संदेश

न हिंदुस्तान बुरा, न पाकिस्तान बुरा

स्नानघर में सुबह जब नहाने के लिए गया, तो दिमाग में कुछ अजीब सी हलचल हुई। जब महसूस किया तो कुछ शब्द उभरकर जुबां पर आ गए। जिनको तुरंत मैंने आपके सामने परोसकर रख दिया। स्वादृष्टि होंगे या नहीं मैं नहीं जानता, लेकिन इन को प्रकट करने मन को सुकून सा मिल गया। न हिंदुस्तान बुरा, न पाकिस्तान बुरा यहां धर्म के ठेकेदार, औ' वहां तालिबान बुरा न यहां का, न वहां का इंसान बुरा बाबा नानक यहां भी बसता वहां भी बसता नुसरत हो या रफी यहां भी बजता है वहां भी बजता है इंसान वहां का भी और यहां का भी शांति चाहता है नहीं मांगती किसी की आंखें तबाही-ए-मंजर नहीं उठाना चाहता कोई हाथ में खूनी खंजर कोई नहीं चाहता कि हो दिल-ए-जमीं बंजर मिट्टी वहां भी वो ही है मिट्टी यहां भी वो ही है बांटी गई नहीं जमीं, बस मां का जिगर लहू लहान हुआ है तब जाकर एक हिंदुस्तान और दूसरा पाकिस्तान हुआ है तबाही यहां हो चाहे वहां हो दर्द तो बस एक मां को होता है जो बट गई टुकड़ों में

दर्द-ए-आवाज मुकेश को मेरा नमन, और आपका

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जी हां, पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है, उंगलियां कुछ और लिख रही हैं और दिमाग में कुछ और चल रहा है। मुझे नहीं पता मेरे ऐसा पिछले दिनों से ऐसा क्यों हो रहा है, वो बात मैं आपके साथ बांटना चाहता हूं, इस पोस्ट के मार्फत। पिछले दिनों अचानक मेरे दिमाग में एक नाम आया, वो था मुकेश का। ये मुकेश कोई और नहीं, हमारे होंठों पर आने वाले गीतों को अमर कर देने वाली आवाज के मालिक मुकेश का ही था। मेरा हिंदी संगीत से कोई ज्यादा रिश्ता नहीं रहा, लेकिन दूरदर्शन की रंगोली और चित्रहार ने मुझे कहीं न कहीं हिन्दी संगीत के साथ जोड़े रखा। पहले पहल तो ऐसा ही लगा करता था कि अमिताभ खुद गाते हैं, और अक्षय कुमार खुद गाते हैं, जैसे जैसे समझ आई, पता चला कि गीतों में जान फूंकने वाला तो कोई और ही होता है, ये तो केवल आवाज पर उन पर गाने का अभिनय करते हैं। पता नहीं, मुझे पिछले कुछ दिनों से क्यों ऐसा लग रहा था कि ‘दर्द-ए-संगीत’ की रूह मुकेश को शायद मीडिया की ओर से उतना प्यार नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए, विशेषकर खंडवा के लाल किशोर दा के मुकाबले तो कम ही मिलता है, ये तो सच है। किशोर दा का जन्मदिवस या पुण्यति

क्यों नहीं भाते कुंवारे इनको ?

कल अरुण शौरी की खबर पर अचानक एक खबर भारी पड़ गई थी, जी हां वो खबर थी शिल्पा शेट्टी के विवाह की खबर। कल मीडिया में शिल्पा के पिता के हवाले से कुछ खबरें आई, जिनमें कहा गया कि शिल्पा राज कुंदरा की होने वाली हैं, जो एक तलाकशुदा व्यक्ति है। शिल्पा शेट्टी राजकुंदरा से शादी कर ओकलाहामा स्टेट यूनिवर्सिटी की शोध को सच कर रही है या नहीं, “जिसमें कहा गया था कि कुंवरी लड़कियों की पहली पसंद शादीशुदा पुरुष होते हैं”, ये तो पता नहीं। हां, मगर वो बॉलीवुड की उस प्रथा को आगे बढ़ा रही हैं, जिस प्रथा को योगिता बाली, रिया पिल्ले, करिश्मा कपूर, मान्यता ने कड़ी दर आगे चलाया। संगीत की दुनिया में अमिट छाप छोड़ जाने वाले किशोर दा के साथ योगिता बाली ने शादी रचाई, लेकिन ये विवाह संबंध जल्द ही टूट गए और योगिता बाली मिथुन चक्रवर्ती की हो गई। किशोर कुमार की योगिता बाली के साथ तीसरी शादी थी। एक भारतीय टेनिस खिलाड़ी की पत्नी बन चुकी रिया पिल्ले ने संजय दत्त के साथ रचाई, जो अपनी पहली पत्नी को खोने के बाद तन्हा जीवन जी रहे थे, लेकिन यहां पर भी विवाह संबंध सफल न हुए और रिया ने संजय से अलग होकर एक टेनिस सितारे लिएंडर पेस से

