संदेश

भाजपा लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुजरात में भाजपा की स्थिति ख़राब, मीडिया को भी बदलने पड़ रहे हैं तेवर

चित्र
शुक्रवार को एनडीटीवी सोशल मीडिया नेटवर्क वेबसाइटों पर तैरने लगा। ख़बर आई कि एनडीटीवी की 40 फीसद हिस्सेदारी नरेंद्र मोदी के करीबी कारोबारी और स्पाइस जेट के संस्थापक अजय सिंह ने खरीद ली, जिनकी बदौलत भारत को अबकी बार मोदी सरकार जैसा नारा मिला था। हालांकि, शाम होते होते एनडीटीवी ने बीएसई को पत्र लिखकर मामले में अपना पक्ष रखते हुए सभी ख़बरों की हवा निकाल दी। मगर, अभी भी टेलीविजन से जुड़े कुछ सूत्रों का कहना है कि एनडीटीवी के कार्यालय में परिवर्तन होना शुरू हो चुका है। वैसे आग के बिना धुंआं होता नहीं, लेकिन, जब महिला ही गर्भवती न होने की पुष्टि कर दे, तो दूसरे लोगों के शोर मचाने से क्या होगा? ​अब तो बस इंतजार करना होगा, गर्भवती महिला की तरह एनडीटीवी के पेट बाहर आने का। शुक्रवार से ठीक एक दिन पहले सोशल मीडिया पर ऐसी भी चर्चा थी कि एनडीटीवी गुजरात में प्रतिबंधित कर दिया गया है। हालांकि, ऐसा भी कुछ देखने में नहीं मिला। दिलचस्प बात तो यह है कि इस पूरे घटनाक्रम में जी मीडिया के शेयरों को झटका लगा और एनडीटीवी के शेयर बाजार में खूब उछले। मीडिया जगत से एक और ख़बर सामने आ रही है, जो गुजरात से ज

शिव सेना की हालत ऐसी — न तलाक लेते बनता है, न साथ रहते बनता है

चित्र
वो समय कुछ और था। जब भाजपा के बड़े बड़े नेता बाला साहेब ठाकरे के सामने जाकर सजदे में खड़े होते थे। अब समय बदल चुका है। अब भारतीय जनता पार्टी खुद नरेंद्र मोदी के गगनचुंबी कद के सामने सिर झुकाए खड़ी हो चुकी है। अगर ऐसे में भी शिव सेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे वाला अदब चाहते हैं, तो उनको बिस्तर पर आराम करना चाहिये, अच्छी नींद लेनी चाहिये और नींद में खूबसूरत ख्वाब देखना चाहिये, क्योंकि हकीकत में ऐसा होना संभव नहीं है। वैसे भी शिव सेना का शुरू से झुकाव नरेंद्र मोदी की ओर कम वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी की ओर से अधिक रहा है। शिव सेना के शुरूआती तेवरों से नरेंद्र मोदी समझ गए थे कि उनको अगली पारी कैसे खेलनी है क्योंकि नरेंद्र मोदी और चीजों को भले ही याद न रखें, लेकिन, अपने विरोधियों के साथ निबटना अच्छे से जानते हैं। कभी कभी तो लगता है कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही मन की दीवार पर वॉट पुट्टी लगा ली थी, ताकि शिव सेना जैसी विरोधी सहयोगी पार्टी की बारिश का उन पर कोई असर न हो। पिछले तीन साल से शिव सेना और नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाला सरकार के बीच पति पत्नी वाली कह

एक ख़त आम आदमी पार्टी के नाम

चित्र
नमस्कार। सबसे पहले आप को बधाई शानदार शुरूआत के लिए। कल जब रविवार को न्यूज चैनलों की स्क्रीनें, क्रिकेट मैच के लाइव स्कोर बोर्ड जैसी थी, तो मजा आ रहा था, खासकर दिल्ली को लेकर, दिल्ली में कांग्रेस का पत्ता साफ हो रहा था, तो भाजपा के साथ आप आगे बढ़ रहे थे, लेकिन दिलचस्प बात तो यह थी कि चुनावों से कुछ दिन पहले राजनीति में सक्रिय हुई पार्टी बाजी मारने में सफल रही,हालांकि आंकड़ों की बात करें तो भाजपा शीर्ष है, मगर बात आप के बिना बनने वाली नहीं है। यह बात तो आपको भी पता थी कि कुछ समीकरण तो बिगड़ने वाला है, मगर आप ने इतने बड़े फेरबदल की उम्मीद नहीं की थी। अगर आपको थोड़ी सी भी भनक होती तो यकीनन सूरत ए हाल कुछ और होता। आप प्रेस के सामने आए, बहुत भावुक थे, होना भी चाहिए, ऐसा क्षण तो बहुत कम बार नसीब होता है। अब आप को अपने कार्यालय के बाहर एक शेयर लिखकर रखना चाहिए, मशहूर हो गया हूं तो जाहिर है दोस्तो, अब कुछ इलजाम मेरे स​र भी आएंगे जो गुरबत में अक्सर नजर चुराते थे, अब देने बधाई मेरे घर भी आएंगे मगर अब आप विपक्ष में बैठने की बात कर रही है, जो सही नहीं। नतीजे आप ने बदले हैं, मुख्यमंत्री को

