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fact 'n' fiction : सोनिया गांधी के नाम मल्‍लिका शेरावत का पत्र

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नमस्‍कार, सोनिया गांधी जी। आज सुबह जब दरवाजे के नीचे से कुछ अख़बार आये, हर सुबह की तरह। मैंने उनको दौड़कर उठाया। शायद किसी सुर्खी में मेरा नाम हो, लेकिन एक सुर्खी ने मुझे पत्र लिखने के लिए मजबूर कर दिया। उस सुर्खी में पूर्व सेना अध्‍यक्ष वीके सिंह का नाम था, और उन पर किसी गुप्‍तचर एजेंसी की स्‍थापना व गलत इस्‍तेमाल करने का आरोप था। सोनिया जी, यह वीके सिंह वहीं हैं ना, जो पिछले दिनों मेरे मूल राज्‍य हरियाणा के रेवाड़ी शहर में नरेंद्र मोदी के साथ नजर आये थे, एक पूर्व सैनिक रैली में। मुझे लगता है शायद उसी कार्य के लिए वीके सिंह सम्‍मानित किये जाने के प्रयासों का हिस्‍सा है यह सुर्खी। और एक संकेत है कि इस तरह के कार्य करने वाले अन्‍य लोगों को भी किसी न किसी रूप से सम्‍मानित किया जा सकता है, मैं सम्‍मानित नहीं होना चाहती, मुझे सम्‍मान पसंद नहीं, क्‍यूंकि मैं तो पहले ही बेरोजगारी का शिकार हूं, सम्‍मान वाले व्‍यक्‍ति तो छोटा मोटा काम नहीं कर सकते। रोजगार पाने के मकसद से तो गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्‍मदिवस पर गीत गाया था, शायद किसी को मेरी आवाज पसंद आ जाये,

स्‍वतंत्रता दिवस पर लालन कॉलेज वर्सेस लाल किला

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आजाद भारत का शायद पहला स्‍वतंत्रता दिवस होगा। जब राष्‍ट्र के लोग इस दिन मौके होने वाले आयोजित समारोह में अधिक दिलचस्‍प लेंगे। इसका मुख्‍य कारण मौजूदा प्रधानमंत्री और संभावित प्रधानमंत्री पद के दावेदार के बीच सीधी टक्‍कर। एक हर बार की तरह लाल किले तो तिरंगा फरहाएंगे तो दूसरे भुज के लालन कॉलेज से। ऐसे में इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया के कैमरे दोनों तरफ तोपों की तरह तने रहेंगे। देश के प्रधानमंत्री होने के नाते मीडिया मनमोहन सिंह की उपस्‍थिति वाले समारोह को नजरअंदाज नहीं कर सकता, वहीं दूसरी तरफ संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार के रूप में उभरकर सामने आ रहे नरेंद्र मोदी को भी जनता सुनना चाहेगी, जो वैसे भी आजकल टेलीविजन टीआरपी के लिए एनर्जी टॉनिक हैं। गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्‍वयं गुजरात के भुज में आयोजित युवाओं की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘जब हम तिरंगा फहराएंगे तो संदेश लाल किला तक भी पहुंचेगा। राष्ट्र जानना चाहेगा कि वहां क्या कहा गया और भुज में क्या कहा गया।’ इस नरेंद्र मोदी की बात में कोई दो राय नहीं। देश की जनता बिल्‍कुल जानना चाहेगी, ले

सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को 'पत्र' लिखा

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सोनिया गांधी, संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन की चेयरपर्सन ने देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा, लेकिन यह कोई प्रेम पत्र नहीं था। यह पत्र आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्‍ति नागपाल के निलम्‍बन को लेकर लिखा गया, इस पत्र में सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह से आग्रह किया, 'सरकार आईएएस अधिकारी के साथ किसी तरह की नइंसाफी न होने दे, और सरकार ने अब तक इस मामले में क्‍या काईवाई की उसकी जानकारी मांगी।' जब सोनिया गांधी के पत्र की ख़बर सामने आई तो दिमाग का चक्‍का घूमा। खयाल आया कि आजकल सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के बीच पति पत्‍नि वाला मनमुटाव हो गया क्‍या ? जैसे टीवी सीरियलों में होता है, जब पति पत्‍नि में अनबन हो जाती है तो टि्वटर नमूना पर्चियों का सहारा लेते हैं एक दूसरे को अपनी बात कहने के लिए, वैसे तो साधारण परिस्‍थितियों में रिमोट होम मिनिस्‍टर के हाथ में ही होता है, होम मिनिस्‍टर कहने भर से काम चल जाएगा, मुझे यकीन है। सोनिया गांधी, जिन पर अक्‍सर आरोप लगता है कि संप्रग सरकार को मनमोहन सिंह नहीं, स्‍वयं सोनिया गांधी चलाती हैं, शायद वैसे ही जैसे बड़े बड़े अधिकारी कार की पिछली सी

