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कहो..... भीड़ नहीं हम.....

आस पास के लोगों से..... सतर्क हो जाइए..... क्‍योंकि पता नहीं कौन सा नकाबपोश..... काले धन का मालिक हो..... मखौटों के इस दौर में सब फर्जी हैं..... हां..... मैं..... आप..... हम सब फर्जी हैं। चौंकिए मत..... सच है.....। कबूतर की तरह आंखें भींचने से क्‍या होगा?.....। याद कीजिए..... 35 लाख का घर..... और 22 लाख के दस्‍तावेज..... आखिर किसने बनवाये। बेरोजगार बेटे बेटी को 3 से 5 लाख रिश्‍वत देकर..... सरकारी नौकरी किसी ने दिलवाई.....। आखिर कौन पूछता है..... दामाद ऊपर से कितना कमा लेता है.....। ऐसे ही तो..... जमा होता है काला धन..... काले धन वाले भी..... तो शामिल हैं ईमानदारों में..... और नोटबंदी का करते हैं जमकर समर्थन..... कहते हैं..... मिट जाएगा काला धन..... और खत्‍म होगी रिश्‍वतखोरी..... हां..... स्‍लीपर सैल की तरह..... हम में भी..... कहीं न कहीं..... छुपे बैठे हैं चोर..... दम है तो पकड़िये..... रिश्‍वत लेते..... जो पकड़ा गया..... रिश्‍वत देकर छूट जाएगा..... सड़क पर ट्रैफिक वाला रसीद काटता है..... तो आप बड़े आदमी को फोन लगा लेते हैं..... ईमानदार कर्मचारी की बैंड खूब बजती है..... और तमाश द

और तो कुछ पता नहीं, लेकिन लोकतंत्र ख़तरे में है

जहां लोकतंत्र में सत्‍ता और विपक्ष रेल की पटरी सा होता है। तो वहीं, लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था एक रेल सी होती है। यदि दोनों पटरियों में असंतुलन आ जाए तो पटना इंदौर एक्‍सप्रेस सा हादसा होते देर नहीं लगती, सैंकड़ों जिंदगियां पल भर में खत्‍म हो जाती हैं। और पीछे छोड़ जाती हैं अफसोस कि काश! संकेतों पर गौर कर लिया होता। वक्‍त रहते कदम उठा लिये गए होते। ये संकेत नहीं तो क्‍या हैं कि देश सिर्फ एक व्‍यक्‍ति पर निर्भर होता जा रहा है। देश में विपक्ष की कोई अहमियत नहीं रह गई। सत्‍ता पक्ष के खिलाफ बोलना अब देशद्रोह माना जाने लगा है। किसी सरकारी नीति की आलोचना करने का साहस करने पर आपको बुरा भला कहा जाता है। दिलचस्थ तथ्‍य तो देखो कि भारत बंद की घोषणा होने के साथ ही सत्‍ता पक्ष की तरफ से कुछ दुकानों पर एक सरीखे नारे लिखे बोर्ड या बैनर टांग दिये जाते हैं। हर आदमी के गले में कड़वी बात को उतारने के लिए सेना और देशभक्‍ति का शहद की तरह इस्‍तेमाल किया जा रहा है, ताकि कड़वाहट महसूस न हो। पहले तो ऐसा नहीं होता था, सरकार के खिलाफ भारत बंद भी होते थे। जो लोग आज सत्‍ता में हैं, वो ही लोग लठ लेकर निकला करते थे

Standpoint - 'हिंदु परिषद' के आगे 'विश्व' क्यूं ?

