथ से हिलाते हुए कहा "शिर्डी आ गया"। शिर्डी का नाम सुनते ही आँखों से नींद ऐसे उड़ गई, जैसे सुबह होते ही परिंदे अपने घोंसलों से। मैंने आँखें पूरी तरह खोलते हुए चलती बस में से शीशे के बाहर देखा, श्री साईं बाबा के विशाल मंदिर का मुख्य दरवाजा। देखने बहुत शानदार, ऐसे दरवाजे मैंने फिल्मों में देखे थे। बस मंदिर से आगे बस स्टेंड की तरफ बढ़ रही थी, मैंने उस अनजान मुसाफिर से पूछा "यहाँ से बस स्टेंड कितनी दूरी पर है"। उसने कहा "बस स्टॉप भी आ गया"। मंदिर से बस स्टेंड कोई बहुत दूर न था, थोड़ी सी दूरी पर जाकर बस मुड़ गई और बस स्टॉप के भीतर चली गई। बस रुकते ही बाहर कुछ लोगों की भीड़ एकत्र हो गई, जैसे ही सवारियाँ बस से बाहर आई, वो उनके इर्दगिर्द घूमने लग गई, जैसे मीठे के ऊपर मक्खियाँ भिनभिनाती है। वो आटो वाले नहीं थे, वो तो प्रसाद की दुकानों वाले थे, जो आपको रहने के लिए किसी निजी संस्था के कमरे तक लेकर जाएंगे,

कुछ मिले तो साँस और मिले...

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ब मुश्‍किल टके हाथ आते हैं कुछ हज़ार और थोड़े सैकड़े क्‍या काफ़ी है ज़िंदगी ख़रीदने को जो नपती है कौड़ियों में. कौड़ियाँ भी इतनी नसीब नहीं, कि मुट्ठी भर ज़रूरतें मोल ले सकूँ कुछ उम्‍मीदें थीं ख्‍़वाब के मानिंद, वो ख्‍़वाब तो बस सपने हुए. कुछ मिले तो साँस और मिले ख्‍़वाबों को हासिल हो तफ़सील. अब मुश्‍किलों का सबब बन रही है गुज़र क्‍या ख़बर आगे कटेगी या नहीं. सिर्फ रात आँखों में कट रही है अभी, सवेरा होने में कई पैसों की देर है. (तफ़सील-विस्तार) अहम बात : युवा सोच युवा खयालात की श्रेणी अतिथि कोना में प्रकाशित इस रचना के मूल लेखक श्री "कनिष्क चौहान" जी हैं।

कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें

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अपना ये संवाद न टूटे हाथ से हाथ न छूटे ये सिलसिले यूँ ही चलते रहें कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें इसे भी पढ़ें : प्रेम की परिभाषा न हो तेरी बात खत्म न हो ये रात खत्म ये सिलसिले यूँ ही चलते रहें कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें इसे भी पढ़ें : खंडर का दर्द मिलने दे आँखों को आँखों से दे गर्म हवा मुझको साँसों से ये सिलसिले यूँ ही चलते रहें कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें इसे भी पढ़ें : एक देश के अन्दर, कई देश हैं! हाथ खेलना चाहें तेरे बालों से लाली होंठ माँगते तेरे गालों से ये सिलसिले यूँ ही चलते रहें कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें

दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति के नाम 'खुला पत्र'

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समय था 26 जनवरी 2010,  दो देशों के राष्ट्रपति दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रिक देश की राजधानी नई दिल्ली में एक साथ बैठे हुए थे। एक भारत की महिला राष्ट्रपति और दूसरा दक्षिण कोरिया का पुरुष राष्ट्रपति। इन दोनों में समानता थी कि दोनों राष्ट्रपति हैं, दोनों एक ही मंच पर हैं, और तो और दोनों की चिंता का मूल कारण भी एक ही चीज से जुड़ा हुआ है, लेकिन उस चिंता से निटपने के लिए यत्न बहुत अलग अलग हैं, सच में। इन्हें भी पढ़ें : पिता के साथ बिताए आखिरी तीन दिन..पिता की याद दक्षिण कोरिया की समस्या भी आबादी से जुड़ी है, और भारत की भी। भारत बढ़ती हुई आबादी को लेकर चिंतित है तो दक्षिण कोरिया अपनी सिमटती आबादी को लेकर। यहाँ भारत को डर है कि आबादी के मामले में वो अपने पड़ोसी देश चीन से आगे न निकल जाए, वहीं दक्षिण कोरिया को डर है कि वो अपने पड़ोसी देश जापान से भी आबादी के मामले में पीछे न रह जाए। अपनी समस्या से निपटने के लिए जहाँ भारत में पैसे दे देकर पुरुष नसबंदी करवाई जा रही है, वहीं दक्षिण कोरिया में दफ्तर जल्दी बंद कर घर जाने के ऑर्डर जारी किए गए हैं, और तो और, ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले दम्पतियों को पुरस्क

हैप्पी अभिनंदन में 'हरकीरत हीर'

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हैप्पी अभिनंदन में आज आप जिस ब्लॉगर शख्सियत से मिलने जा रहे हैं, वो शख्सियत अचानक ब्लॉगवुड के आसमान से उस चाँद की तरह छुप गई, जो बादलों की आढ़ में आते ही हमारी आँखों से ओझल हो जाता है, और फिर वो ही चाँद बादलों को चीरते हुए रात को फिर से रोशनमयी बना देता है। उम्मीद करता हूँ, यहाँ पर भी कुछ ऐसा ही हो..जो चाँद आज हम से दूर जाकर कहीं छुप गया है, वो भी फिर से लौट आए। पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि ये शख्सियत भी इस दिन के इंतजार में थी कि कोई आए और उसके मन को टोटले, और फिर वो दिल खोलकर अपने मन की सभी बातें कहकर कहीं छुप जाए। ऐसा ही कुछ हुआ है इस बार, खुद ही जाने आगे की बात। कुलवंत हैप्पी : कौन सा वो एक दर्द है...जिसने आपको हरकीरत 'हक़ीर' से कवयित्री बना दिया? हरकीरत : हरकीरत हक़ीर से नहीं .....हरकीरत कलसी से कहिये .....!! इक बात कहूँ .....? आपने प्रश्न बेशक छोटा पूछा हो पर जवाब देने जाती हूँ तो सारी ज़िन्दगी सामने आ खड़ी होती है कुछ मेरी हैसियत और औकात दर्शाते शब्द यूँ आस पास रहे कि अपने आप को हकीर से ज्यादा समझ ही नहीं सकी ....' हकीर' का मतलब तो आप जानते ही होंगे ....ब