रेप मुआवजे से नरेंद्र मोदी पर चुटकियां लेती शिव सेना तक

चित्र
जम्‍मू कश्‍मीर की कमान एक युवा नेता उमर अब्‍दुला के हाथ में है, लेकिन शनिवार को उनकी सरकार की ओर से लिए एक फैसले ने उनको सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया। जम्‍मू कश्‍मीर सरकार ने रेप पीड़ित को मुआवजे वाली लिस्‍ट में शामिल किया है। अगर युवा नेता उमर अब्‍दुला इस मुआवजे वाली सूची को जारी करने की बजाय बलात्‍कारी को सजा देने वाली सूची जारी करते तो शायद भारतीय युवा पीढ़ी को ही नहीं, बल्‍कि देश की अन्‍य राज्‍यों की सरकारों को भी सीख मिलती। उमर अब्‍दुला, इज्‍जत औरत का सबसे महंगा गहना होती है, उसकी कीमत आप ने ज्‍वैलरी से भी कम आंक दी। उसको मुआवजे की नहीं, उसको सुरक्षा गारंटी देने की जरूरत है। उसको जरूरत है आत्‍मराक्षण के तरीके सिखाने की, उसको जरूरत है आत्‍मविश्‍वास पैदा करने वाली आवाज की। अगर इज्‍जत गंवाकर पैसे लेने हैं तो वे कहीं भी कमा सकती है। आपके मुआवजे से कई गुना ज्‍यादा, जीबी रोड दिल्‍ली में अपना सब कुछ दांव पर लगाकर पैसा कमाती बेबस लाचार लड़कियां महिलाएं इसकी  साक्षात उदाहरण हैं। जख्‍मों पर नमक छिड़ने का काम अगर आज के युवा नेता करने लग गए तो शायद देश की सत्‍ता युवा हाथों में सौंप

स्‍वतंत्रता दिवस पर लालन कॉलेज वर्सेस लाल किला

चित्र
आजाद भारत का शायद पहला स्‍वतंत्रता दिवस होगा। जब राष्‍ट्र के लोग इस दिन मौके होने वाले आयोजित समारोह में अधिक दिलचस्‍प लेंगे। इसका मुख्‍य कारण मौजूदा प्रधानमंत्री और संभावित प्रधानमंत्री पद के दावेदार के बीच सीधी टक्‍कर। एक हर बार की तरह लाल किले तो तिरंगा फरहाएंगे तो दूसरे भुज के लालन कॉलेज से। ऐसे में इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया के कैमरे दोनों तरफ तोपों की तरह तने रहेंगे। देश के प्रधानमंत्री होने के नाते मीडिया मनमोहन सिंह की उपस्‍थिति वाले समारोह को नजरअंदाज नहीं कर सकता, वहीं दूसरी तरफ संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार के रूप में उभरकर सामने आ रहे नरेंद्र मोदी को भी जनता सुनना चाहेगी, जो वैसे भी आजकल टेलीविजन टीआरपी के लिए एनर्जी टॉनिक हैं। गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्‍वयं गुजरात के भुज में आयोजित युवाओं की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘जब हम तिरंगा फहराएंगे तो संदेश लाल किला तक भी पहुंचेगा। राष्ट्र जानना चाहेगा कि वहां क्या कहा गया और भुज में क्या कहा गया।’ इस नरेंद्र मोदी की बात में कोई दो राय नहीं। देश की जनता बिल्‍कुल जानना चाहेगी, ले