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आप सोच रहे होंगे। यह अटपटा सवाल क्यूं ? बिल्कुल मुझे भी 'विश्व' अटपटा लगता है, जब मैं इस संस्थान के प्रमुख के बयानों को सुनता हूं। देखता हूं या कहीं पढ़ता हूं। बड़ी अजीब बात है कि आप भारत को एक कट्टर देश बनाने की सोच रखते हैं, लेकिन शब्द विश्व जैसा इस्तेमाल करते हैं। अगर आप भारत को सीमित रखना चाहते हैं, तो सच में 'विश्व' जैसा शब्द एक देश की ऐसी संस्था को शोभा नहीं देता। यह शब्द वैसा ही है, जैसा दक्षिण भारत की एक राजनीतिक पार्टी indian christian secular party में 'सेकुल्यर'शब्द है। अगर सेकुल्यर हो तो क्रिचियन शब्द क्यूं ? वैसे ही अगर विश्व हिन्दु परिषद भारत को हिन्दु राष्ट्र बनाना चाहती है तो राष्ट्र शब्द स्टीक हो सकता है, लेकिन विश्व शब्द नहीं क्यूंकि राष्ट्र को विश्व की संज्ञा नहीं दी जा सकती। 31 मार्च 2013 को ' हिंदु संगम ' समारोह का आयोजन हुआ। इस समारोह में विश्व हिंदु परिषद के प्रमुख प्रवीण तोगड़िया ने कहा था, ''2015 के बाद गुजरात को हिन्दु राज्य घोषित कर दिया जाएगा, क्यूंकि 18000 गांवों में विहिप की मौजूदगी हो जाएगी।'' ए

Publicly Letter : गृहमंत्री ​सुशील कुमार शिंदे के नाम

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नमस्कार, सुशील कुमार शिंदे। खुश होने की जरूरत नहीं। इसमें कोई भावना नहीं है, यह तो खाली संवाद शुरू करने का तरीका है, खासकर आप जैसे अनेतायों के लिए। नेता की परिभाषा भी आपको बतानी पड़ेगी, क्यूंकि जिसको सोशल एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया के शब्दिक ​अ​र्थ न पता हों, उसको अनेता शब्द भी समझ में आना थोड़ा सा क​ठिन लगता है। नेता का इंग्लिश अर्थ लीडर होता है, जो लीड करता है। हम उसको अगुआ भी कहते हैं, मतलब जो सबसे आगे हो, उसके पीछे पूरी भीड़ चलती है।   अब आप के बयान पर आते हैं, जिसमें आप ने कहा कुचल देंगे। इसके आगे सोशल मीडिया आए या इलेक्ट्रोनिक मीडिया। कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, क्यूंकि कुचल देंगे तानाशाही का प्रतीक है या किसी को डराने का। आपके समकालीन अनेता सलमान खुर्शीद ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को नंपुसक कहा, क्यूंकि वो दंगों के दौरान शायद कथित तौर पर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाए, लेकिन जब मुम्बई पर हमला हुआ था, तब आपके कुचल देंगे वाले शब्द किस शब्दकोश में पड़े धूल चाट रहे थे, तब कहां थे सलमान खुर्शीद जो आज नरेंद्र मोदी को नपुंसक कह रहे हैं। इलेक्ट्रोनिक मीडिया को तो शायद आप पैस

राजनीतिक पार्टियां यूं क्यूं नहीं करती

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हर राजनीति देश के विकास का नारा ठोक रही है। सब कहते हैं, हमारे बिना देश का विकास नहीं हो सकता, सच में मैं भी यही मानता हूं, आपके बिना देश का विकास नहीं हो सकता, लेकिन एकल चलने से भी तो देश का विकास नहीं हो सकता, जो देश के विकास के लिए एक पथ पर नहीं, चल सकते, वो देश को विकास की बातें तो न कहें। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश को एकता का नारा देते हैं, लेकिन खड़े एकल हैं, जहां जाते हैं, वहां की सरकार की खाटिया खड़ी करते हैं। कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि दो इंच कील की जगह चार इंच हथोड़े की चोट से ठोक देते हैं। कांग्रेस समेत देश की अन्य पार्टियां भी कुछ यूं ही करती हैं, वो देश के विकास का मोडल रखने को तैयार नहीं। टीवी चैनलों ने तो केजरीवाल सरकार को गिराने के लिए निविदा भर रखी है, जो गिराने में सशक्त होगा, उसको निवि​दा दी जाएगी। लेकिन क्यूं नहीं देश की राजनीतिक पार्टियां एक सार्वजनिक मंच पर आ जाएं। अपने अपने विकास मोडल रखें, जैसे स्कूल के दिनों में किसी प्रतियोगिता में बच्चे रखते थे, जिसका अच्छा होगा, जनता फैसला कर लेगी। इससे दो फायदे होंगे, एक तो टेलीविजन पर रोज शाम को बकबक बंद ह