राहुल गांधी : तुम आये तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला

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राहुल गांधी, युवा चेहरा। समय 2009 लोक सभा चुनाव। समय चार साल बाद । युवा कांग्रेस उपाध्‍यक्ष बना पप्‍पू। हफ्ते के पहले दिन कांग्रेस की मीडिया कनक्‍लेव। राहुल गांधी ने शुभारम्‍भ किया, नेताओं को चेताया वे पार्टी लाइन से इतर न जाएं। वे शालीनता से पेश आएं और सकारात्‍मक राजनीति करें। राहुल गांधी का इशारा साफ था। कांग्रेसी नेता अपने कारतूस हवाई फायरिंग में खत्‍म न करें। राहुल गांधी, जिनको ज्‍यादातर लोग प्रवक्‍ता नहीं मानते, लेकिन वे आज प्रवक्‍तागिरी सिखा रहे थे। दिलचस्‍प बात तो यह है कि राहुल गांधी ख़बर बनते, उससे पहले ही नरेंद्र मोदी की उस ख़बर ने स्‍पेस रोक ली, जो मध्‍यप्रदेश से आई, जिसमें दिखाया गया कि पोस्‍टर में नहीं भाजपा का वो चेहरा, जो लोकसभा चुनावों में भाजपा का नैया को पार लगाएगा। सवाल जायजा है, आखिर क्‍यूं प्रचार समिति अध्‍यक्ष को चुनावी प्रचार से दूर कर दिया, भले यह प्रचार लोकसभा चुनावों के लिए न हो। कहीं न कहीं सवाल उठता है कि क्‍या शिवराज सिंह चौहान आज भी नरेंद्र मोदी को केवल एक समकक्ष मानते हैं, इससे अधिक नहीं। सवाल और विचार दिमाग में चल रहे थे कि दूर से कहीं चल रहे गीत की ध

दिल्‍ली की प्रशासक महिला, फिर महिला असुरक्षित!

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दिल्‍ली गैंगरेप मामले ने उस तरह तुल पकड़ लिया, जिस तरह मुम्‍बई में हुए आतंकवादी हमले ने। भले ही इससे पहले भी गैंगरेप हुए थे, भले ही इससे पहले भी आतंकवादी हमले हुए थे। शायद किसी न किसी चीज की एक हद होती है, जब हद पार हो जाए तो उसका विनाश तय होता है। दिल्‍ली गैंगरेप के बाद लोग सड़कों पर उतर आए, मगर दिल्ली की मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित कहती हैं, उनमें हिम्‍मत नहीं कि वो रेप पीड़िता से मिल सकें, लगातार तीन बार दिल्‍ली की जनता ने उनको मुख्‍यमंत्री बनाया। दिल्‍ली का प्रशासन एक महिला के हाथ में है, मगर हैरत की बात है कि दिल्‍ली को महिलाओं के लिए असुरक्षित माना जा रहा है। इससे पहले दिल्‍ली पर सुषमा स्‍वराज का राज रहा। निरंतर महिलाएं दिल्‍ली की सत्‍ता संभालें हुए हैं, मगर फिर भी दिल्‍ली सुरक्षित नहीं महिलाओं के लिए। देश की सबसे बड़ी पार्टी को चलाने वाली सोनिया गांधी   दिल्‍ली में दस जनपथ पर रहती हैं। वहीं, सेक्‍सी शब्‍द को सुंदरता की संज्ञा देने वाली महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा   भी तो दिल्‍ली में बसती हैं। गैंग रेप मामले ने जैसे ही तुल पकड़ा तो सेक्‍सी शब्‍द की सुंदरता से तुलना करने वा

नटराजन का ख्‍वाब; पिंजरे की बुलबुल

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एक के बाद एक घोटाला उछलकर बाहर आ रहा है। कांग्रेस की छवि दिन ब दिन महात्‍मा गांधी की तरह धूमिल होती जा रही है। कांग्रेस के नेता पूरी तरह बुखला चुके हैं, वो अपने निकम्‍मे नेताओं को सुधारने की बजाय पूरी शक्‍ति मीडिया को ''पिंजरे की बुलबुल'' बनाने पर खर्च कर रहे हैं, जो लोकतंत्र के बिल्‍कुल उल्‍ट है। शायद कांग्रेस के नेता पानी के बहा को नहीं जानते, वो सोचते हैं कि पानी के बहा को बड़े बड़े बांध बनाकर रोका जा सकता है, लेकिन वो नहीं जानते कि पानी अपना रास्‍ता खुद बनाता है, पानी जीवन है तो विनाश भी है। अगर आप मीडिया के मुंह पर ताला जड़ेंगे तो लोग अपनी बात कहने के लिए दूसरे साधनों को चुनेंगे। अंग्रेजों के वक्‍त इतना बड़ा और इतना तेज तर्रार मीडिया भी तो नहीं था, मगर फिर भी जनमत तैयार करने में मीडिया ने अहम योगदान अदा किया था। कांग्रेसी नेता की पोल किसी अधिकारिक मीडिया ने तो नहीं खोली, जिस पर मीनाक्षी नटराजन बिल लाकर नकेल कसना चाहती हैं। शायद मीनाक्षी नटराजन राहुल बाबा की दोस्‍ती में इतना व्‍यस्‍त रहती हैं कि उनको वो लाइन भी याद नहीं होगी, जो लोग आम बोलते हैं, '