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पूर्वजों को ऑनलाइन दें श्रद्धांजलि

इंदौर के हवाई अड्डे से करीबन तीन चार किलोमीटर दूर एक ऐसा स्थान है, जहां पूर्वजों की याद में पौधे लगाए जाते हैं. इस जगह का नाम है पितृ पर्वत, जहां पर हजारों पौधे लगे हुए हैं पूर्वजों की याद में, कुछ तो पेड़ बन गए और कुछ अभी अपने शुरूआती पड़ाव पर हैं, मुझे इस जगह जाकर बहुत अंदर मिलता है. इस का मुख्य कारण एक तो वहां का शुद्ध वातावरण और दूसरा शहर के शोर शराबे से दूर, तीसरा यहां पहुंचकर लोगों का अपने पूर्वजों के प्रति प्यार पेड़ पौधों के रूप में झलक था, जिन पर पंछी अपना बसेरा बनाते हैं और इस जगह आने वाले इन पेड़ों की छाया में बैठते हैं, जैसे परिवारजन घर के मुखिया की छांव तले जिन्दगी को बेचिंत बेफिक्र जीते हैं. इस स्थान की देखरेख नगरनिगम के कर्मचारी करते हैं, यहां पर शहर से आने वाले लोगों के लिए एक बढ़िया पार्क भी है और बैठे के लिए अच्छा प्रबंध है. हां, याद आया अब तो पूर्वजों की याद को हम सब इंटरनेट पर भी संभालकर रख सकते हैं, ऐसी ही एक वेबसाइट पिछले दिनों मेरे ध्यान में आई, जिसको भी इंदौर के रहवासी ने तैयार किया है। पुण्य-समरण के नाम से बनी इस वेबसाईट पर पूर्वजों की जीवनी का सारांश भी दे सकते हैं

....जब स्लमडॉग ने लपका ऑस्कर

आखिर भारतीय एक स्लमडॉग की पीठ पर सवार होकर ऑस्कर की शिखर पर पहुंच ही गए. चल ये तो खुशी की बात है कि हिन्दी जगत की कुछ हस्तियों की ऑस्कर पुरस्कार पाने की तमन्ना पूरी हुई, बेशक विदेश फिल्म निर्देशक के सहारे ही सही. सच बोलने को मन चाहता है कि जो काम हिन्दुस्तानी फिल्म निर्माता निर्देशक नहीं कर पाए वो काम डैनी बोएले के एक स्लमडॉग ने कर दिया. बेचारे एआर रहमान ने बॉलीवुड के कई फिल्मों को एक से बढ़कर एक संगीत दिया, लेकिन अफसोस की बात है कि करोड़ों भारतीयों के प्यार के सिवाय रहमान को कुछ नहीं मिला. हो सकता है कि ये करोड़ों प्रेमियों की दुआओं का असर हो, जो एक विदेशी निर्माता निर्देशक की फिल्म की बदौलत उनको ऑस्कर में सम्मान मिल गया. बेशक फिल्म विदेशी निर्देशक की उपज थी, लेकिन उसमें कलाकार तो भारतीय थे, उसकी पृष्ठभूमि तो मुम्बई की झुग्गियां झोपड़ियां थी, चलो कुछ भी हो, एक स्लमडॉग ने हिन्दुस्तान के कलाकारों को जगत के महान हस्तियों से रूबरू तो करवा दिया. इसके अलावा अनिल कपूर ने तो वहां पर जय जय के नारे भी बुलंद किए, अनिल कपूर की खुशी देखने लायक थी, अनिल कपूर के चेहरे वाली खुशी आज से पहले किसी भी फिल्म