समुदाय राजनीति बंद होनी चाहिए

समाचार : रामेश्वरम के निकट पंबम में मछुआरों के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते सुषमा ने कहा, 'नरेंद्र मोदी ने एक मछुआरों को राज्यसभा का सदस्य बनाया हैं।' वह यहां मछुआरा समुदाय के चुन्नीभाई गोहिल का जिक्र कर रही थी, जिन्हें बीजेपी ने पिछले सप्ताह गुजरात से राज्यसभा का सदस्य नामांकित किया है। इसके साथ ही बीजेपी की इस वरिष्ठ नेता ने वादा किया कि अगर उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में जीतती है, तो वह एक अलग मत्स्य पालन मंत्रालय का गठन करेगी और मछुआरों की रिहाइश की आस-पास अच्छे स्कूल और अस्पताल स्थापित किए जाएंगे। युवारॉक्स व्यू : आखिर यह क्या बात है ? लोक सभा चुनाव नजदीक हैं, और भाजपा ने गुजरात से चुन्नीभाई गोहिल को राज्य सभा सदस्य नियुक्त किया। और भाजपा की मैडम उसको हथियार बना रही हैं। हद नहीं तो क्या है ? यूं वादे करना भ्रष्टाचार प्रलोभन नहीं तो क्या है ? तो बीजेपी को अब चाय वालों के पास जाना चाहिए, कहना चाहिए देखो नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया। पार्टी में कुछ वकील होंगे, कुछ छोटे कारोबारी होंगे। उधर, जदयू को भी न्यूज पेपर समुदाय से मदद मांग लेनी चा​हिए, प्रभात

भारतीय राजनीति 99 के फेर में

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पिछले एक साल में भाजपा के प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने हर स्तर पर विज्ञापनों से बहुत खूबसूरत जाल बुना। असर ऐसा हुआ कि देश में एक संप्रदाय का जन्म होता नजर आया। मोदी के अनुयायी उग्र रूप में नजर आए। मानो विज्ञापनों से जंग जीत ली। सत्ता उनके हाथ में है। जो शांत समुद्र थे, एकदम तूफानी रूख धारण करने लगे। अब उनको दूसरे समाज सेवी भी अपराधी नजर आने लगे, खासकर दिल्ली में, क्यूंकि ​दिल्ली फतेह होते होते चुंगल से छूट गई। ख़बर है कि कांग्रेस प्रधान मंत्री पद की दौड़ में राहुल गांधी को उतारने का मन बना चुकी है। कांग्रेस राहुल गांधी को ऐसे तो उतार नहीं सकती, क्यूंकि सवाल साख़ का है, मौका ऐसा है कि बचा भी नहीं जा सका। अब राहुल को उतारने के लिए कांग्रेस पीआर एजें​सियों पर खूब पैसा लुटाने जा रही है। यकीनन अगला चुनाव मूंछ का सवाल है। इस बार चुनाव को युद्ध से कम आंकना मूर्खता होगी। युद्ध का जन्म अहं से होता है। यहां पर अहं टकरा रहा है। वरना देश में चुनाव साधारण तरीके से हो सकता था। भाजपा किसी भी कीमत पर सत्ता चाहती है। अगर उसकी चाहत सत्ता न होती तो शायद वह अपने पुराने बर

लोकपाल बिल तो वॉट्सएप पर पास हो गया था

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अन्ना हजारे। आज के गांधी हो गए। ठोको ताली। कांग्रेस व भाजपा समेत अन्य पार्टियों ने लोक पाल बिल पास कर दिया। कहीं, आज फिर एक बार अंग्रेजों की नीति को तो नहीं दोहरा दिया गया। गांधी को महान बनाकर सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह जैसे किरदारों को दबा दिया गया। सत्ता पाने की चाह में पागल पार्टियां ​दिल्ली में बहुमत न मिलने की कहानी गढ़ते हुए सरकार बनाने से टल रही हैं। आज भी राजनीतिक पार्टियां भीतर से एकजुट नजर आ रही हैं। शायद वह आम आदमी के हौंसले को रौंदा चाहती हैं, जो आप बनकर सामने आया है। वह चाहती हैं कि आप गिरे। डगमगाए ताकि आने वाले कई सालों में कोई दूसरा आम आदमी राजनेता को नीचा​ दिखाने की जरूरत न करे। आठ साल से लटक रहा बिल एकदम से पास हो जाता है। अन्ना राहुल गांधी को सलाम भेजता है। उस पार्टी का भी लोक पाल को समर्थन मिलता है, जिसका प्रधानमंत्री उम्मीदवार, बतौर मुख्यमंत्री अब तक अपने राज्य में लोकायुक्त को लाने में असफल रहा है। मुझे लगता है कि शायद अन्ना ने राहुल गांधी को भेजे पत्र के साथ एक पर्ची भी अलग से भेजी होगी। जिस पर लिखा होगा। क्या एक और अरविंद केजरीवाल चाहिए? र

