कुछ टुकड़े शब्दों के
(1)
तेरे नेक इरादों के आगे,
सिर झुकाना नहीं पड़ता
खुद ब खुद झुकता है
ए मेरे खुदा।
(2)
मेरे शब्द तो अक्सर काले थे,
बिल्कुल कौए जैसे,
फिर भी
उन्होंने कई रंग निकाल लिए।
(3)
कहीं जलते चिराग-ए-घी
तो कहीं तेल को तरसते दीए देखे।
(4)
एक बार कहा था
तेरे हाथों की लकीरों में
नाम नहीं मेरा,
याद है मुझे आज भी,
लहू से लथपथ वो हाथ तेरा
(5)
पहले पहल लगा, मैंने अपना हारा दिल,
फिर देखा, बदले में मिला प्यारा दिल।
(6)
दामन बचाकर रखना
जवानी में इश्क की आग से
घर को आग लगी है
अक्सर घर के चिराग से
कह गया एक अजनबी राहगीर
चलते चलते
लक्ष्य पर रख निगाह
एकलव्य की तरह
जो भी कर अच्छा कर
एक कर्तव्य की तरह
कह गया एक अजनबी राहगीर
चलते चलते
जितनी चादर पैर उतने पसारो,
मुँह दूसरी की थाली में न मारो
कह गया एक अजनबी राहगीर
चलते चलते
कबर खोद किसी ओर के लिए
वक्त अपना जाया न कर
कहना है काम जमाने का,
बात हर मन को लगाया न कर
कह गया एक अजनबी राहगीर
चलते चलते
आभार
तेरे नेक इरादों के आगे,
सिर झुकाना नहीं पड़ता
खुद ब खुद झुकता है
ए मेरे खुदा।
(2)
मेरे शब्द तो अक्सर काले थे,
बिल्कुल कौए जैसे,
फिर भी
उन्होंने कई रंग निकाल लिए।
(3)
कहीं जलते चिराग-ए-घी
तो कहीं तेल को तरसते दीए देखे।
(4)
एक बार कहा था
तेरे हाथों की लकीरों में
नाम नहीं मेरा,
याद है मुझे आज भी,
लहू से लथपथ वो हाथ तेरा
(5)
पहले पहल लगा, मैंने अपना हारा दिल,
फिर देखा, बदले में मिला प्यारा दिल।
(6)
दामन बचाकर रखना
जवानी में इश्क की आग से
घर को आग लगी है
अक्सर घर के चिराग से
कह गया एक अजनबी राहगीर
चलते चलते
लक्ष्य पर रख निगाह
एकलव्य की तरह
जो भी कर अच्छा कर
एक कर्तव्य की तरह
कह गया एक अजनबी राहगीर
चलते चलते
जितनी चादर पैर उतने पसारो,
मुँह दूसरी की थाली में न मारो
कह गया एक अजनबी राहगीर
चलते चलते
कबर खोद किसी ओर के लिए
वक्त अपना जाया न कर
कहना है काम जमाने का,
बात हर मन को लगाया न कर
कह गया एक अजनबी राहगीर
चलते चलते
आभार