राहुल गांधी : तुम आये तो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला

चित्र
राहुल गांधी, युवा चेहरा। समय 2009 लोक सभा चुनाव। समय चार साल बाद । युवा कांग्रेस उपाध्‍यक्ष बना पप्‍पू। हफ्ते के पहले दिन कांग्रेस की मीडिया कनक्‍लेव। राहुल गांधी ने शुभारम्‍भ किया, नेताओं को चेताया वे पार्टी लाइन से इतर न जाएं। वे शालीनता से पेश आएं और सकारात्‍मक राजनीति करें। राहुल गांधी का इशारा साफ था। कांग्रेसी नेता अपने कारतूस हवाई फायरिंग में खत्‍म न करें। राहुल गांधी, जिनको ज्‍यादातर लोग प्रवक्‍ता नहीं मानते, लेकिन वे आज प्रवक्‍तागिरी सिखा रहे थे। दिलचस्‍प बात तो यह है कि राहुल गांधी ख़बर बनते, उससे पहले ही नरेंद्र मोदी की उस ख़बर ने स्‍पेस रोक ली, जो मध्‍यप्रदेश से आई, जिसमें दिखाया गया कि पोस्‍टर में नहीं भाजपा का वो चेहरा, जो लोकसभा चुनावों में भाजपा का नैया को पार लगाएगा। सवाल जायजा है, आखिर क्‍यूं प्रचार समिति अध्‍यक्ष को चुनावी प्रचार से दूर कर दिया, भले यह प्रचार लोकसभा चुनावों के लिए न हो। कहीं न कहीं सवाल उठता है कि क्‍या शिवराज सिंह चौहान आज भी नरेंद्र मोदी को केवल एक समकक्ष मानते हैं, इससे अधिक नहीं। सवाल और विचार दिमाग में चल रहे थे कि दूर से कहीं चल रहे गीत की ध

राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी और भाजपा की स्‍थिति

''राह में उनसे मुलाकात हो गई, जिससे डरते थे वो ही बात हो गई''  विजय पथ फिल्‍म का यह गीत आज भाजपा नेताओं को रहकर का याद आ रहा होगा, खासकर उनको जो नरेंद्र मोदी का नाम सुनते ही मत्‍थे पर शिकन ले आते हैं। देश से कोसों दूर जब न्‍यूयॉर्क में राजनाथ सिंह ने अपना मुंह खोला, तो उसकी आवाज भारतीय राजनीति के गलियारों तक अपनी गूंज का असर छोड़ गई। राजनाथ सिंह, भले ही देश से दूर बैठे हैं, लेकिन भारतीय मीडिया की निगाह उन पर बाज की तरह थी। बस इंतजार था, राजनाथ सिंह के कुछ कहने का, और जो राजनाथ सिंह ने कहा, वे यकीनन विजय पथ के गीत की लाइनों को पुन:जीवित कर देने वाला था। दरअसल, जब राजनाथ सिंह से पीएम पद की उम्‍मीदवारी के संबंधी सवाल पूछा गया तो उनका उत्तर था, मैं पीएम पद की उम्‍मीदवारी वाली रेस से बाहर हूं। मैं पार्टी अध्‍यक्ष हूं, मेरी जिम्‍मेदारी केवल भाजपा को सत्ता में बिठाने की है, जो मैं पूरी निष्‍ठा के साथ निभाउंगा। यकीनन, नरेंद्र मोदी आज सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं, अगर भाजपा सत्ता हासिल करती है तो वे पीएम पद के उम्‍मीदवार होंगे। दूर देश में बैठे राजनाथ

भाजपा का खेल, टेस्‍ट मैच के अंतिम दिन सा

क्रिकेट के मैदान पर अक्‍सर जब दो टीमें होती हैं, खेलती हैं तो यकीनन दोनों टीमें अपना बेहतर प्रदर्शन देने के लिए अपने स्‍तर पर हरसंभव कोशिश करती हैं, ताकि नतीजे उनकी तरफ पलट जाएं, लेकिन भारतीय राजनीति की पिच पर वैसा नजारा नहीं है। यहां तो केवल भारतीय जनता पार्टी, जो एनडीए की सबसे बड़ी और अगुवाईकर्ता पार्टी है, खेल रही है, पूरा ड्रामा रच रही है। अहम मुद्दों पर चर्चा कर पक्ष को हराने की बजाय उसका पूरा ध्‍यान मैच के अंदर खलन पैदा कर सुर्खियां बटोरना है, वे एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाते हुए नजर नहीं आ रही, वे केवल एक राज्‍य के विकास के दम पर राजनीति ब्रांड बना चुके चेहरे के इस्‍तेमाल पर सत्ता हथियाना चाहती है। भाजपा का रवैया केवल उस टेस्‍ट टीम सा है, जो टेस्‍ट मैच के अंतिम दिन समय बर्बाद करने के लिए हर प्रकार का हथकंड़ा अपनाती है। भाजपा ने पहला ड्रामा रचा। जब राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक गोवा में होनी थी। कुछ नेताओं ने वहां जाने से इंकार कर दिया, तो कुछ ने अनचाहे मन से वहां जाना बेहतर समझा। ख़बरों में थी भाजपा, और विरोधी टीम के इक्‍का दुक्‍का बयानबाज नेता। इस बैठक के