ख़त तरुण तेजपाल, मीडिया व समाज के नाम

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तरुण तेजपाल, दोष तुम्‍हारा है या तुम्‍हारी बड़ी शोहरत या फिर समाज की उस सोच का, जो हमेशा ऐसे मामलों में पुरुषों को दोष करार दे देती है, बिना उसकी सफाई सुने, मौके व हालातों के समझे। इस बारे में, मैं तो कुछ नहीं कह सकता है, लेकिन तुम्‍हारे में बारे में मच रही तहलका ने मुझे अपने विचार रखने के लिए मजबूर कर दिया, शायद मैं तमाशे को मूक दर्शक की तरह नहीं देख सकता था। मीडिया कार्यालयों, वैसे तो बड़ी बड़ी कंपनियों में भी शारीरिक शोषण होता, नहीं, नहीं, करवाया भी जाता है, रातों रात चर्चित हस्‍ती बनने के लिए। लूज कपड़े, बोस को लुभावने वाला का मैकअप, कातिलाना मुस्‍कान के साथ बॉस के कमरे में दस्‍तक देना आदि बातें ऑफिस में बैठे अन्‍य कर्मचारियों की आंखों में खटकती भी हैं। मगर इस शारीरिक शोषण या महत्‍वाकांक्षायों की पूर्ति में अगर किसी का शोषण होता है तो उस महिला या पुरुष कर्मचारी का, जो कंपनी को ऊपर ले जाने के लिए मन से काम करता है। जब तक डील नो ऑब्‍जेक्‍शन है, तब तक मजे होते हैं, जिस दिन डील में एरर आने शुरू होते हैं, उस दिन विवाद होना तय होता है, जैसे आपके साथ हुआ। विवाद दब भी जाता, लेकिन

frank talk : मुजफ्फरनगर दंगों के छींटे दुर्गा एक्‍सल से नहीं जायेंगे अखिलेश

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मुजफ्फरनगर में भड़काऊ भाषण देने के आरोपी बीजेपी विधायक संगीत सोम ने शनिवार को सरेंडर करते हुए नरेंद्र मोदी को प्रचार हथकंडा अपनाने के मुकाबले में पीछे छोड़ दिया। बीजेपी विधायक संगीत सोम ने ऐसे सरेंडर किया, जैसे वे किसी महान कार्य में योगदान देने के बाद पुलिस हिरासत में जा रहे हों। गिरफ्तारी के वक्‍त हिन्‍दुओं का हृदयसम्राट बनने की ललक संगीत सोम में झलक रही थी। शायद संगीत सोम को यकीन हो गया कि लोक सभा चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी सत्‍ता में आयेंगे, जैसे नरेंद्र मोदी एलके आडवाणी के अवरोधों को तोड़ते हुए पीएम पद उम्‍मीदवार (एनडीएम) बने हैं। बीजेपी के विधायक संगीत सोम ने गिरफ्तारी के बाद कहा, मैं अपने धर्म की रक्षा के लिए लड़ता रहूंगा। शायद किसी ने संवाददाता ने पूछने की हिम्‍मत नहीं की कि आखिर आपका धर्म खतरे में कहां है ? अगर भारत में बहुसंख्‍यक धर्म संकट में है तो अल्‍पसंख्‍यक लोगों  में तो असुरक्षा का भाव अधिक होगा। जहां असुरक्षा का भाव है, वहां सुरक्षा के लिए तैयारियां होती हैं, और नतीजा हवा से दरवाजा बजने पर भी अंधेरे में तबाड़तोड़ गोलियां चल जाती हैं। इस नेता की गिरफ्त

