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सर्वोत्तम ब्लॉगर्स 2009 पुरस्कार

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लाजमी है कि आज ज्यादातर दीवारों से पुराने कलेंडरों की जगह नए कलेंडर आ गए होंगे। मोबाइल, कम्प्यूटर में तो कलेंडर बदलने की जरूरत ही नहीं पड़ती वहां तो आटोमैटिक ही बदल जाता है। साल बदलने के साथ ही कलेंडर बदल जाता है, लेकिन शायद कुछ लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी नहीं बदलती, जैसे कि आज मैंने देखा कि ऑफिस में कुछ लोग पहले की तरह ही कीबोर्ड के बटनों को अपनी ऊंगलियों से दबा रहे थे, उनमें नया कुछ न था। इसके अलावा रोड़ किनारे लगी फल, सब्जी एवं अन्य वस्तुओं की लारियों पर खड़े विक्रेता पहले जैसे ही थे, उनमें मुझे तो कोई बदलाव नजर नहीं आया। मुझे लगता है कि हमें याद रहता है कि नया साल आएगा, और कुछ नया लाएगा, लेकिन हम भूल जाते हैं कि 365 दिनों को मिलाकर एक साल बनता है, जो एक दिन के बिना असम्भव है। जैसे कि हम किसी मंजिल तक पहुंचने के लिए एक साथ हजारों कदम नहीं उठाते, बस केवल एक कदम उठाते हैं, कदम दर कदम उठाते जाते हैं और पहुंचते हैं मंजिल के पास। मुझे लगता है कि नए साल की समय सीमा किसी ने सोच विचार कर बनाई होगी, ताकि हम इतने दिन गुजरने के बाद सोच सकें कि आखिर हमने इतने दिनों में आखिर क्या खो दिया और क