....वो खुशी खुशी लौट आए

आज बुधवार का दिन है, और चिंता की चादर ने मुझे इस कदर ढक लिया है, जैसे सर्दी के दिनों में धूप को कोहरा, क्योंकि आते शनिवार को मेरी पत्नी शादी के बाद पहली बार मायके जा रही है, और वादा है अगले बुधवार को लौटने का. तब तक मेरा इस चिंता की चादर से बाहर आना मुश्किल है. मुझे याद है, जब वो आज से एक साल पहले शादी करने के बाद अपने मायके गई थी, लेकिन आज और उस दिन में एक अंतर है, वो ये कि तब हमने अपनी शादी से पर्दा नहीं उठाया था, और घरवालों की नजर में वो विवाहित नहीं थी. हां, मगर उसके घरवाले ये अच्छी तरह जानते थे कि इंदौर में उसका मेरे साथ लव चल रहा है. वो इंदौर से खुशी खुशी अपनी सहेली की शादी देखने के लिए दिल में लाखों अरमान लेकर निकली, लेकिन जैसे ही वहां पहुंची तो अरमानों पर गटर का गंदा पानी फिर गया. वो एक रात की यात्रा करने के बाद थकी हुई थी और थकावट उतारने के लिए उसने स्नान किया. अभी वो पूरी तरह यात्रा की थकावट से मुक्त नहीं हुई थी कि अचानक उसके सामने एक अजनबी नौजवान खड़ा आकर खड़ा हो गया, जो उसके मम्मी पापा ने उसको देखने के लिए बुलाया था. और जैसे ही उसको पता चला कि वो नौजवान उसको देखने के लिए आया

लड़का होकर डरते हो...

बात है आज से कुछ साल पहले की, जब मैं शौकिया तौर पर अपने एक बिजनसमैन दोस्त के साथ रात को मां चिंतपूर्णी का जागरण करने जाया करता था और आजीविका के लिए दैनिक जागरण में काम करता था। एक रात उसका फोन आया कि क्या हैप्पी आज जागरण के लिए जाना है? मैंने पूछा कहां पर है जागरण?, तो उसने कहा कि हरियाणा की डबवाली मंडी में है, जो भटिंडा शहर से कोई 20 30 किलोमीटर दूर है. मैंने आठ बजे तक सिटी के तीन पेज तैयार कर दिए थे, और एक पेज अन्य साथी बना रहा था. मैंने अपने ऑफिस इंचार्ज को बोला सर जी मैं जा रहा हूं. एक पेज रह गया वो बन रहा है. तो उन्होंने हंसते हुए कहा, क्या जोगिंदर काका के साथ जा रहा है, मैंने कहा हां जी. इतने में जोगिंदर ने हनुमान चौंक पहुंचते ही कॉल किया. मैं तुरंत ऑफिस से निकला और हनुमान चौंक पहुंचा, वहां से एक गाड़ी में बैठकर मैं डबवाली के लिए रवाना हुआ. पौने घंटे के भीतर हम सब जागरण स्थल पर पहुंच गए और वहां पर मां के भगत हमारा इंतजार कर रहे थे कि कब भजन मंडली वाले आएं और जागरण शुरू करें. लेकिन पहले पेट पूजा, फिर काम कोई दूजा. इस लिए हम सबसे पहले छत पर पहुंचे, जहां पर खाना सजा हुआ था. हमने पेट

..जब भागा दौड़ी में की शादी

आज से एक साल पहले, इस दिन मैंने भागा दौड़ी में शादी रचाई थी, अपनी प्रेमिका के साथ. सही और स्पष्ट शब्दों में कहें तो आज मेरी शादी के पहली वर्षगांठ है. आज भी मैं उस दिन की तरह दफ्तर में काम कर रहा हूं, जैसे आज से एक साल पहले जब शादी की थी, बस फर्क इतना है कि उस समय हमारा कार्यलय एमजी रोड स्थित कमल टॉवर में था, और आज महू नाका स्थित नईदुनिया समाचार पत्र की बिल्डिंग में है. आप सोच रहे होंगे कि भागा दौड़ी में शादी कैसे ? तो सुनो..शादी से कुछ महीने पहले मुझे भी हजारों नौजवानों की तरह एक लड़की से प्यार हो गया था और हर आशिक की तमन्ना होती है कि वो अपनी प्रेमिका से ही शादी रचाए और मैं भी कुछ इस तरह का सोचता था. लेकिन हमारी शादी को आप समारोह नहीं, बल्कि एक प्रायोजित घटनाक्रम का नाम दे सकते हैं. मुझे और मेरी जान को लग रहा था कि शादी के लिए घरवाले नहीं मानेंगे, इस लिए हम दोनों ने शादी करने का मन बनाया, क्योंकि कुछ दिनों बाद उसको घर जाना था, और उधर घरवाले भी ताक में थे कि अब बिटिया घर आए और शादी के बंधन में बांध दें.क्योंकि उनको मेरे और मेरी प्रेमकहानी के बारे में पता चल गया था. इसकी भनक हमको भी लग गई