It's Fake News - इंजी. छात्राओं के पेपर साहित्‍यक लाइबेरी में रखे जाएंगे

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गुजरात यूनिवर्सिटी ने फैसला किया है कि वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे 700 छात्रों में से कुछ छात्रों के पेपर साहित्‍यक लाइबेरी में भेजे जाएंगे। इसके लिए बकायदा समाचार पत्रों व अन्‍य साधनों के जरिये आवेदन मांगे जाएंगे। गुजरात यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने पिछले दिनों एक मीडिया रिपोर्ट में खुलासा किया है कि इंजीनियरिंग कर रहे छात्र बहुत होशियार हैं, लेकिन फिर भी पेपर पास नहीं कर पा रहे, क्‍यूंकि उनको साहित्‍य का कीड़ा काट चुका है। छात्र इतने प्रतिभाशाली हैं कि वे इंजीनियरिंग पेपर में पूछे गए सवालों के जवाब अपनी निजी कहानियों, कविताओं के जरिये दे रहे हैं। इसके साथ यूनिवर्सिटी ने चेताया कि छात्रों के पास अपना हुनर निखारने के लिए केवल 2015 तक का समय है, उसके बाद उनको साबित करने के लिए अन्‍य मौका नहीं दिया जाएगा। यूनिवर्सिटी को उम्‍मीद है कि अगले दो सालों में और बेहतरीन साहित्‍य कला कृतियां मिलेगीं। दीपिका, क्‍या देख रहे हो ? शाह रुख खान, कुछ नहीं, देख रहा हूं, इतनी बड़ी हिट के बाद भी कोई निर्माता निर्देशक साइन करने क्‍यूं नहीं आया। दीपिका, अरे बुद्धू, निर्माता निर्देशक ह

कपड़ों से फर्क पड़ता है

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मुम्‍बई में महिला पत्रकार के साथ हुए गैंग रेप हादसे के बाद कुछ नेताओं ने कहा, महिलाओं को कपड़े पहनने के मामले में थोड़ा सा विचार करना चाहिए। यकीनन यह बयान महिलाओं की आजादी छीनने सा है। अगर दूसरे पहलू  से सोचें तो इसमें बुरा भी कुछ नहीं, अगर थोड़ी सी सावधानी, किसी बुरी आफत से बचा सकती है तो बुराई कुछ भी नहीं। हमारे पास आज दो सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ने वाले वाहन हैं, लेकिन अगर हर कोई इस सपीड पर कार चलाएगा तो हादसे होने संभव है। ऐसे में अगर कोई गाड़ी संभलकर चलाने की बात कहे तो बुरा नहीं मानना चाहिए। देश का ट्रैफिक, सड़कें भी देखनी होगी, केवल स्‍पीड देखने भर से काम तो नहीं हो सकता। ऐसी सलाह देश के कुछ नागरिकों को बेहद नागवार गुजरती है, लेकिन आग के शहर में मोम के कपड़े पहनना भी बेवकूफी से कम न होगा। हमें कहीं न कहीं समाज को देखना होगा, उसके नजरिये को समझना होगा। जब हर कदम पर सलीब हो, और हर तरफ अंधेरा फैला हो, तो यकीनन हर कदम टिकाते समय बहुत सावधानी बरतनी पड़ेगी, पहले टोह लगानी पड़ेगी है, नीचे सलीब तो नहीं, एक दम दौड़कर निकलने वाले अक्‍सर लहू लहान होते हैं। देश की सरकार को

राहुल गांधी : तुम आये तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला

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राहुल गांधी, युवा चेहरा। समय 2009 लोक सभा चुनाव। समय चार साल बाद । युवा कांग्रेस उपाध्‍यक्ष बना पप्‍पू। हफ्ते के पहले दिन कांग्रेस की मीडिया कनक्‍लेव। राहुल गांधी ने शुभारम्‍भ किया, नेताओं को चेताया वे पार्टी लाइन से इतर न जाएं। वे शालीनता से पेश आएं और सकारात्‍मक राजनीति करें। राहुल गांधी का इशारा साफ था। कांग्रेसी नेता अपने कारतूस हवाई फायरिंग में खत्‍म न करें। राहुल गांधी, जिनको ज्‍यादातर लोग प्रवक्‍ता नहीं मानते, लेकिन वे आज प्रवक्‍तागिरी सिखा रहे थे। दिलचस्‍प बात तो यह है कि राहुल गांधी ख़बर बनते, उससे पहले ही नरेंद्र मोदी की उस ख़बर ने स्‍पेस रोक ली, जो मध्‍यप्रदेश से आई, जिसमें दिखाया गया कि पोस्‍टर में नहीं भाजपा का वो चेहरा, जो लोकसभा चुनावों में भाजपा का नैया को पार लगाएगा। सवाल जायजा है, आखिर क्‍यूं प्रचार समिति अध्‍यक्ष को चुनावी प्रचार से दूर कर दिया, भले यह प्रचार लोकसभा चुनावों के लिए न हो। कहीं न कहीं सवाल उठता है कि क्‍या शिवराज सिंह चौहान आज भी नरेंद्र मोदी को केवल एक समकक्ष मानते हैं, इससे अधिक नहीं। सवाल और विचार दिमाग में चल रहे थे कि दूर से कहीं चल रहे गीत की ध

राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी और भाजपा की स्‍थिति

''राह में उनसे मुलाकात हो गई, जिससे डरते थे वो ही बात हो गई''  विजय पथ फिल्‍म का यह गीत आज भाजपा नेताओं को रहकर का याद आ रहा होगा, खासकर उनको जो नरेंद्र मोदी का नाम सुनते ही मत्‍थे पर शिकन ले आते हैं। देश से कोसों दूर जब न्‍यूयॉर्क में राजनाथ सिंह ने अपना मुंह खोला, तो उसकी आवाज भारतीय राजनीति के गलियारों तक अपनी गूंज का असर छोड़ गई। राजनाथ सिंह, भले ही देश से दूर बैठे हैं, लेकिन भारतीय मीडिया की निगाह उन पर बाज की तरह थी। बस इंतजार था, राजनाथ सिंह के कुछ कहने का, और जो राजनाथ सिंह ने कहा, वे यकीनन विजय पथ के गीत की लाइनों को पुन:जीवित कर देने वाला था। दरअसल, जब राजनाथ सिंह से पीएम पद की उम्‍मीदवारी के संबंधी सवाल पूछा गया तो उनका उत्तर था, मैं पीएम पद की उम्‍मीदवारी वाली रेस से बाहर हूं। मैं पार्टी अध्‍यक्ष हूं, मेरी जिम्‍मेदारी केवल भाजपा को सत्ता में बिठाने की है, जो मैं पूरी निष्‍ठा के साथ निभाउंगा। यकीनन, नरेंद्र मोदी आज सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं, अगर भाजपा सत्ता हासिल करती है तो वे पीएम पद के उम्‍मीदवार होंगे। दूर देश में बैठे राजनाथ

आईपीएल तो हैडर स्‍पेस खा गई

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आईपीएल कवरेज तो ज्‍यादातर अख़बारों के हैडर खा गया, लेकिन उस छात्र की ख़बर पहले पन्‍ने पर भी नहीं आई, जो उस शहर में पुलिस लाठीचार्ज के दौरान मारा गया, जहां आईपीएल का प्रोग्राम था। बड़ी अजीबोगरीब हो गई मीडियाई बंदों की सोच। टाइटल स्‍पेस भी बेच डाली लगता है मीडिया ने, वरना मुफ्त इतना प्रमोशन तो मीडिया खुद का नहीं करता। मगर दैनिक भास्‍कर ने पुराने तौर तरीके को बरकरार रखते हुए पहले दो पृष्‍ठ विज्ञापन के लिए छोड़े, मगर दूसरे मीडिया वाले तो खुद के हैडर को भी बेच गए। सभी हिन्‍दी न्‍यूजपेपरों ने हैडर के नीचे दिया है समारोह का पिक्‍चर यह तो संकेत करता है कि यह टोटल एक एड कंपनी द्वारा प्रायोजित किया गया पेज है, किसी संपादक द्वारा नहीं। जिस तरह अब प्रचार कंपनियों का हस्‍तक्षेप संपादक इलाके में प्रभाव छोड़ता हुआ नजर आ रहा है, आने वाले समय में लगता संपादक केवल कुछ दिनों के लिए समाचारों को कैसे और कहां प्रकाशित करने की सलाह देंगे, बाकी दिन विज्ञापन दाता कंपनियां फैसला करेंगी। हो सकता है कि किसी दिन आपके घर आने वाला अख़बार पूरी तरह विज्ञापन से भरा हो।