मैन ऑफ द वीक नरेंद्र मोदी

चित्र
खुदी को कर बुलंद इतना की खुदा बन्दे से ये पूछे की बता तेरी रजा क्या है, शायद कुछ इसी राह पर चल रहे हैं गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी। वक्‍त भी कदम दर कदम उनका साथ दे रहा है, उनकी तरफ विरोधियों द्वारा फेंका गया पासा भी उनके लिए वरदान साबित होता है। इस महीने की शुरूआत से नमो या कहूं नरेंद्र मोदी सुर्खियों में हैं, क्‍यूंकि कर्नाटका में भाजपा की हार के बाद लोगों की निगाह टिकी थी कि गुजरात में नमो मंत्र का क्‍या हश्र होगा, 2 तारीख को चुनाव हुए, नमो बेफिक्र थे, मानो उनको पता हो कि नतीजे मेरे पक्ष में हैं। नमो पर वक्‍त मेहरबान तो उस समय हुआ, जब भाजपा के सीनियर नेता व वेटिंग इन पीएम लालकृष्‍ण आडवानी मध्‍यप्रदेश के ग्‍वालियर पहुंचे, और उन्‍होंने गंगा गए गंगाराम, जमुना गए जमुना राम, की कहावत को चरितार्थ करते हुए कह दिया, गुजरात से अच्‍छे तो मध्‍यप्रदेश और छतीसगढ़ हैं, क्‍यूंकि इनकी हालत बेहद खराब थी, जब भाजपा सत्‍ता में आई, हैरानी की बात तो यह है कि सीनियर नेता अपना लोक सभा का चुनाव निरंतर डेढ़ दशक से गुजरात की राजधानी गांधीनगर से लड़ते आ रहे हैं। वेटिंग इन पीएम की वाणी ने राजनीति

तोगड़िया ने कुछ गलत तो नहीं कहा

विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के अंतर्राष्‍ट्रीय प्रमुख डॉक्टर प्रवीण तोगड़िया ने कहा, ''जो लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बता रहे हैं, वे बुनियादी रूप से एनडीए और बीजेपी को तोड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं''। अगर विहिप के नेता की बात मान भी ली जाए तो इसमें बुरा भी कुछ नहीं। अगर देश की जनता नरेंद्र मोदी के रूप में भाजपा को बहुमत दे देती है तो इसके देश के लिए बेहद अच्‍छी बात है, जब तक इसको बहुमत सरकार नहीं मिलेगी, तब तक इस देश का भला होना मुश्किल है, वो बहुमत चाहे कांग्रेस को मिले चाहे फिर बीजेपी को, बहुमत देश के हित में है। भाजपा अपनी तैयारी कर चुकी है नितिन गड़करी को महाराष्‍ट्र भेज राजनाथ सिंह को अध्‍यक्ष बनाकर। अपने पुराने साथी कल्‍याण सिंह को एक बार फिर अपने साथ खींच लाई। नरेंद्र मोदी अपने शपथ समारोह में जयललिता से लेकर प्रकाश सिंह बादल को बुलाकर अपनी आगे की योजना को सबके सामने रख चुके हैं। वाइब्रेंट गुजरात 2013 के जरिए अपना शक्‍ति प्रदर्शन ही नहीं, बल्‍कि उसमें छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री रमन सिंह की उपलब्‍धियों भरी स्‍पेशल प्रदर्शनी कर अपने साथ ला ख

सुन सनकर तंग आए ''देश का अगला...........?"