गणेशोत्सव, और मेरा चिंतन

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रविवार से गणेशोत्सव शुरू होने वाला है, इस बात का अहसास मुझे उस वक्त हुआ। जब शुक्रवार को मैं शहर के बीच से गुजर रहा था। सड़क किनारे हजारों की तादाद में पड़ी गणेश की मूर्तियां इंदौरवासियों के धार्मिक होने की पुष्टि कर रही थी। दुकानों के बाहर सड़क पर रखी हजारों रंग बिरंगी गणेश की मूर्तियां आंखों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। एक बार तो मेरा भी रुकने का मन हुआ, लेकिन वक्त ने रुकने की इजाजत नहीं दी। बाजारों में भक्तों की पॉकेट हैसियत के अनुकूलन सजी हुई मूर्तियां बहुत प्यारी लग रही थी, लेकिन इनकी मूर्तियों की खूबसूरत चार दिन की चांदनी जैसी है, क्योंकि कुछ दिनों बाद इन मूर्तियों का जलप्रवाह कर दिया जाएगा। नदियों में जल नहीं है, लेकिन फिर भी लोग जलप्रवाह करने जाएंगे, जिसका नतीजा हम सबको को देखने को मिलता है, किसी नदी के किनारे पड़ी खंडित मूर्तियां के रूप में। जहां एक मूर्ति खंडित होने पर पता नहीं कितने इंसानों को खंडित कर दिया जाता है, और नगरों के नगर तबाह हो जाते हैं, मगर वहीं दूसरी तरफ इस तरह नदी किनारे हजारों मूर्ति खंडित होती हैं, उनका की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। क्या जलप्रवाह या विसर्जन

बदनाम हुए तो क्या हुआ

'बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ' ये पंक्ति बहुत बार सुनी होगी जिन्दगी में, लेकिन मैंने तो इसको कुछ समय से सत्य होते हुए भी देख लिया। इस बात को सत्य किसी और ने नहीं बल्कि हिंदुस्तानी मनोरंजक चैनलों ने कर दिखाया है। राखी सावंत से लेकर विश्व प्रसिद्धी हासिल शिल्पा शेट्टी तक आते आते कई ऐसे नाम मिल जाएंगे, जो इस बात की गवाही भरते हैं कि बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ। कल तक अनुराधा बाली को कोई नहीं जानता था, लेकिन जैसे ही वो फिजा के नाम से बदनाम हुई तो रियालिटी शो बनाने वालों की निगाह सबसे पहले उस पर पड़ी, बेशक रियालिटी शो बनाने वाले शो का फोर्मेट तक चुराते हैं। इमरान हाशमी के नाम एक खुला पत्र फिजा को इस जंगल से मुझे बचाओ में ब्रेक देकर सोनी टेलीविजन वालों ने उस कड़ी को आगे बढ़ाया, जिसको क्लर्स ने मोनिका बेदी, शिल्पा शेट्टी एवं महरूम जेड गुडी को ब्रेक देकर शुरू किया था। मोनिका अबू स्लेम के कारण बदनाम हुई, तो शिल्पा शेट्टी पहले जेड गुडी के कारण और फिर रिचर्ड गेयर के कारण बदनाम हुई, क्लर्स टीवी ने बदनाम महिलाओं को ही नहीं बल्कि राहुल महाजन एवं राजा चौधरी को भी जगह दी, जिन्होंने