माँ की आँख

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मेरी माँ की सिर्फ एक ही आँख थी और इसीलिए मैं उनसे बेहद नफ़रत करता था | वो फुटपाथ पर एक छोटी सी दुकान चलाती थी | उनके साथ होने पर मुझे शर्मिन्दगी महसूस होती थी | एक बार वो मेरे स्कूल आई और मै फिर से बहुत शर्मिंदा हुआ | वो मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है ? अगले दिन स्कूल में सबने मेरा बहुत मजाक उड़ाया | मैं चाहता था मेरी माँ इस दुनिया से गायब हो जाये | मैंने उनसे कहा, 'माँ तुम्हारी दूसरी आँख क्यों नहीं है? तुम्हारी वजह से हर कोई मेरा मजाक उड़ाता है | तुम मर क्यों नहीं जाती ?' माँ ने कुछ नहीं कहा | पर, मैंने उसी पल तय कर लिया कि बड़ा होकर सफल आदमी बनूँगा ताकि मुझे अपनी एक आँख वाली माँ और इस गरीबी से छुटकारा मिल जाये | उसके बाद मैंने म्हणत से पढाई की | माँ को छोड़कर बड़े शहर आ गया | यूनिविर्सिटी की डिग्री ली | शादी की | अपना घर ख़रीदा | बच्चे हुए | और मै सफल व्यक्ति बन गया | मुझे अपना नया जीवन इसलिए भी पसंद था क्योंकि यहाँ माँ से जुडी कोई भी याद नहीं थी | मेरी खुशियाँ दिन-ब-दिन बड़ी हो रही थी, तभी अचानक मैंने कुछ ऐसा देखा जिसकी कल्पना भी नहीं की थी | सामने मेरी म

बयान बवालों से 'बुद्धम् शरणम् गच्छामि' की गूंज तक - साप्‍ताहिक हलचल

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रविवार, 6 जनवरी 2013।   इसी के साथ नव वर्ष के प्रथम छह दिन खत्‍म होने जा रहे हैं। बीते सप्‍ताह के दौरान ज्‍यादा सुर्खियां बयानों को लेकर हुए बवालों पर बनी। अगर अंतर्राष्‍ट्रीय समाचारों की बात की जाए तो दो से अधिक सप्‍ताह बाद संडी हूक्‍स स्‍कूल के बच्‍चे जहां एक बार फिर स्‍कूल लौटे तो वहीं दूसरी तरफ तालिबानियों की गोली का निशान बनी मलाला को अस्‍पताल से छुट्टी मिल गई। अंत अमरीका में टैक्स की बढ़ोत्तरी एवं सरकारी खर्चों में कटौतियों के मसले पर 'फ़िस्कल क्लिफ़' नामक' प्रस्ताव को अमरीका के दोनों सदन ने मंजूरी दे दी है, जो प्रस्ताव राष्ट्रपति ओबामा के लिए गले की फांस बन गया था। इसके अलावा भारतीय मूल की अमेरिका में कांग्रेस के लिए निर्वाचित पहली हिन्दू तुलसी गैबर्ड ने पवित्र भगवद् गीता पर हाथ रखकर पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। तुलसी (31) को प्रतिनिधि सभा के स्पीकर जॉन बोहनर ने शपथ दिलाई। दाऊद इब्राहिम के समधि को भारत वीजा मिलने पर भारत में हुआ विरोध एवं अंत वीजे को कैंसल करना पड़ा। मियांदाद भारत में चल रही अंतर्राष्‍ट्रीय वनडे क्रिकेट सीरीज देखने के लिए आने वाले थे, जो भारत पाकिस्