चित्र
कांग्रेस, हम ने कल लोक सभा में एफडीआई बिल पारित करवा दिया। अब हम गुजरात में भी अपनी जीत का परचम लहराएंगे। मीडिया कर्मी ने बीच में बात काटते हुए पूछा, अगला प्रधानमंत्री कौन होगा, अगर मध्‍याविधि चुनाव हों तो।  अगर देश का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह जनता से बातचीत नहीं करेगा तो, मीडिया तो ऐसे सवाल पूछता ही रहेगा।                                           नोट  पेंट की एड का पॉलिटिकल वर्जन देश के लोकतंत्र में शायद पहली बार हो रहा है कि बात बात पर एक सवाल उभरकर सामने आ जाता है ''देश का अगला प्रधान मंत्री कौन होगा ?'' यह बात तब हैरानीजनक और कांग्रेस के लिए शर्मजनक लगती है जब चुनावों में एक लम्‍बा समय पड़ा हो, और बार बार वो ही सवाल पूछा जाए कि ''देश का अगला प्रधान मंत्री कौन होगा ?'' जब इस मामले से जोर पकड़ा था तो देश के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था, ''कांग्रेस जब भी कहे, मैं राहुल गांधी के लिए खुशी खुशी कुर्सी छोड़ने को तैयार हूं, मैं जब तक इस पद पर हूं, अपना दायित्‍व निभाता रहूंगा''। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भले द

राजनीति में ''एफडीआई''

चित्र
भारतीय राजनीति किस तरह गंदगी हो चुकी है। इसका तारोताजा उदाहरण कल उस समय देखने को मिला, जब एफडीआई का विरोध कर रही बसपा एवं सपा, ने अचानक वोटिंग के वक्‍त बॉयकॉट कर दिया, और सरकार को एफडीआई पारित करने का मौका दे दिया, जिसे सत्‍ता अपनी जीत और विपक्ष अपनी नैतिक जीत मानता है, हैरानी की बात है कि यह पहला फिक्‍सिंग मैच है, जहां कोई खुद को पराजित नहीं मान रहा। राजनीतिज्ञों का मानना है कि एफडीआई के आने से गुणवत्‍ता वाले उत्‍पाद मिलने की ज्‍यादा संभावना है। अगर विदेशी कंपनियों की कार्यप्रणाली पर हमें इतना भरोसा है तो क्‍यूं न हम राजनीति में भी एफडीआई व्‍यवस्‍था लाएं। वैसे भी सोनिया गांधी देश में इसका आगाज तो कर चुकी हैं, भले ही वो शादी कर इस देश में प्रवेश कर पाई। मगर हैं तो विदेशी। अगर राजनीति में एफडीआई की व्‍यवस्‍था हो जाए, तो शायद हमारे देश के पास मनमोहन सिंह से भी बढ़िया प्रधान मंत्री आ जाए, राजनीति दलों को चलाने वाला उत्‍तम उत्‍पाद मतलब कोई पुरुष या महिला आ जाए। अगर राजनीति में एफडीआई का बंदोबस्‍त हो जाता है तो ऐसे में पूर्ण संभावना है कि पाकिस्‍तान के आसिफ जरदारी भी भारत में अपना व

अमेरिका ने क्‍यूं कहा, ''आओ नरेंद्र मोदी''

नरेंद्र मोदी के लिए बेहद गर्व की बात है कि अमेरिका ने उनको वीजा आवेदन पत्र दाखिल करने की अनुमति दे दी है, जो कि 2002 गुजरात दंगों के बाद से प्रतिबंधित थी। अमेरिका का नरेंद्र मोदी के प्रति नरम होना, नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के लिए सुखद है, वहीं कांग्रेस के लिए बेहद दुखद। इसको भाजपा सत्‍य की जीत कहेगी। अमेरिका ने ऐसे ही नरेंद्र मोदी के लिए अमेरिका के प्रवेश द्वार नहीं खोले, अमेरिका में चुनावी माहौल है, वहां पर बहुत सारे हिन्‍दुस्‍तानी बसते हैं, जो सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी की वाह वाही से प्रभावित हैं, और उसके दीवाने हैं। क्‍यूं का दूसरा अहम कारण, नरेंद्र मोदी का निरंतर बढ़ता राजनैतिक कद। अमेरिका को आज से दस साल पूर्व यह आभास न था कि नरेंद्र मोदी एक दिन इतना बड़ा ब्रांड बन जाएगा, जो उसके फैसलों को बदलने की क्षमता रखता हो। आज नरेंद्र मोदी भारत में सबसे ज्‍यादा चर्चा का विषय। देश में इस बात की चर्चा नहीं कि भाजपा केंद्र में आए, चर्चा तो इस बात की चल रही है कि नरेंद्र मोदी होंगे अगले प्रधान मंत्री। एक नेता जब पार्टी से ऊपर अपनी पहचान बना ले, तो किसी को भी रुक का सोचना पड़ सकता है, अमेरिका