मीडिया की सुर्खियों में मुम्‍बई की सनमीत

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बिहार के सुशील कुमार के बाद मुम्‍बई की सनमीत कौन साहनी ने पांच करोड़ रुपए जीतकर मीडिया में सुर्खियां बटोर ली है। खासकर सनमीत कौर साहनी ने यह ईनाम राशि उस वक्‍त जीती है, जब पूरा मीडिया महिलामय हो चुका है। ऐसे में सनमीत कौर साहनी को सुर्खियां मिलना लाजमी है। बीबीसी हिन्‍दी ने इस ख़बर को 'केबीसी: 12वीं पास महिला ने जीते पाँच करोड़' हैंडलाइन के साथ प्रकाशित किया है। शायद मीडिया को लगता है कि सामान्‍य ज्ञान  केवल बड़े बड़े डिग्री होल्‍डर के पास है, तभी तो मीडिया हैंडिंग हैरतजनक बनाया, 12वीं पास महिला ने पांच करोड़ जीत लिए, इस ख़बर के अंदर बताया गया है कि सनमीत कौर साहनी बच्‍चों को ट्यूशन पढ़ाती हैं। वहीं मुम्‍बई के प्रसिद्ध समाचार पत्र मिड डे ने इस ख़बर को ' वूमैन विन्‍स पांच करोड़ ऑन केबीसी' के टाइटल तले प्रकाशित की। इस टाइटल को पढ़ने के बाद उम्‍मीद है कि पुरुष थोड़ा सा शर्मिंदा होंगे, और तपाक मुंह से निकलेगा ' महिला ने जीते पांच करोड़ '। अगर गम्‍भीरता से देखा जाए तो यह हैंडिंग भी अचकितवाचक लगता है। इतना ही नहीं, मुम्‍बई वासियों को खुश करने के लिए वुमैन के आगे

मुबारक हो! नई पार्टी बन गई

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मुबारक हो! आज एक नई पार्टी का गठन हो गया। जी हां, नेशनल कांग्रेस पार्टी के सह संस्‍थापक रहे पीएम पीए संगमा ने आज नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का गठन करते हुए भाजपा के नेतृत्व वाले राजग में शामिल होने की घोषणा कर दी। पिछले कुछ सालों से निरंतर नई राजनीतिक पार्टियों का उदय हो रहा है चाहे राज्‍य स्‍तर पर हो चाहे फिर राष्‍ट्रीय स्‍तर पर। पंजाब के विधान सभा चुनावों से पूर्व शिरोमणि अकाली दल से अलग होते हुए प्रकाश सिंह बादल के भतीजे एवं पंजाब के पूर्व वित्‍त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने 27 मार्च 2011 को पीपुल्स पार्टी आफ पंजाब की स्‍थापना की, मगर यह पार्टी चुनावों में कुछ भी न कर सकी। इससे कुछ साल पूर्व 2006 में महाराष्‍ट्र के अंदर भी शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने शिव सेना से किनारा करते हुए महाराष्‍ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया। राज ठाकरे की अगुवाई वाली मनसे ने महाराष्ट्र विधानसभा 2009 के चुनावों में 13 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए अपनी उपस्‍िथति दर्ज करवाई थी, वहीं महाराष्‍ट्र के अंदर 2012 के दौरान हुए नगर पालिका के चुनावों में भी मनसे का दबदबा देखने को मिला। 2012 में ती

मीडिया की प्रश्‍नावली, नेताओं के बेबाक उत्‍तर

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या तो मीडिया को अपनी बे अर्थी प्रश्‍नावली बंद कर देनी चाहिए या फिर देश के नेताओं के घटिया बयानों को प्रसारित करने से परहेज करना चाहिए। मीडिया को कहीं न कहीं सावधानी बरतनी होगी। मीडिया अच्‍छी तरह जानता है। हमारे नेताओं की शिक्षा का स्‍तर कितना ऊंचा है। वैसे भी रानजीतिक रैलियों में हमारे नेता कहते नहीं थकते कि कीचड़ में पत्‍थर मारोगे तो कीचड़ के छींटे आपका दामन गंदा करेंगे। दिल्‍ली गैंग रेप घटना के बाद पूरा देश सदमे में है। ऐसा मैं नहीं, बल्‍कि हमारा 24 घंटे प्रसारित होने वाले इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया कह रहा है। भले ही इस घटनाक्रम के बावजूद सलमान की दबंग ने सौ करोड़ से ज्‍यादा रुपए बॉक्‍स ऑफिस पर एकत्र किए। भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने निरंतर क्रिकेट देखा। दिल्‍ली गैंगरेप की लाइव रिपोर्टिंग व चर्चा के दौरान मीडिया ने विज्ञापन से अच्‍छा कारोबार किया, थोड़े से ब्रेक के बाद के बहाने। अब हमारे पत्रकार महोदय जहां भी खड़े होते हैं, वहीं खड़े किसी न किसी शख्‍स से पूछ लेते हैं दिल्‍ली गैंग रेप के बारे में आपका क्‍या खयाल है, क्‍यूंकि आजकल सन्‍नी लियोन फायरब्रांड नहीं। हमारे नेता भी टीवी पर आने के